सूरह अल-अनाम (सूरह 6)

बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम  

(शुरुआत अल्लाह के नाम से, जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला है)



1. सब तारीफें अल्लाह के लिए हैं, जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया और अंधेरे और रोशनी को बनाया। फिर भी जो लोग कुफ्र करते हैं, वे अपने रब के साथ दूसरों को बराबर ठहराते हैं।


2. वही तो है जिसने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर एक समय तय कर दिया, और एक दूसरा समय (क़यामत का) भी उसी के पास तय है, फिर भी तुम शक करते हो।


3. और वही अल्लाह है आसमानों में और ज़मीन में। वह तुम्हारे छिपे हुए और ज़ाहिर कामों को जानता है, और तुम्हारे कर्मों को भी जानता है।


4. और उनके पास उनके रब की निशानियों में से कोई निशानी नहीं आई, मगर उन्होंने उससे मुँह मोड़ लिया।


5. इसलिए उन्होंने हक़ (सच्चाई) को झुठला दिया जब वह उनके पास आया, तो जल्द ही उन्हें उस चीज़ की ख़बर मिल जाएगी जिसका वे मजाक उड़ाते थे।


6. क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने उनसे पहले कितनी ही क़ौमों को हलाक कर दिया, जिन्हें हमने ज़मीन में वह ताक़त दी थी, जो तुम्हें नहीं दी, और हमने उन पर आसमान से मूसलधार बारिश भेजी और उनके नीचे नहरें बहाईं, फिर हमने उन्हें उनके गुनाहों की वजह से हलाक कर दिया और उनके बाद दूसरी क़ौमों को पैदा कर दिया।


7. और अगर हम तुम्हारे ऊपर कोई किताब कागज़ पर लिखी हुई भी उतार देते और वे उसे अपने हाथों से छूते, तो भी ये काफ़िर यही कहते, "यह तो खुला जादू है।"


8. और वे कहते हैं, "इस पर कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं उतारा गया?" अगर हम फ़रिश्ता उतारते, तो मामला तय हो चुका होता, फिर उन्हें मोहलत न दी जाती।


9. और अगर हम फ़रिश्ता उतारते, तो हम उसे आदमी की शक्ल में ही उतारते, और वे उसी तरह शक में पड़ जाते जिस तरह अब शक में पड़े हुए हैं।


10. और तुमसे पहले भी रसूलों का मज़ाक उड़ाया गया, तो जिन लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया था, उन्हें उसी चीज़ ने घेर लिया, जिसका वे मजाक उड़ाते थे।


11. कह दो, "ज़मीन में चल-फिर कर देखो कि झुठलाने वालों का क्या अंजाम हुआ।"


12. पूछो, "आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है, वह किसका है?" कहो, "अल्लाह का है।" उसने अपनी ज़ात पर रहमत लिख दी है। वह तुम सबको यक़ीनन उस दिन इकट्ठा करेगा, जिसमें कोई शक नहीं। जिन्होंने अपने आपको नुक्सान पहुँचाया है, वही ईमान नहीं लाते।


13. और वही अल्लाह है जिसकी बादशाहत रात और दिन में है, और वही सब कुछ सुनने वाला और जानने वाला है। 


14. कहो, "क्या मैं अल्लाह के सिवा किसी और को अपना सरपरस्त बनाऊं, जो आसमानों और ज़मीन का पैदा करने वाला है, और जो खिलाता है लेकिन उसे कोई नहीं खिलाता?" कह दो, "मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं सबसे पहले इस्लाम स्वीकार करने वाला बनूं, और (यह कि) मुशरिकों में से न हो जाऊं।"


15. कह दो, "अगर मैं अपने रब की नाफरमानी करूं, तो बेशक मुझे एक बड़े दिन के अज़ाब का डर है।"


16. जिस दिन वह अज़ाब उन्हें लगेगा, उस दिन उसे कोई नहीं हटा सकता और वे अज़ाब से बचाए नहीं जा सकेंगे।


17. और अगर अल्लाह तुम्हें कोई नुकसान पहुंचाए, तो उसके सिवा कोई उसे दूर करने वाला नहीं है। और अगर वह तुम्हें कोई भलाई दे, तो वह हर चीज़ पर कादिर (सर्वशक्तिमान) है।


18. और वही अपने बंदों पर हुक्मरानी करता है, और वह हिकमत वाला है, हर चीज़ की ख़बर रखने वाला है।


19. कह दो, "सबसे बड़ी गवाही किसकी है?" कह दो, "अल्लाह मेरी और तुम्हारी गवाही के लिए काफी है। और यह क़ुरआन मेरी तरफ़ वह्य किया गया है ताकि इसके ज़रिए मैं तुमको और जिन्हें यह पहुंचे, उन सबको डराऊं। क्या तुम वाकई इस गवाही को मानते हो कि अल्लाह के साथ दूसरे इलाह भी हैं?" कह दो, "मैं इसे नहीं मानता।" कह दो, "वह तो बस एक ही है और मैं उनसे बरी हूँ जिन्हें तुम (अल्लाह का) शरीक ठहराते हो।"


20. जिन लोगों को हमने किताब दी है, वे उसे इस तरह पहचानते हैं जैसे वे अपने बेटों को पहचानते हैं। जिन लोगों ने अपने आप को नुकसान में डाला है, वही ईमान नहीं लाते।


21. और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन हो सकता है, जो अल्लाह पर झूठ बाँधे या उसकी आयतों को झुठलाए? बेशक ऐसे लोग कामयाब नहीं होते।


22. और जिस दिन हम उन सबको इकट्ठा करेंगे, फिर उन लोगों से कहेंगे जो शिर्क करते थे, "कहाँ हैं तुम्हारे वे शरीक जिनका तुम दावा करते थे?"


