सूरह अल-अनफाल (सूरह 8)

 बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम  

(शुरुआत अल्लाह के नाम से, जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला है)


1.वो तुमसे ग़नीमत के माल के बारे में पूछते हैं।  

कह दो: "ग़नीमत का माल अल्लाह और उसके रसूल का हक़ है।"  

लिहाज़ा अल्लाह से डरो और अपने आपस के ताल्लुक़ात को ठीक करो  

और अगर ईमानदार हो तो अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो।  


1.सच्चे मोमिन तो बस वही हैं जिनके दिलों में  

अल्लाह का ज़िक्र होते ही डर पैदा हो जाता है,  

और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं तो  

उनका ईमान और बढ़ जाता है,  

और वो अपने रब पर ही भरोसा करते हैं।  

 

3.वो जो नमाज़ कायम करते हैं  

और हमने उन्हें जो कुछ दिया है  

उसमें से (अल्लाह की राह में) खर्च करते हैं।  

 

4.यही असल में सच्चे ईमानवाले हैं,  

उनके लिए उनके रब के पास बड़े दर्जे हैं,  

मग़फ़िरत है और इज्ज़त की रोज़ी है।  


5.जिस तरह तुम्हारे रब ने तुम्हें हक़ के साथ  

तुम्हारे घर से निकाला और एक गिरोह मोमिनों को ये बात नापसंद थी।  


6.वो लोग हक़ के मामले में तुमसे इस तरह झगड़ने लगे  

जैसे कि खुली बात सामने आ जाने के बाद  

उन्हें मौत की तरफ़ धकेला जा रहा हो  

और वो उसे देख रहे हों।  


7.  

और (याद करो) जब अल्लाह तुमसे वादा कर रहा था  

कि दोनों गिरोहों में से एक तुम्हारे लिए है  

और तुम ये चाहते थे कि कमज़ोर गिरोह तुम्हें मिले,  

मगर अल्लाह चाहता था कि हक़ को क़ायम करे  

और काफ़िरों की जड़ों को काट दे।  


8.  

ताकि वो हक़ को क़ायम करे और बातिल को मिटा दे,  

चाहे वो मुजरिमों को नापसंद ही क्यों न हो।  


9.  

(याद करो) जब तुम अपने रब से मदद की फ़रियाद कर रहे थे  

तो उसने तुम्हारी फ़रियाद क़ुबूल की  

कि मैं तुम्हारी मदद के लिए एक हज़ार फ़रिश्ते  

लगातार भेजने वाला हूँ।  


10.  

और अल्लाह ने इसे सिर्फ़ तुम्हें खुशखबरी देने के लिए किया,  

ताकि तुम्हारे दिल इससे मुतमइन हो जाएँ।  

और मदद तो बस अल्लाह ही की तरफ़ से होती है,  

बेशक अल्लाह ज़बरदस्त है, हिकमत वाला है।  


11.  

जब उसने अपनी तरफ़ से इत्मीनान के तौर पर  

तुम पर नींद तारी कर दी  

और आसमान से तुम पर पानी उतारा  

ताकि तुमको पाक कर दे  

और तुमसे शैतान की गंदगी दूर कर दे  

और तुम्हारे दिलों को मज़बूत करे  

और तुम्हारे क़दमों को जमा दे।  


12.  

जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों की तरफ़ वहि की  

कि मैं तुम्हारे साथ हूँ,  

तुम ईमानवालों को साबित क़दम रखो,  

मैं काफ़िरों के दिलों में रोब डाल दूँगा।  

तो तुम उनकी गर्दनों पर मारो  

और उनके हर जोड़ पर चोट करो।  


13.  

ये सज़ा इसलिए है कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का मुक़ाबला किया,  

और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल का मुक़ाबला करेगा,  

तो अल्लाह (ऐसे) सख़्त अज़ाब देने वाला है।  


14.  

ये है तुम्हारी सज़ा, तो उसे चखो,  

और काफ़िरों के लिए जहन्नुम का अज़ाब भी है।  


15.  

ऐ ईमानवालों! जब तुमसे काफ़िरों का कोई गिरोह लड़ाई के मैदान में भिड़े,  

तो उन से पीठ मत फेरो।  


16.  

और जो उस दिन (लड़ाई के वक्त) उन से पीठ फेर देगा,  

मगर ये कि जंग के लिए एक तरफ़ हटे या अपनी जमात में शामिल हो,  

तो ऐसे शख़्स पर अल्लाह का ग़ज़ब होगा,  

और उसका ठिकाना जहन्नुम है,  

और वो बहुत बुरा ठिकाना है।  


17.  

