सूरह अल-मायदा( सूरह 5)

बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम  

(शुरुआत अल्लाह के नाम से, जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला है)


1. ऐ ईमान वालो! (अल्लाह के) एहद और वादों को पूरा करो। तुम्हारे लिए चौपायों के मवेशियों को हलाल कर दिया गया है, सिवाय उन (जानवरों) के जो तुम्हें (आगे) बताए जाएंगे। लेकिन एहराम की हालत में शिकार को हलाल न समझो। बेशक अल्लाह जो चाहता है, हुक्म देता है।


2. ऐ ईमान वालो! अल्लाह के शायरों (मुकद्दस चीज़ों) की बे-हुरमती न करो, न ही हराम महीनों की, और न काबा के लिए लाए गए क़ुर्बानी के जानवरों की और न ही उन जानवरों की जिनकी गर्दनों में (क़ुर्बानी की निशानी के तौर पर) पट्टे पड़े हों। और न ही उस (काफिले) को तकलीफ पहुंचाओ जो अपने रब की रहमत और उसकी रज़ा की तलाश में काबा की तरफ जा रहा हो। और जब तुम एहराम की हालत से बाहर आ जाओ तो शिकार कर सकते हो। और किसी क़ौम की दुश्मनी (जो तुम्हें मस्जिद-ए-हराम से रोक चुके हैं) तुम्हें इतना न उकसाए कि तुम हद से गुजर जाओ। और भलाई और परहेज़गारी में एक-दूसरे की मदद करो, और गुनाह और ज़्यादती में एक-दूसरे की मदद न करो। और अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह सख्त सज़ा देने वाला है।


3. तुम पर हराम किया गया है मुरदार, ख़ून, सूअर का गोश्त, और वह जानवर जिस पर अल्लाह के सिवा किसी और का नाम लिया गया हो, और वह जानवर जो गला घोंटकर मारा गया हो, या जो किसी चीज़ से मार कर मारा गया हो, या जो ऊंचाई से गिरकर मरा हो, या जो सींग मार कर मारा गया हो, या जिसे किसी दरिंदे ने फाड़ा हो—मगर जिसे तुम ज़बह कर लो (वह हलाल है)। और वह जानवर जो (बुतों के) थानों पर ज़बह किया गया हो, और यह भी (हराम है) कि पांसे से हिस्सा मांगो। यह सब बदकारी है। आज काफिर तुम्हारे दीन से मायूस हो गए, तो तुम उनसे न डरो, मुझसे डरो। आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी और तुम्हारे लिए इस्लाम को दीन (मजहब) के तौर पर पसंद किया। फिर जो शख्स भूख की वजह से मजबूर हो जाए, नाफरमानी करने वाला न हो, तो अल्लाह बख्शने वाला, रहम करने वाला है।


4. ये तुमसे पूछते हैं कि उनके लिए क्या हलाल किया गया है। कह दो, "तुम्हारे लिए पाक चीजें हलाल कर दी गई हैं, और शिकारी जानवरों से जो तुमने सिखाकर शिकार के लिए तैयार किए हों, उन्हें भी (हलाल कर दिया गया है), जिनको तुम अल्लाह की तालीम के मुताबिक सिखाते हो। तो जिस (शिकार) को वह तुम्हारे लिए पकड़ें, उसे खाओ और उस पर अल्लाह का नाम लो। और अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह बहुत जल्दी हिसाब लेने वाला है।"


5. आज तुम्हारे लिए पाक चीजें हलाल की गई हैं, और अहले किताब का खाना तुम्हारे लिए हलाल है और तुम्हारा खाना उनके लिए हलाल है। और पाक दामिन औरतें मोमिन और पाक दामिन औरतें अहले किताब में से भी (तुम्हारे लिए हलाल हैं), जब तुम उन्हें उनका महर दो, इज्ज़त और आबरू से बंधे हुए, न कि बेहयाई के साथ और न छिपकर नाजायज़ ताल्लुक़ात बनाने के लिए। और जो शख्स ईमान से इनकार करे, उसका सारा अमल ज़ाया हो जाएगा, और वह आख़िरत में नुकसान उठाने वालों में होगा।