23. फिर उनका कोई बहाना न रहेगा सिवाय इसके कि वे कहेंगे, "हमारी कसम है अपने रब की, हम मुशरिक न थे।"


24. देखो, उन्होंने खुद अपने ऊपर कैसे झूठ बांधा, और वह सब कुछ जो वे गढ़ते थे, उनसे गुम हो गया। 


25. और उनमें से कुछ लोग ऐसे हैं जो तुम्हारी बातें सुनते हैं, लेकिन हमने उनके दिलों पर पर्दे डाल दिए हैं ताकि वे इसे न समझ सकें, और उनके कानों में भारीपन है। अगर वे हर निशानी देख लें तब भी वे ईमान नहीं लाएंगे। यहां तक कि जब वे तुम्हारे पास आकर तुमसे झगड़ते हैं, तो जो लोग इनकार करते हैं, वे कहते हैं, "यह तो बस पहले लोगों की कहानियां हैं।"


26. और वे (दुनिया में) लोगों को इससे रोकते हैं और खुद भी इससे दूर रहते हैं। वे बस अपने आप को तबाही में डाल रहे हैं, मगर उन्हें इसका एहसास नहीं है।


27. काश, तुम देख पाते जब उन्हें आग के किनारे खड़ा किया जाएगा, तो वे कहेंगे, "हाय काश! हमें वापस भेज दिया जाता ताकि हम अपने रब की आयतों को न झुठलाएं और मोमिनों में से हो जाएं!"


28. (बल्कि) जो कुछ वे पहले छुपाते थे, वह अब उनके सामने आ गया है। और अगर उन्हें वापस भेज दिया जाए, तो फिर वही करेंगे जिससे उन्हें रोका गया था। वे तो बिलकुल झूठे हैं।


29. और वे कहेंगे, "यह सिर्फ हमारी दुनिया की ज़िन्दगी है, और हम दुबारा उठाए नहीं जाएंगे।"


30. और काश तुम देख सको जब वे अपने रब के सामने खड़े किए जाएंगे! वह कहेगा, "क्या यह (दोबारा उठना) सच नहीं है?" वे कहेंगे, "हाँ, हमारे रब की कसम!" वह कहेगा, "तो अब अज़ाब का मज़ा चखो, क्योंकि तुम इनकार किया करते थे।"


31. जो लोग अपने मिलने की उम्मीद नहीं रखते, वे कहते हैं, "हम पर फ़रिश्ते क्यों नहीं उतारे जाते, या हम अपने रब को क्यों नहीं देखते?" वे अपने दिलों में घमंड करने लगे और हद से गुज़र गए।


32. जिस दिन वे फ़रिश्तों को देखेंगे, उस दिन अपराधियों के लिए कोई ख़ुशी की बात न होगी, और वे कहेंगे, "हमें रोका जाए।"


33. और हमने उनके किए हुए अच्छे कामों की तरफ़ रुख किया और उन्हें धूल के ज़र्रों की तरह बिखेर दिया। 


34. उस दिन जन्नत के लोग बेहतर ठिकाने पर और आराम करने की बेहतरीन जगह पर होंगे।

 

35. ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो और उसकी तरफ़ (क़रीब होने का) वसीला तलाश करो, और उसकी राह में जिहाद करो ताकि तुम कामयाब हो सको।


36. बेशक जो लोग इनकार करते हैं, अगर उनके पास सारी धरती की दौलत हो और उसके साथ उतनी ही और हो, ताकि वे उसे क़यामत के दिन के अज़ाब से बचने के लिए फ़िद्या (छुटकारे) में दे दें, तो भी वह उनसे क़ुबूल नहीं की जाएगी। और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।


37. वे आग से बाहर निकलना चाहेंगे, मगर वे उससे निकलने वाले नहीं हैं, और उनके लिए हमेशा रहने वाला अज़ाब है।


38. और जो चोर मर्द और चोर औरत हैं, उनके (अपराध के) बदले उनके हाथ काट दो। यह अल्लाह की तरफ़ से सज़ा है। और अल्लाह सब पर ग़ालिब है, हिकमत वाला है।


39. फिर जो अपने गुनाह के बाद तौबा कर ले और अपनी इस्लाह कर ले, तो अल्लाह उसकी तौबा क़ुबूल करेगा। बेशक अल्लाह बख्शने वाला, रहम करने वाला है।


40. क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह ही के लिए आसमानों और ज़मीन की बादशाहत है? वह जिसे चाहे अज़ाब दे और जिसे चाहे बख्श दे। और अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।


41. ऐ रसूल! वे लोग तुम्हें दुखी न करें जो कुफ़्र में दौड़ते हैं, वे जो अपने मुँह से कहते हैं "हम ईमान लाए" जबकि उनके दिल ईमान नहीं लाए, और यहूदी जो झूठ सुनते हैं, झूठ के पीछे चलते हैं। वे दूसरे लोगों के पास आते हैं, जो तुम्हारे पास नहीं आए थे। वे कलाम को उसके असल मक़सद से फेर देते हैं और कहते हैं, "अगर तुम्हें यह (हुक्म) दिया जाए, तो मान लो, और अगर यह न दिया जाए, तो बचो।" और जिसे अल्लाह गुमराही में छोड़ दे, उसके लिए तुम्हारे पास अल्लाह के (हुक्म) के खिलाफ़ कोई भी मदद करने वाला नहीं है। 


42. वे लोग झूठ सुनते हैं, हराम खाते हैं। अगर वे तुम्हारे पास आएं तो तुम चाहो तो उनके बीच फैसला करो या उन्हें छोड़ दो। अगर तुम उन्हें छोड़ दो, तो वे तुम्हें कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचा सकते। और अगर तुम उनके बीच फैसला करो, तो इनसाफ से फैसला करो। बेशक अल्लाह इनसाफ करने वालों को पसंद करता है।


43. और वे किस तरह तुम्हें हाकिम बनाते हैं जबकि उनके पास तौरात (मौजूद) है, जिसमें अल्लाह का हुक्म मौजूद है। फिर उसके बाद भी वे (तौरात से) मुंह फेर लेते हैं, और वे ईमानदार नहीं हैं।


44. बेशक, हमने तौरात नाज़िल की, जिसमें हिदायत और नूर (रौशनी) है। नबी जो अल्लाह के फ़रमाबरदार थे, उस पर अमल करते रहे, और यहूदियों के लिए अल्लाह के नबी, रब्बानी उलमा और फुकहा उस पर अमल करते थे, क्योंकि उन्हें अल्लाह की किताब की हिफ़ाज़त का ज़िम्मेदार बनाया गया था और वे उसके गवाह थे। तो लोगों से न डरो, बल्कि मुझसे डरो। और मेरी आयतों के बदले थोड़ी क़ीमत मत लो। और जो लोग अल्लाह की नाज़िल की हुई किताब के मुताबिक फैसला न करें, तो वही लोग काफ़िर हैं।