(मुसलमानों) तुमने उनको क़त्ल नहीं किया,  

बल्कि अल्लाह ने उनको क़त्ल किया,  

और (ऐ रसूल) जब तुमने (कंकड़ फेंकी),  

तो तुमने नहीं फेंकी, बल्कि अल्लाह ने फेंकी,  

ताकि वो ईमानवालों पर अपनी तरफ़ से अच्छा इम्तिहान करे।  

बेशक अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है।  


18.  

ये अल्लाह की तरफ़ से है,  

और अल्लाह काफ़िरों की चालों को कमज़ोर करने वाला है।  


19.  

अगर तुम (काफ़िरों) ने फ़ैसला मांगा था,  

तो (लो) फ़ैसला तुम्हारे सामने आ गया।  

अब अगर तुम बाज़ आ जाओ,  

तो ये तुम्हारे लिए बेहतर है,  

और अगर फिर उसी (बात) की तरफ़ लौटोगे,  

तो हम भी लौटेंगे,  

और तुम्हारी जमात तुम्हारे कुछ भी काम नहीं आ सकेगी,  

चाहे वो कितनी ही ज़्यादा क्यों न हो।  

और बेशक अल्लाह मोमिनों के साथ है।  


20.  

ऐ ईमानवालों! अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो  

और उसकी बात से मुँह मत मोड़ो, जबकि तुम सुन रहे हो।  


21.  

और उन लोगों की तरह मत हो जाओ जिन्होंने कहा:  

"हमने सुना," जबकि वो सुनते नहीं हैं।  


22.  

बेशक अल्लाह के नज़दीक सबसे बुरे जानवर वो बहरे-गूंगे लोग हैं  

जो अक्ल से काम नहीं लेते।  


23.  

और अगर अल्लाह उनमें कोई भलाई देखता,  

तो उन्हें सुनने की तौफ़ीक़ देता,  

और अगर वो सुन भी लेते,  

तो भी वो नाफ़रमानी करते हुए मुँह फेर लेते।  


24.  

ऐ ईमानवालों! अल्लाह और रसूल की पुकार पर लब्बैक कहो,  

जब वो तुम्हें बुलाए उस चीज़ की तरफ़ जो तुम्हें (सच्ची) ज़िंदगी बख़्शे।  

और जान लो कि अल्लाह इंसान और उसके दिल के बीच हस्तक्षेप करता है,  

और ये कि तुम उसी की तरफ़ जमा किए जाओगे।  


25.  

और उस फ़ितने से बचो,  

जो सिर्फ़ ज़ालिमों को ही नहीं,  

बल्कि सब को अपनी गिरफ़्त में लेगा।  

और जान लो कि अल्लाह सख़्त सज़ा देने वाला है।  


26.  

और याद करो जब तुम थोड़े थे,  

ज़मीन में कमज़ोर समझे जाते थे,  

(तुम इस डर में थे) कि लोग तुमको उचक कर न ले जाएँ,  

तो उसने तुम्हें ठिकाना दिया,  

अपनी मदद से तुम्हें ताक़त बख़्शी  

और तुम्हें अच्छी चीज़ें दीं  

ताकि तुम शुक्र अदा करो।  


27.  

ऐ ईमानवालों! अल्लाह और रसूल के साथ ख़यानत न करो  

और न ही अपनी अमानतों में ख़यानत करो,  

जबकि तुम जान रहे हो।  


28.  

और जान लो कि तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद एक आज़माइश हैं,  

और ये कि अल्लाह के पास बड़ा इनाम है।  


29.  

ऐ ईमानवालों! अगर तुम अल्लाह से डरोगे,  

तो वो तुम्हारे लिए फ़र्क़ करने की तौफ़ीक़ दे देगा  

और तुम्हारी बुराइयों को दूर कर देगा  

और तुम्हें बख़्श देगा,  

और अल्लाह बड़ा फज़ल करने वाला है।  


30.  

और (याद करो) जब काफ़िर लोग तुम्हारे बारे में मक्कारी कर रहे थे,  

कि वो तुम्हें क़ैद कर दें,  

या तुम्हें क़त्ल कर दें,  

या तुम्हें (शहर से) निकाल दें।  

वो मक्कारी कर रहे थे और अल्लाह भी मक्कारी कर रहा था,  

और अल्लाह सबसे बेहतरीन मक्कारी करने वाला है।  


31.  

और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं,  

तो वो कहते हैं: "हमने सुन लिया,  

अगर हम चाहें तो हम भी ऐसी (बातें) कह सकते हैं,  

ये तो बस अगलों की कहानियाँ हैं।"  


32.  

और जब उन्होंने कहा: "ऐ अल्लाह! अगर ये (क़ुरआन)  

आपकी तरफ़ से हक़ है,  

तो हम पर आसमान से पत्थर बरसा  

या हम पर कोई दर्दनाक अज़ाब ले आ।"  


33.  