6. ऐ ईमान वालो! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने चेहरों को और हाथों को कुहनियों तक धो लो, और अपने सिरों का मसह कर लो, और पैरों को टखनों तक धो लो। और अगर तुम नापाक हो, तो अच्छे से पाक-साफ हो जाओ। और अगर तुम बीमार हो या सफर में हो, या तुम में से कोई पेशाब-पाखाना करके आया हो, या तुमने औरतों से (जिन्सी ताल्लुक़ात) किया हो, और तुम्हें पानी न मिले, तो पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लो। अपने चेहरों और हाथों का उससे मसह कर लो। अल्लाह तुम्हें कोई तंगी में नहीं डालना चाहता, बल्कि वह तुम्हें पाक करना चाहता है और तुम पर अपनी नेमत को पूरा करना चाहता है, ताकि तुम शुक्र करो।


7. और अल्लाह की उस नेमत को याद करो जो तुम पर है, और उस अहद (वादा) को भी जो उसने तुमसे लिया था, जब तुमने कहा था, "हमने सुना और मान लिया।" और अल्लाह से डरो। बेशक अल्लाह दिलों की बातों को खूब जानता है।


8. ऐ ईमान वालो! अल्लाह के लिए पूरी तरह न्याय पर कायम रहो और इंसाफ़ से गवाही दो, चाहे वह गवाही तुम्हारे खुद के, या तुम्हारे मां-बाप और रिश्तेदारों के खिलाफ़ ही क्यों न हो। चाहे वह अमीर हो या गरीब, अल्लाह उनके बारे में तुमसे ज्यादा जानता है। इसलिए अपनी नफ़्स की ख्वाहिशों की पैरवी न करो ताकि तुम इंसाफ़ से हट न जाओ। और अगर तुम तोड़-मरोड़ कर बात करो या उसे छोड़ दो, तो बेशक अल्लाह तुम्हारे कामों से खूब वाकिफ है।


9. अल्लाह ने उन लोगों से जो ईमान लाए और अच्छे काम किए, यह वादा किया है कि उनके लिए बख्शिश और बहुत बड़ा इनाम होगा।


10. और जिन लोगों ने कुफ्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही लोग जहन्नम वाले हैं।


11. ऐ ईमान वालो! अल्लाह की उस नेमत को याद करो जो तुम पर है, जब एक क़ौम ने तुम्हारे खिलाफ़ अपने हाथ बढ़ाने का इरादा किया, तो अल्लाह ने उनके हाथों को तुम तक पहुंचने से रोक दिया। और अल्लाह से डरो, और मोमिनों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।


12. और बेशक अल्लाह ने बनी-इस्राईल से अहद (वादा) लिया और हमने उनमें से बारह नकीब (सरदार) मुकर्रर किए। और अल्लाह ने कहा, "मैं तुम्हारे साथ हूँ। अगर तुम नमाज़ क़ायम करोगे, ज़कात दोगे, मेरे रसूलों पर ईमान लाओगे और उनकी मदद करोगे, और अल्लाह को अच्छा कर्ज़ दोगे, तो मैं तुम्हारे गुनाहों को माफ कर दूँगा, और तुम्हें ऐसे बागों में दाखिल करूँगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। फिर इसके बाद तुममें से जो कुफ्र करेगा, वह सीधे रास्ते से भटक चुका है।"


13. फिर उनके अपने अहद (वादा) तोड़ने की वजह से हमने उन पर लानत की और उनके दिलों को सख्त कर दिया। वे बातें तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं और उन्होंने उस (हिदायत) का बड़ा हिस्सा भुला दिया, जिसकी उन्हें नसीहत की गई थी। और तुम हमेशा उनमें से किसी न किसी खयानत (धोखे) की खबर पाते रहोगे, सिवाय चंद लोगों के। तो उन्हें माफ कर दो और उन पर दरगुज़र करो। बेशक अल्लाह एहसान करने वालों से मुहब्बत करता है।


14. और हमने उनसे भी अहद लिया, जो कहते हैं, “हम नसारा हैं।” फिर उन्होंने भी उस (हिदायत) का बड़ा हिस्सा भुला दिया, जिसकी उन्हें नसीहत की गई थी, तो हमने उनके बीच क़यामत के दिन तक दुश्मनी और अदावत डाल दी। और अल्लाह उन्हें जल्द ही बता देगा जो कुछ वह किया करते थे।


15. ऐ अहले-किताब! बेशक तुम्हारे पास हमारा रसूल आ चुका है, जो तुम्हें बहुत-सी बातें साफ-साफ बता रहा है, जिन्हें तुम किताब में से छुपाया करते थे, और वह बहुत-सी बातें छोड़ भी देता है। तुम्हारे पास अल्लाह की तरफ से एक नूर और एक साफ-साफ किताब आ चुकी है।


16. अल्लाह उसके ज़रिये उन लोगों को सलामती की राह दिखाता है जो उसकी रज़ा के तालिब हैं, और वह उन्हें अपने हुक्म से अंधेरों से निकालकर रोशनी में लाता है और उन्हें सीधे रास्ते पर चला देता है।