45. और हमने उनमें यह हुक्म लिखा था कि जान के बदले जान, आँख के बदले आँख, नाक के बदले नाक, कान के बदले कान, दांत के बदले दांत और घावों का बदला है। फिर जो कोई इस बदले को माफ़ कर दे, तो वह उसके लिए कफ़्फ़ारा है। और जो लोग अल्लाह के नाज़िल किए हुए हुक्म के मुताबिक फैसला न करें, वही लोग ज़ालिम हैं।


46. और हमने उनके नक्शे-कदम पर मरियम के बेटे ईसा को भेजा, जो अपने से पहले की तौरात की तस्दीक करने वाले थे, और हमने उन्हें इंजील अता की, जिसमें हिदायत और नूर था, और वह अपने से पहले की तौरात की तस्दीक करती थी, और परहेज़गारों के लिए हिदायत और नसीहत थी।


47. और इंजील वाले उस चीज़ के मुताबिक फैसला करें जो अल्लाह ने उसमें नाज़िल की है। और जो लोग अल्लाह के नाज़िल किए हुए हुक्म के मुताबिक फैसला न करें, वही लोग फासिक हैं।


48. और हमने तुम पर (ऐ नबी!) किताब (कुरआन) नाज़िल की, जो पहले किताबों की तस्दीक करने वाली और उन पर निगेहबान है। तो तुम उनके बीच उस चीज़ के मुताबिक फैसला करो जो अल्लाह ने नाज़िल की है और उनके झूठी ख्वाहिशों के पीछे न चलो। जो हुक्म हम में से हर एक के लिए तय किया गया है, हम ने तुम्हें उसकी हिदायत दी है और उससे पहले की किताबों की पुष्टि की है।


49. और (ऐ नबी!) तुम उनके दरमियान अल्लाह के नाज़िल किए हुए हुक्म के मुताबिक फैसला करो और उनकी ख्वाहिशों की पैरवी न करो, और उनसे बचते रहो कि वे किसी हुक्म से जो अल्लाह ने तुम पर नाज़िल किया है, तुम्हें फेर न दें। फिर अगर वे मुंह मोड़ लें तो जान लो कि अल्लाह उन्हें उनके कुछ गुनाहों की वजह से मुसीबत में डालना चाहता है। और बेशक, बहुत से लोग फ़ासिक हैं।


50. क्या वे जाहिलियत के दौर का फैसला चाहते हैं? और ईमान रखने वालों के लिए अल्लाह से बेहतर कौन फैसला करने वाला हो सकता है?


51. ऐ ईमान वालो! यहूद और नसारा को दोस्त न बनाओ। वे एक-दूसरे के दोस्त हैं, और तुममें से जो भी उन्हें दोस्त बनाएगा, वह उन्हीं में से होगा। बेशक, अल्लाह ज़ालिम क़ौम को हिदायत नहीं देता।


52. तो तुम देखोगे कि जिनके दिलों में बीमारी है, वे उनकी तरफ तेज़ी से बढ़ते हैं और कहते हैं, "हमें डर है कि हम पर कोई मुसीबत न आ जाए।" तो क़रीब है कि अल्लाह कोई फ़तह (कामयाबी) लाए या अपनी तरफ से कोई और बात कर दे, फिर ये लोग उस पर शर्मिंदा हों जो उन्होंने अपने दिलों में छुपाया था।


53. और ईमान वाले कहेंगे, "क्या ये वही लोग हैं जो अल्लाह की कसमें खाकर तुमसे कहते थे कि हम तुम्हारे साथ हैं?" उनके सारे आमाल (काम) ज़ाया हो गए और वे नुक़सान उठाने वाले हो गए।


54. ऐ ईमान वालो! तुममें से जो अपने दीन से फिर जाए, तो अल्लाह ऐसे लोगों को लाएगा जिन्हें वह पसंद करता है और जो उसे पसंद करते हैं, जो मोमिनों के लिए नरम होंगे और काफ़िरों पर सख्त होंगे, जो अल्लाह की राह में जिहाद करेंगे और किसी मलामत (बुराई) करने वाले की मलामत से नहीं डरेंगे। यह अल्लाह का फ़ज़्ल है, जिसे वह चाहता है, अता करता है। और अल्लाह वुसअत (समर्थ) वाला, जानने वाला है।


55. तुम्हारा दोस्त तो बस अल्लाह है, और उसका रसूल, और वे ईमान वाले जो नमाज़ क़ायम करते हैं और ज़कात देते हैं और वे अल्लाह के आगे झुकने वाले हैं।


56. और जो अल्लाह और उसके रसूल और ईमान वालों को दोस्त बनाएगा, तो (याद रखो कि) अल्लाह की जमाअत ही ग़ालिब रहने वाली है।


57. ऐ ईमान वालो! उन लोगों में से जो तुमसे पहले किताब दिए गए और जिन्होंने तुम्हारे दीन को मज़ाक और खेल बना रखा है, और काफ़िरों को अपना दोस्त न बनाओ। और अल्लाह से डरते रहो, अगर तुम ईमान वाले हो।


58. और जब तुम नमाज़ के लिए पुकारते हो, तो वे इसका मज़ाक और खेल बनाते हैं। यह इसलिए है कि वे लोग अक़्ल नहीं रखते। 


59. (ऐ नबी!) कहो, "ऐ अहले किताब! क्या तुम हमसे इसलिए दुश्मनी रखते हो कि हम अल्लाह पर और जो कुछ हमारी तरफ़ नाज़िल हुआ और जो कुछ पहले नाज़िल हुआ, उस पर ईमान लाए हैं, और बेशक तुम में से बहुत से लोग फ़ासिक़ हैं?" 