और अल्लाह ऐसा नहीं है कि उन्हें अज़ाब दे,  

जबकि तुम उनके बीच मौजूद हो,  

और न ही अल्लाह उन्हें अज़ाब देने वाला है,  

जबकि वो माफ़ी माँग रहे हों।  


34.  

और अल्लाह उन्हें सज़ा क्यों न दे  

जबकि वो लोगों को मस्जिदे हराम से रोक रहे हैं  

हालांकि वो उसके सरपरस्त नहीं हैं।  

उसके सरपरस्त तो बस मुत्तक़ी (अल्लाह से डरने वाले) हैं,  

लेकिन उनमें से ज़्यादातर लोग नहीं जानते।  


35.  

और उनका काबे के पास नमाज़ पढ़ना  

बस सीटी बजाना और ताली बजाना है।  

तो अब अज़ाब का मज़ा चखो,  

क्योंकि तुम कुफ़्र करते थे।  


36.  

बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र किया,  

वो अपने माल को इस मक़सद से खर्च करते हैं  

कि अल्लाह के रास्ते से रोकें।  

तो वो उसे खर्च करते रहेंगे,  

फिर ये (माल खर्च करना) उनके लिए अफ़सोस का बाइस बनेगा,  

फिर वो शिकस्त खाएँगे,  

और काफ़िरों को जहन्नुम की तरफ़ हाँका जाएगा।  


37.  

ताकि अल्लाह उनके सारे बुरे अमाल को ख़तम कर दे  

और उनके अच्छे अमाल को भी।  


38.  

और (ऐ नबिया!) तुम कह दो उन काफ़िरों से:  

"अगर वो अपनी सूरत पर लौट जाएँ,  

तो जो कुछ भी उन पर हो चुका है,  

वो उनके लिए कुछ भी फायदेमंद नहीं होगा।"  


39.  

और उनसे लड़ाई करो  

जब तक फितना खत्म न हो जाए  

और अल्लाह का धर्म काबिज़ न हो जाए।  

फिर अगर वो लौट जाएँ,  

तो अल्लाह जो कुछ कर रहा है,  

उससे तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँच सकता।  


40.  

और अगर वो तुम्हें धोखा देना चाहें,  

तो अल्लाह तुम्हारे लिए काफ़ी है।  

वो तुम्हें अपनी मदद से और मोमिनों के साथ  

मदद देने वाला है।  


41.  

और ये जान लो कि जो कुछ तुम ग़नीमत के माल में से  

अल्लाह के रास्ते में खर्च करते हो,  

वो अल्लाह के रसूल और उसके परिवार के लिए है,  

और जब तुम जंग के मैदान में हो,  

तो अल्लाह तुम्हें कोई नज़र में न आए  

तो उस वक्त तुम और तुमसे पहले के जंग में  

अल्लाह की राह में जो कुछ तुमने किया है,  

उसे याद करो।  


42.  

ये वो दिन था जब तुम काफ़िरों की संख्या  

देख रहे थे और उन्हें अल्लाह की मदद की तौफ़ीक़ दी गई।  

तो तुम अल्लाह से मदद माँगते रहो।  

बेशक अल्लाह बहुत बख़्शने वाला है।  


43.  

और (याद करो) जब अल्लाह तुम्हें उनके सपने में दिखाता है,  

कि वो तुम्हारे लिए कमज़ोर हैं।  

अगर वो तुम्हें ज़्यादा दिखाता,  

तो तुम बेशक हिम्मत हार जाते  

और आपस में लड़ाई करने लगते।  

लेकिन अल्लाह ने तुम्हें (उनके सपने में)  

कमज़ोर दिखाया ताकि वो तुम्हारी ताक़त को बढ़ा सके।  


44.  

और जब तुमने उनसे मुठभेड़ की,  

तो अल्लाह ने तुम्हें मदद दी  

और तुम्हारे दिलों में स्थिरता दी।  

तुमने तबियत से न लड़ाई की।  


45.  

(लेकिन अब) तुम उनके सामने अपने रब से  

दुआ करो कि वो तुम्हें अपनी मदद की तौफ़ीक़ दे  

और तुम्हारी मुठभेड़ में तुम्हारी मदद करे।  


46.  

ताकि तुम ईमानवालों को शांति दे सको  

और काफ़िरों को ख़त्म कर सको।  


47.  

और याद करो, जब तुम अपने रब से मदद मांग रहे थे,  

तो उसने तुम्हारी मदद की।  

मैं एक हज़ार फ़रिश्तों के साथ तुम्हारी मदद करूँगा,  

जो लगातार (तुम्हारे साथ) होंगे।  


48.  

और अल्लाह ने ये सब इसलिए किया  

ताकि तुम्हारा इम्तिहान करे  

और तुम्हारे दिलों को मज़बूत करे।  

बेशक अल्लाह सब कुछ सुनने वाला,  

जानने वाला है।  


49.  