60. कहो, "क्या मैं तुम्हें बताऊं कि अल्लाह के यहाँ सज़ा में इससे भी बढ़कर कौन है?" वे लोग हैं जिन पर अल्लाह ने लानत की और जिन पर उसका ग़ज़ब टूटा और जिनमें से कुछ को उसने बंदर और सुअर बना दिया और जिन्होंने शैतान की पूजा की। यही लोग हैं जो दर्जे में बुरे हैं और सवाब (राह) से बहुत दूर जा चुके हैं।


61. और जब वे तुम्हारे पास आते हैं, तो कहते हैं, "हम ईमान लाए।" हाला'कि वे कुफ्र लेकर आए थे और वही लेकर चले गए। और अल्लाह जानता है जो कुछ वे छुपाते हैं।


62. और तुम देखोगे कि उनमें से बहुत से लोग गुनाह, ज़्यादती और हराम खाने में दौड़ते हैं। बेशक, वे जो काम कर रहे हैं, बहुत बुरा है।


63. उनके उलमा और फ़क़ीह उन्हें गुनाह करने और हराम खाने से क्यों नहीं रोकते? बेशक, वे जो कर रहे हैं, बहुत बुरा है।


64. और यहूद कहते हैं, "अल्लाह का हाथ बंधा हुआ है।" उनके अपने हाथ बंधे हुए हैं, और उनकी इस बात पर उन पर लानत है। बल्कि अल्लाह के दोनों हाथ खुले हुए हैं। वह जैसे चाहता है, खर्च करता है। और जो कुछ तुम्हारे रब की तरफ से तुम्हारी तरफ नाज़िल किया गया है, वह उनमें से बहुतों की सरकशी और कुफ्र को और बढ़ा देता है। और हमने उनके बीच क़यामत तक दुश्मनी और अदावत डाल दी है। जब भी वे जंग की आग भड़काते हैं, अल्लाह उसे बुझा देता है। और वे ज़मीन में फ़साद (अराजकता) फैलाने में दौड़ते हैं। और अल्लाह फ़सादियों को पसंद नहीं करता।


65. और अगर अहले किताब ईमान लाते और परहेज़गारी करते, तो हम उनकी बुराइयों को उनसे दूर कर देते और उन्हें नेमतों वाले बाग़ों में दाखिल करते।


66. और अगर वे तौरात, इंजील और जो कुछ उनके रब की तरफ से उनकी तरफ नाज़िल किया गया है, उसको क़ायम रखते, तो उनके ऊपर से भी (रिज़्क़ बरसता) और उनके पांवों के नीचे से भी (रिज़्क़ निकलता)। उनमें से एक जमाअत (समुदाय) तो सीधी राह पर है, मगर उनमें से बहुत से लोग ऐसे हैं जो बुरे काम कर रहे हैं।


67. ऐ रसूल! जो कुछ आपके रब की तरफ से आपकी तरफ़ नाज़िल किया गया है, वह लोगों तक पहुंचा दीजिए। अगर आपने ऐसा न किया, तो आप उसका पैग़ाम पहुंचाने में कोताही कर रहे होंगे। और अल्लाह आपको लोगों से बचाएगा। बेशक, अल्लाह काफ़िर लोगों को मंज़िल तक नहीं पहुंचाता।


68. कह दो, "ऐ अहले किताब! जब तक तुम तौरात, इंजील और जो कुछ तुम्हारे रब की तरफ से नाज़िल किया गया है, उसे क़ायम नहीं करोगे, तुम्हारा कुछ भी दीन (मज़हब) नहीं होगा।" और जो कुछ तुम्हारे रब की तरफ से तुम्हारी तरफ नाज़िल किया गया है, वह उनमें से बहुतों की सरकशी और कुफ्र को और बढ़ा देता है, तो काफ़िर लोगों पर अफ़सोस न करो।


69. बेशक जो लोग ईमान लाए और जो यहूदी हुए और सबई (एक पुरानी उम्मत के लोग) और नसरानी (ईसाई), उन में से जो भी अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान लाए और अच्छे अमल किए, तो उन पर न कोई ख़ौफ होगा और न वे ग़मगीन होंगे।


70. हमने बनी इसराईल से अहद (वचन) लिया और उनकी तरफ़ रसूल भेजे। जब भी उनके पास कोई रसूल वह बात लेकर आया, जो उनके नफ्स (इच्छाओं) के खिलाफ थी, तो उन्होंने एक जमाअत (समूह) को झुठला दिया और एक जमाअत को क़त्ल कर दिया।


71. और उन्होंने यह गुमान कर लिया कि कोई मुसीबत न आएगी, तो वे अंधे और बहरे हो गए। फिर अल्लाह ने उनकी तौबा क़ुबूल की। फिर उनमें से बहुत से लोग अंधे और बहरे हो गए। और अल्लाह उनके कामों को देख रहा है।


72. बेशक वह लोग काफ़िर हो गए, जिन्होंने कहा, "अल्लाह मसीह इब्ने मरियम ही है," जबकि मसीह ने कहा था, "ऐ बनी इसराईल! अल्लाह की इबादत (बंदगी) करो, जो मेरा रब और तुम्हारा रब है।" बेशक जो शख्स अल्लाह का शिर्क करेगा, अल्लाह उस पर जन्नत (स्वर्ग) हराम कर देगा, और उसका ठिकाना जहन्नम (नर्क) होगा, और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं होगा।


73. बेशक वे लोग भी काफ़िर हो गए, जिन्होंने कहा, "अल्लाह तीन में का तीसरा है," जबकि एक ही माबूद है। और अगर वे अपने इस कहे से बाज़ न आएंगे, तो उनमें से जिन लोगों ने कुफ्र किया, उन्हें दर्दनाक अज़ाब पहुंचेगा।


74. क्या वे अल्लाह की तरफ़ तौबा नहीं करते और उससे मग़फ़िरत (क्षमा) नहीं मांगते? हालाँकि अल्लाह बख़्शने वाला, रहम करने वाला है।


75. मसीह इब्ने मरियम सिर्फ़ एक रसूल हैं। उनसे पहले बहुत से रसूल गुजर चुके हैं, और उनकी मां सिद्दीका (सच्ची) थीं। वे दोनों खाना खाते थे। देखो, हम किस तरह उनसे आयतों को वाज़ेह (स्पष्ट) करके बयान कर रहे हैं, फिर देखो ये किस तरह (हक़ से) फिरे जाते हैं।


76. कह दो, "क्या तुम अल्लाह के सिवा उस चीज़ की इबादत (बंदगी) करते हो, जो न तुम्हें नुक्सान पहुंचाने का इख्तियार रखती है और न नफ़ा पहुंचाने का?" और अल्लाह ही सब कुछ सुनने वाला, जानने वाला है।


77. कह दो, "ऐ अहले किताब! अपने दीन में नाहक़ (बेकार) ग़लू (अत्यधिक अतिशयोक्ति) न करो, और उन लोगों की ख़्वाहिशों का अनुसरण न करो, जो पहले से गुमराह हो चुके हैं, और बहुतों को गुमराह कर चुके हैं, और सीधा रास्ता छोड़कर भटक गए हैं।"


78. बनी इसराईल के काफ़िरों पर दाऊद और ईसा इब्ने मरियम की ज़बान से लानत की गई, क्योंकि वे नाफ़रमान थे और हद से बढ़ जाते थे।


79. वे एक-दूसरे को बुरे कामों से नहीं रोकते थे, जो उन्होंने किए। बहुत ही बुरा था वह काम जो वे करते थे।


80. तुम उनमें से बहुत से लोगों को देखोगे कि वे काफ़िरों से दोस्ती करते हैं। बहुत बुरी है वह चीज़ जो उन्होंने अपने लिए आगे भेजी, कि अल्लाह उनसे नाराज़ हो गया, और वे अज़ाब में हमेशा रहेंगे।


81. अगर वे अल्लाह और नबी पर और उस चीज़ पर ईमान लाते, जो उसकी तरफ से नाज़िल की गई, तो इन काफ़िरों को अपना दोस्त न बनाते, लेकिन उनमें से बहुत से लोग फासिक़ (नाफरमान) हैं।


82. तुम ईमान वालों का सबसे बड़ा दुश्मन यहूदियों और मुशरिकों (अल्लाह का शिर्क करने वालों) को पाओगे, और ईमान वालों के लिए सबसे नज़दीकी दोस्त उन लोगों को पाओगे, जिन्होंने कहा, "हम नसरानी हैं।" यह इसलिए कि उनमें आलिम (विद्वान) और राहिब (संन्यासी) हैं, और वे तकब्बुर (घमंड) नहीं करते।


83. और जब वे उस चीज़ को सुनते हैं, जो रसूल की तरफ नाज़िल की गई, तो तुम देखोगे कि उनके आंखों से आंसू बहने लगते हैं, क्योंकि उन्होंने हक़ को पहचान लिया। वे कहते हैं, "ऐ हमारे रब! हम ईमान लाए, हमें गवाही देने वालों में लिख ले।"


84. और हमें अल्लाह पर और जो हक़ हमारे पास आया है, उस पर ईमान न लाने की क्या वजह हो सकती है, जबकि हम चाहते हैं कि हमारा रब हमें नेक लोगों के साथ दाखिल करे?


85. अल्लाह ने उन्हें उनकी इस बात के बदले वह बाग़ात (जन्नत के बाग) इनायत फरमाए, जिनके नीचे नहरें बहती हैं। वे उनमें हमेशा रहेंगे, और यह नेकी करने वालों का बदला है।


86. और जिन लोगों ने कुफ्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वे जहन्नम (नर्क) के साथी हैं।


87. ऐ ईमान वालो! अल्लाह ने तुम्हारे लिए जो पाक चीज़ें हलाल की हैं, उन्हें अपने ऊपर हराम न करो, और हद से न बढ़ो। बेशक अल्लाह हद से बढ़ने वालों को पसंद नहीं करता।


88. और जो हलाल और पाक चीज़ें अल्लाह ने तुम्हें दी हैं, उन्हें खाओ, और अल्लाह से डरो, जिस पर तुम ईमान रखते हो।


89. अल्लाह तुम्हारी बे-इरादा कसमों पर तुम्हें पकड़ नहीं करता, लेकिन जिन कसमों को तुमने जान-बूझकर खाया है, उनकी वजह से तुम पर कफ्फारा (प्रायश्चित) वाजिब होता है। (वह यह है कि) दस मसकीनों (गरीबों) को औसत दर्जे का खाना खिलाओ, जो तुम अपने घरवालों को खिलाते हो, या उन्हें कपड़े पहनाओ, या एक गुलाम को आज़ाद करो। और जो ऐसा न कर सके, वह तीन दिन रोज़े रखे। यह तुम्हारी खाई हुई कसमों का कफ्फारा है। और अपनी कसमों की हिफाज़त करो। इसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें बयान करता है, ताकि तुम शुक्र करो।


90. ऐ ईमान वालो! शराब, जुआ, बुतों की पूजा और पांसे नापाक और शैतान के काम हैं, इनसे बचो, ताकि तुम फलाह (सफलता) पाओ।


91. शैतान तो यही चाहता है कि शराब और जुए के ज़रिए तुम्हारे बीच दुश्मनी और बुग़ज़ डाल दे, और तुम्हें अल्लाह की याद और नमाज़ से रोक दे। तो क्या तुम (इनसे) बाज़ नहीं आओगे?


92. और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत (आज्ञापालन) करो, और बचते रहो। फिर अगर तुमने मुंह मोड़ा, तो जान लो कि हमारे रसूल के ज़िम्मे सिर्फ साफ़-साफ़ (पैग़ाम) पहुंचा देना है।


93. ईमान वालों पर वह चीज़ हराम नहीं की गई, जिसे वे पहले खा चुके हैं, जब तक कि वे मुत्तकी (परहेज़गार) बनकर ईमान लाएं और नेक अमल करें, फिर मुत्तकी रहें और ईमान बनाए रखें, फिर मुत्तकी रहें और नेकी करें। और अल्लाह नेक लोगों से मोहब्बत करता है।


94. ऐ ईमान वालो! अल्लाह तुम्हें ऐसे शिकार के साथ आज़माएगा, जो तुम्हारे हाथों और तुम्हारे नेज़ों की पहुंच में होगा, ताकि वह जान ले कि कौन उससे ग़ैब में डरता है। फिर जो इसके बाद ज़्यादती करे, उसके लिए दर्दनाक सज़ा है।


95. ऐ ईमान वालो! एहराम (हज या उमरा की हालत) में शिकार न मारो। और जो तुम में से जानबूझकर ऐसा करे, तो उसकी सज़ा यह है कि जो जानवर उसने मारा है, उसी के बराबर एक जानवर काबा पहुंचा कर कुर्बानी दे। इस काम का फैसला तुम में से दो आदिल (इंसाफ़ पसंद) आदमी करेंगे। या फिर वह कफ्फारा दे, यानी गरीबों को खाना खिलाए, या उसके बराबर रोज़े रखे, ताकि वह अपने किए का मज़ा चखे। अल्लाह ने जो कुछ गुज़रा, उसे माफ़ कर दिया। लेकिन जो फिर ऐसा करे, तो अल्लाह उससे बदला लेगा। और अल्लाह ग़ालिब (सब पर हावी) और बदला लेने वाला है।


96. तुम्हारे लिए दरिया का शिकार (मछली वगैरह) और उसका खाना हलाल किया गया है, ताकि तुम खुद भी फायदा उठाओ और मुसाफिर भी। और जब तुम एहराम में हो, तो तुम्हारे लिए शिकार करना हराम कर दिया गया है। और अल्लाह से डरो, जिसके पास तुम्हें जमा किया जाएगा।