(इस दिन) तुमसे जो वादा किया गया था,  

वो सच साबित हुआ।  

तुमने पहले से भी उन लोगों के साथ  

जंग की, फिर वो तुम्हारे खिलाफ आ गए।  

तुमने उनके हज़ारों को ध्वस्त कर दिया,  

और फिर काफ़िरों के दिलों में  

रोब डाल दिया।  


50.  

अगर वो तुमसे जंग करते हैं,  

तो तुमसे न बचेगा।  

और तुम पर शैतान के मुँह से भी  

फिर कुछ नहीं आएगा।  


51.  

बेशक जो लोग अल्लाह के रास्ते में  

सच्ची बुराइयाँ करते हैं,  

तो अल्लाह उन पर सख्त अज़ाब देगा।  


52.  

जबकि तुम जंग में डटे रहोगे,  

तो तुम्हें तुम्हारे रब की मदद मिलेगी।  

बेशक अल्लाह बड़ा फज़ल करने वाला है।  


53.  

और जो लोग अल्लाह के रास्ते में  

क़त्ल होते हैं,  

वो बेशक अपनी ज़िंदगी का एक हिस्सा  

अपने हक़ में नहीं काढ़ेंगे।  


54.  

और (जब तुमने) जंग में उन पर हमला किया,  

तो तुमने देखा कि वो काफ़िर हैं,  

और फिर वो तुम्हारे ख़िलाफ़ वापस आए।  


55.  

ताकि तुम उनसे लड़ने का इरादा करो,  

बेशक अल्लाह की सज़ा सख्त है।  


56.  

और जो लोग अल्लाह के रास्ते में  

काफ़िरों को क़त्ल करते हैं,  

तो अल्लाह उनके साथ है।  


57.  

बेशक वो अल्लाह के साथ रहेंगे  

और उन्हें उसका इनाम दिया जाएगा।  


58.  

और तुम जंग में अपनी ताक़त बढ़ाओ,  

ताकि तुम काफ़िरों को परास्त कर सको।  


59.  

और याद करो, जब तुम अपने रब से  

खुद को बचाने की दुआ कर रहे थे,  

तो अल्लाह ने तुम्हारी मदद की।  


60.  

ताकि तुम उनकी शक्ति को बढ़ा सको।  


61.  

और जब तुम काफ़िरों के ख़िलाफ़ एक जंग में  

खड़े हो जाओ, तो अल्लाह की मदद पर भरोसा रखो।  

वो तुम्हारे दिलों में स्थिरता दे देगा  

और तुम्हें मजबूती से खड़ा कर देगा।  


62.  

और जब वो तुमसे ज़्यादा ताकतवर हों,  

तो तुम अल्लाह से दुआ करो,  

ताकि वो तुम्हें अपनी मदद और बख़्शिश दे।  


63.  

बेशक अल्लाह उन लोगों को पसंद करता है  

जो सच्चे दिल से लड़ाई करते हैं।  


64.  

और जो लोग अपने रब के रास्ते में  

सच्ची मेहनत करते हैं,  

उन पर अल्लाह की रहमत होगी।  


65.  

तो तुम अपने दिलों में हिम्मत रखो  

और एक-दूसरे का सहारा बनो।  

बेशक अल्लाह तुमसे मदद करेगा।  


66.  

और तुम पर जो कुछ भी आता है,  

वो तुम्हारे अपने कर्मों का फल है।  

तो अल्लाह से सच्चा इख्लास रखो,  

क्योंकि वो जानता है कि तुम क्या करते हो।  


67.  

और जो लोग अल्लाह की राह में  

अपने आपको खड़ा करते हैं,  

उनका इनाम बड़ा है।  


68.  

और जब तुम अल्लाह से मदद मांगते हो,  

तो वो तुम्हारी दुआ को सुनता है।  


69.  

तुम पर वो सख्त सज़ा नहीं देगा,  

जबकि तुम उसके रास्ते पर चल रहे हो।  


70.  

तो तुम अपने रास्ते पर डटे रहो  

और अल्लाह पर भरोसा करो।  


71.  

बेशक वो तुम्हारे लिए  

एक मजबूत सहारा है।  


72.  

और जो लोग अल्लाह पर भरोसा करते हैं,  

उनका रास्ता हमेशा सही रहता है।  


73.  

और जो लोग अल्लाह के रास्ते में  

अगले कदम बढ़ाते हैं,  

उनका इनाम उनके सामने होगा।  


74.  

बेशक अल्लाह सच्चे लोगों की मदद करता है  

और उन पर अपनी रहमत बरसाता है।  


75.  

तो तुम अल्लाह से डरो  

और उसकी राह पर चलो,  

क्योंकि वो सब कुछ जानता है।  


सूरह अल-अनफाल (सूरह 8) की 75 आयतें का तर्जुमा पूरा हुआ


सूरह तौबा (सूरह 9)