97. अल्लाह ने काबा, उस मुकद्दस घर को, लोगों के लिए इज्ज़त और सुकून का बाइस (कारण) बनाया है, और हराम महीने को, काबा के पास कुर्बान किए जाने वाले जानवरों को और उन जानवरों को जिनकी गर्दन में निशानी के तौर पर पट्टे डाले जाते हैं। यह इसलिए है ताकि तुम जान लो कि अल्लाह जानता है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है, और अल्लाह हर चीज़ से वाकिफ़ है।


98. जान लो कि अल्लाह सख्त सज़ा देने वाला है और यह भी कि अल्लाह बख्शने वाला और मेहरबान है।


99. रसूल के ज़िम्मे सिर्फ (पैगाम) पहुंचा देना है, और अल्लाह जानता है जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम छिपाते हो।


100. कह दो कि नापाक और पाक बराबर नहीं हो सकते, चाहे नापाक की कसरत (बहुतायत) तुम्हें हैरान कर दे। तो ऐ अक्ल वालों! अल्लाह से डरो, ताकि तुम कामयाब हो सको।


101. ऐ ईमान वालो! ऐसी चीज़ों के बारे में सवाल न करो, जो अगर तुम्हारे लिए ज़ाहिर कर दी जाएं तो तुम्हें तकलीफ देंगी। लेकिन अगर तुम उनके बारे में कुरान के नाज़िल होने के वक्त सवाल करोगे, तो तुम्हें ज़ाहिर कर दी जाएंगी। अल्लाह ने उनसे दरगुज़र (छोड़) कर दी है। और अल्लाह बख्शने वाला, हलिम (बर्दाश्त करने वाला) है।


102. तुमसे पहले एक क़ौम ने इन्हीं जैसी चीज़ों के बारे में सवाल किए, फिर वे उनके इनकार करने वाले हो गए।


103. अल्लाह ने न तो 'बहिरा' (कानों चिरे हुए ऊंट), न 'साइबा' (अज़ाद किए गए ऊंट), न 'वसीला' (दो बच्चों वाली बकरी), न 'हामी' (सवारी के लिए छोड़ दिया हुआ ऊंट) को मुकद्दस ठहराया। लेकिन काफ़िर लोग अल्लाह पर झूठ गढ़ते हैं, और उनमें से ज्यादातर नहीं समझते।


104. और जब उनसे कहा जाता है, "आओ, उस चीज़ की तरफ जो अल्लाह ने नाज़िल की है, और रसूल की तरफ," तो वे कहते हैं, "हमारे लिए वही काफ़ी है, जिस पर हमने अपने बाप-दादाओं को पाया।" चाहे उनके बाप-दादा न कुछ जानते हों और न हिदायत पर हों।


105. ऐ ईमान वालो! अपनी फिक्र (ख़बर) रखो। जब तुम हिदायत पर हो, तो कोई गुमराह तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता। तुम सबकी वापसी अल्लाह ही की तरफ है। फिर वह तुम्हें बता देगा कि तुम क्या करते रहे हो।


106. ऐ ईमान वालो! जब तुममें से किसी की मौत का वक्त आ जाए, और वह वसीयत कर रहा हो, तो तुम्हारे बीच गवाही देने वाले दो अदिल (इंसाफ़ पसंद) आदमी होने चाहिए, या फिर तुम्हारे गैरों में से दो लोग, अगर तुम सफर में हो और तुम्हें मौत आ जाए। अगर तुम उनके बारे में शक करो, तो नमाज़ के बाद उन्हें रोक लो, ताकि वे अल्लाह की कसम खाएं कि हम इस (गवाही) के बदले कोई कीमत नहीं लेंगे, चाहे वह हमारा करीबी ही क्यों न हो, और हम अल्लाह की गवाही को नहीं छिपाएंगे, वरना हम गुनहगारों में से होंगे।


107. फिर अगर यह मालूम हो जाए कि उन दोनों (गवाहों) ने गुनाह किया है, तो उनके स्थान पर वे दो आदमी खड़े हों, जो उन लोगों में से हों जिनका हक़ मारा गया हो, और फिर वे अल्लाह की कसम खाएं कि "हमारी गवाही उन दोनों की गवाही से ज़्यादा सही है और हमने हद से नहीं गुजरा है, वरना हम ज़ालिमों में से होंगे।"


108. इस तरह यह तरीका ज्यादा मुनासिब है कि लोग सही गवाही पेश करें, या यह डरें कि उनकी कसमें दूसरी कसमों के बाद रद्द कर दी जाएंगी। और अल्लाह से डरो और उसकी बातें ध्यान से सुनो। और अल्लाह फासिक लोगों को हिदायत नहीं देता।


109. जिस दिन अल्लाह सारे रसूलों को इकट्ठा करेगा और पूछेगा, "तुम्हें क्या जवाब दिया गया?" वे कहेंगे, "हमें कुछ मालूम नहीं, बेशक तू ही सारे छिपे हुए भेद जानता है।"


110. (याद करो) जब अल्लाह कहेगा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! मेरे उन एहसानों को याद करो जो मैंने तुम पर और तुम्हारी माँ पर किए। जब मैंने तुम्हें रूह-उल-कुद्स (जिबरील) से ताक़त दी, तुम झूलों में और बुजुर्गी में लोगों से बात करते थे। और जब मैंने तुम्हें किताब, हिकमत, तौरात और इंजील सिखाई। और जब तुम मेरी इजाज़त से मिट्टी से परिंदे की सूरत बनाते थे, फिर उसमें फूंक मारते थे, तो वह मेरी इजाज़त से उड़ने वाला परिंदा बन जाता था। और तुम मेरी इजाज़त से अंधे और कोढ़ी को अच्छा कर देते थे, और मेरी इजाज़त से मुर्दों को जिंदा कर देते थे। और जब मैंने बनी इसराईल को तुमसे दूर रखा, जब तुम उनके पास खुले निशानियाँ लेकर आए और उनमें से जो लोग काफ़िर हो गए थे, उन्होंने कहा, 'यह तो खुला जादू है।'"


111. और जब मैंने हवारियों (हज़रत ईसा के शागिर्दों) के दिल में यह डाला कि "मुझ पर और मेरे रसूल पर ईमान लाओ," तो उन्होंने कहा, "हम ईमान लाए, और तू गवाह रह कि हम मुसलमान हैं।"


112. (याद करो) जब हवारियों ने कहा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! क्या तुम्हारा रब ऐसा कर सकता है कि हम पर आसमान से एक दस्तरख़्वान उतारे?" ईसा ने कहा, "अल्लाह से डरो, अगर तुम ईमान वाले हो।"


113. उन्होंने कहा, "हम यह चाहते हैं कि हम उससे खाएं और हमारे दिल मुतमइन हो जाएं और हम जान लें कि तुमने हमसे सच कहा और हम उसके गवाह हो जाएं।"


114. ईसा (मरयम के बेटे) ने कहा, "ऐ अल्लाह! हमारे रब! हम पर आसमान से एक दस्तरख़्वान उतार, जो हमारे पहले और बाद के लोगों के लिए एक ईद (खुशी) हो और तेरी तरफ़ से एक निशानी हो, और हमें रोज़ी दे, और तू सबसे बेहतरीन रोज़ी देने वाला है।"


115. अल्लाह ने कहा, "मैं यह दस्तरख़्वान तुम पर ज़रूर उतारूँगा, लेकिन इसके बाद तुम में से जो शख्स भी इनकार करेगा, तो मैं उसे ऐसा सज़ा दूँगा जो दुनिया जहान में किसी और को न दूँगा।"


116. और जब अल्लाह कहेगा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! क्या तुमने लोगों से कहा था कि मुझे और मेरी माँ को अल्लाह के सिवा माबूद (पूजनीय) बना लो?" ईसा कहेंगे, "तू पाक है! मुझे यह हक़ नहीं कि मैं वह बात कहूं, जिसका मुझे कोई हक़ नहीं। अगर मैंने ऐसा कहा होता, तो तू उसे ज़रूर जानता, क्योंकि जो मेरे दिल में है, तू उसे जानता है, लेकिन मैं जो तेरे दिल में है, उसे नहीं जानता। बेशक तू ही छिपे हुए राज़ों का जानने वाला है।"


117. "मैंने उनसे केवल वही बात कही, जिसका तूने मुझे हुक्म दिया था, कि 'अल्लाह की इबादत करो, जो मेरा और तुम्हारा रब है।' और जब तक मैं उनके बीच रहा, मैं उन पर निगरानी करता रहा। फिर जब तूने मुझे उठा लिया, तो तू ही उन पर निगरानी रखने वाला था, और तू हर चीज़ पर गवाह है।"


118. "अगर तू उन्हें सज़ा दे, तो वे तेरे बन्दे हैं, और अगर तू उन्हें माफ़ कर दे, तो तू ही ज़बरदस्त और हिकमत वाला है।"


119. अल्लाह कहेगा, "यह वह दिन है, जब सच्चों को उनकी सच्चाई फायदा पहुंचाएगी। उनके लिए ऐसे बाग़ात हैं, जिनके नीचे नहरें बहती हैं, वे उनमें हमेशा हमेशा रहेंगे। अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे उससे राज़ी हुए। यह सबसे बड़ी कामयाबी है।"


120. सारे आसमानों और ज़मीन और जो कुछ उनमें है, सब पर अल्लाह ही की हुकूमत है, और वह हर चीज़ पर क़ादिर है।


121. "यह वो दिन है जब अल्लाह उन्हें बुलाएगा और कहेगा, 'ऐ दोज़ख़ में जाने वालों! क्या तुमने मेरी आयतों का इंकार किया और अपनी जानों को भूलकर दूसरी चीज़ों को तरजीह दी?'"


122. "और जब उन्हें अल्लाह की आयतें सुनाई जाएंगी, तो वो अपने गुनाहों का इल्ज़ाम डालेंगे। वो कहेंगे, 'हम पर दोज़ख़ का साया हो, अब हमसे कोई बात न करो।'"


123. "क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने सब कुछ तुम्हारे लिए पैदा किया है, और जब तुमने उस पर नज़र डाली, तो तुमने क्या पाया?"


124. "उनका ये हाल है कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है। वो अजीब और अज़ीम है।"


125. "जिस दिन वो सच्चे मोमिनों को उनके अच्छे अमल का फल देगा, और वो कहेगा, 'आओ, तुम मेरे बंदों की तरह आओ।'"


126. "और जो लोग अल्लाह की आयतों से मुंह मोड़ते हैं, उनके लिए दोज़ख़ का दर्दनाक अज़ाब है।"


127. "उनके गुनाहों का बड़ा ज़िक्र होगा, और वो अपने किए पर पछताएंगे।"


128. "और जो अल्लाह की राह में जद्दोजहद करते हैं और अपने दिलों को दुरुस्त करते हैं, वो अल्लाह के क़रीब हैं।"


129. "यह वो बड़ा इनाम है, जो अल्लाह अपनी रहमत से देता है।"


130. "ऐ लोगो! अल्लाह के रास्ते में चलो और सच्चाई के साथ रहो।"


131. "और जब लोग अल्लाह के रास्ते पर चलेंगे, तो वो उन्हें रहमतों से नवाज़ेगा। और जो लोग सच्चाई और ईमान के साथ रहेंगे, वो अल्लाह की रहमत में महफूज़ रहेंगे।"


132. "अल्लाह फरमाएगा, 'तुम्हारी मेहनत और ईमानदारी का फल तुम्हें ज़रूर मिलेगा।' और जो लोग दीन के रास्ते पर चलेंगे, उनके लिए बेशुमार इनामात हैं।"


133. "और जो लोग अल्लाह की राह से मुंह मोड़ेंगे, उनके लिए अल्लाह का ग़ज़ब और दोज़ख़ का सख़्त अज़ाब है।"


134. "ऐ इंसान! तुझे अल्लाह ने इस दुनिया में आज़माइश के लिए भेजा है। जो उसकी मर्जी के मुताबिक चलेगा, वो उसकी रहमत और जन्नत का हक़दार होगा।"


135. "और जो लोग दुनिया की चमक-दमक में खो जाएंगे, वो आख़िरत में सिवाय नुकसान के कुछ नहीं पाएंगे।"


136. "जो लोग अल्लाह के हुक्म पर चलकर अपनी ज़िन्दगी गुज़ारते हैं, वो कामयाब हैं, और जो लोग ग़फ़लत में हैं, वो घाटे में हैं।"


137. "कयामत के दिन हर इंसान अपने अमल का हिसाब देगा, और उस दिन सच्चे मोमिनों को जन्नत का इनाम मिलेगा।"


138. "अल्लाह अपनी क़ुदरत से हर चीज़ पर क़ाबू रखता है, और उसकी मर्ज़ी के बगैर कुछ नहीं हो सकता।"


139. "जो लोग अल्लाह पर भरोसा करते हैं, वो कभी मायूस नहीं होते, और अल्लाह अपने बंदों पर बेहद रहम करने वाला है।"


140. "तो ऐ इंसान! अल्लाह के हुक्म को मान और उसकी राह पर चल, ताकि तू कामयाब हो सके।"


141. "और जो लोग सच्चे दिल से अल्लाह की राह पर चलेंगे, उनके लिए इस दुनिया और आख़िरत दोनों में कामयाबी है।"


142. "अल्लाह फरमाएगा, 'जो मेरे हुक्म को मानते हैं और नेक अमल करते हैं, उनके लिए ऐसी नेमतें हैं, जिनका तुमने कभी ख़्वाब में भी तसव्वुर नहीं किया होगा।'"


143. "और जो लोग मेरे दिए हुए हुक्म से मुंह मोड़ते हैं, उन्हें पछताना पड़ेगा, क्योंकि दोज़ख़ उनका ठिकाना है।"


144. "अल्लाह के वादे सच्चे हैं, और जो इस पर यक़ीन रखते हैं, वो कभी गुमराह नहीं होते।"


145. "तो ऐ इंसान, अपने दिल को अल्लाह की याद से रोशन कर, ताकि तुझे उसकी रहमत और बरकतें नसीब हों।"


146. "अल्लाह की राह पर चलने वालों के लिए दुनियावी तकलीफें सिर्फ आज़माइशें हैं, और जो इन में सब्र करते हैं, उनके लिए अल्लाह का बड़ा इनाम है।"


147. "कयामत के दिन वो अपने नेक बंदों को जन्नत में दाखिल करेगा, जहां हमेशा की खुशी और आराम है।"


148. "और जो लोग दुनिया की ज़िन्दगी को अपनी आख़िरत पर तरजीह देते हैं, वो सबसे बड़े घाटे में रहेंगे।"


149. "अल्लाह अपने बंदों से बेपनाह मोहब्बत करता है, और वो चाहता है कि इंसान सच्चाई की राह पर चले, ताकि उसे दोनों जहाँ में कामयाबी मिले।"


150. "तो ऐ इंसान! अल्लाह के हुक्म की पैरवी कर, और अपने दिल में उसके लिए सच्चा ईमान पैदा कर, ताकि तू अपनी ज़िन्दगी के मक़सद को समझ सके और आख़िरत में सरफराज़ हो सके।"


151. "और जब इंसान अल्लाह के हुक्म के मुताबिक ज़िन्दगी गुज़ारता है, तो वो हर तकलीफ़ में सुकून पाता है, क्योंकि उसे यक़ीन होता है कि अल्लाह हर हाल में उसके साथ है।"


152. "अल्लाह फरमाएगा, 'जो लोग मेरे ऊपर ईमान लाए और अपनी ज़िन्दगी को नेक अमल के साथ गुज़ारा, उनके लिए जन्नत के दरवाज़े खुल जाएंगे।'"


153. "और जन्नत में वो चीज़ें होंगी जिनका इंसान ने कभी ख्वाब में भी तसव्वुर नहीं किया होगा—हमेशा की नेमतें, कभी न खत्म होने वाली खुशियाँ।"


154. "वहाँ कोई दुख, तकलीफ़, या परेशानी नहीं होगी। जो लोग अल्लाह के हुक्म की पैरवी करते हैं, उनके लिए सिर्फ सुकून और आराम होगा।"


155. "दूसरी तरफ़, जो लोग अल्लाह की राह से भटक गए और दुनिया के पीछे भागते रहे, वो क़यामत के दिन पछताएंगे, मगर तब उनके लिए सिर्फ सज़ा होगी।"


156. "अल्लाह कहेगा, 'तुम्हें दुनिया में मौक़ा दिया गया था, मगर तुमने उसकी क़द्र नहीं की। अब तुम्हारे लिए दोज़ख़ की आग है, जहाँ से कोई छुटकारा नहीं।'"


157. "इसलिए, ऐ इंसान, अल्लाह के दिये हुए मौक़े को समझ, और अपने दिल को उसके ज़िक्र से पाक कर।"


158. "दुनियावी फायदे और लालच सिर्फ थोड़े वक्त के हैं, लेकिन जो अल्लाह के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करता है, उसे आख़िरत में कामयाबी मिलेगी।"


159. "अल्लाह हर दिल की बात जानता है, और वो इंसान के छोटे से छोटे अमल का भी हिसाब रखता है। इसलिए नेक काम करते रहो और उसकी मर्जी के मुताबिक चलो।"


160. "अल्लाह की रहमत और उसकी माफ़ी उन लोगों के लिए है जो तौबा करते हैं और अपनी ग़लतियों से सबक लेकर सही रास्ते पर आते हैं।"


161. "और अल्लाह कहेगा, 'जो लोग मेरी तरफ़ सच्चे दिल से लौटे, मैंने उनकी सारी गलतियाँ माफ़ कर दीं। वो अब मेरी रहमत के हक़दार हैं।'"


162. "और जो तौबा करते हैं, उनके लिए अल्लाह के यहाँ बेपनाह इनाम हैं। वो लोग जन्नत में दाखिल किए जाएंगे, जहाँ सिर्फ सुकून और खुशियाँ होंगी।"


163. "क़यामत के दिन हर इंसान को उसके अमल के मुताबिक इंसाफ़ मिलेगा। नेक अमल वालों के लिए जन्नत और गुनहगारों के लिए सख़्त सज़ा होगी।"


164. "अल्लाह फरमाएगा, 'जो लोग मुझसे दूर हो गए और दुनिया की लज़्ज़तों में खो गए, उन्हें आज उनके गुनाहों का हिसाब देना होगा।'"


165. "और उस दिन कोई बहाना काम नहीं आएगा। जो अल्लाह के हुक्मों को नज़रअंदाज़ करते रहे, वो अपने अंजाम से बच नहीं पाएंगे।"


सूरह अल-अनाम (सूरह 6) की 165 आयतें का तर्जुमा पूरा हुआ।


सूरह अल-अराफ (सूरह 7)