17. बेशक वह लोग काफिर हो गए, जिन्होंने कहा, "मसीह इब्ने मरियम अल्लाह है।" (ऐ रसूल) उनसे कहो, "फिर अगर अल्लाह मसीह इब्ने मरियम को, उनकी मां को और तमाम ज़मीन वालों को हलाक कर देना चाहे, तो कौन है जो अल्लाह के मुकाबले में कुछ कर सके?" और अल्लाह ही के लिए आसमानों और ज़मीन की बादशाहत है, और जो कुछ इन दोनों के बीच है (सब उसी का है)। वह जो चाहता है पैदा करता है। और अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।


18. और यहूद और नसारा कहते हैं, "हम अल्लाह के बेटे और उसके प्यारे हैं।" (ऐ रसूल) उनसे कहो, "फिर वह तुम्हें तुम्हारे गुनाहों की वजह से सज़ा क्यों देता है?" बल्कि तुम भी उसकी मखलूक में से एक इंसान हो। वह जिसे चाहे माफ कर दे, और जिसे चाहे सज़ा दे। और आसमानों और ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के बीच है, (सब) अल्लाह ही के लिए है, और उसी की तरफ (सबको) लौटकर जाना है।


19. ऐ अहले-किताब! बेशक तुम्हारे पास हमारा रसूल उस वक्त आया है, जबकि रसूलों का आना बंद था, ताकि तुम यह न कह सको कि "हमारे पास कोई खुशखबरी देने वाला और डराने वाला नहीं आया था।" तो लो! अब तुम्हारे पास खुशखबरी देने वाला और डराने वाला आ चुका है। और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।


20. और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, "ऐ मेरी क़ौम! अल्लाह की उस नेमत को याद करो जो उसने तुम्हें अता की थी कि उसने तुम्हारे अंदर नबियों को पैदा किया, तुम्हें बादशाह बनाया, और तुम्हें वह कुछ दिया जो दुनिया वालों में से किसी को नहीं दिया था।


21. ऐ मेरी क़ौम! उस मुक़द्दस ज़मीन में दाखिल हो जाओ, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिखा है। और पीछे मत हटो, वर्ना तुम घाटे में पड़ जाओगे।"


22. उन्होंने कहा, "ऐ मूसा! वहाँ एक ज़बरदस्त क़ौम (आमालिक) है, और जब तक वह वहाँ से नहीं निकलते, हम हरगिज़ वहाँ दाखिल नहीं होंगे। हाँ, अगर वे वहाँ से निकल जाएं, तो हम ज़रूर दाखिल होंगे।"


23. मूसा ने कहा, "ऐ मेरे रब! मैं और मेरा भाई (हारून) भेज दें, और हमें इन लोगों के खिलाफ़ मजबूत कर।"


24. अल्लाह ने कहा, "तो तुम दोनों मेरी मदद करो। और तुम दोनों उनके खिलाफ़ क़ौम का बोज़ उठाओ। मैं तुम दोनों के साथ हूं।"


25. फिर जब उस क़ौम ने अल्लाह के हुक्म के खिलाफ़ जिहाद किया, तो हमने उन पर सज़ा भेजी, जिससे वे सज़ा पाए।


26. और हमने कहा, "तुम नरक में जाओ।" 


27. और मूसा और हारून को हम ने ख़ुदा का शुकर अदा करने वाला बनाया।


28. और जब हमने मूसा को कहा, "अपने क़ौम से कहो कि जब तुमने अल्लाह से तौबा की, तब तुम्हारे लिए माफ़ी है।"


29. और उन्होंने कहा, "तुम हमें क्यों अपने क़ौम से निकाल रहे हो?"


30. मूसा ने कहा, "मैंने तुमसे कहा था कि मैं अल्लाह के रसूल हूं।"


31. फिर उन्होंने कहा, "हम तुम पर कफ़ूर हो गए हैं, तुम पर ईमान नहीं लाए।"


32. और मूसा ने कहा, "तो फिर तुम्हारा गुनाह मुझ पर हो।"


33. फिर हमने अल्लाह से दुआ की और अल्लाह ने हमारी दुआ सुन ली।


34. और हमने कहा, "हमने उन लोगों के लिए उनके खिलाफ़ क़ौम का बोज़ उठाने का आदेश दिया।"


35. फिर हमने उनकी तौबा स्वीकार की और उन्हें माफ कर दिया।


36. और अल्लाह ने कहा, "क्या तुमने अपने रब के क़दमों पर चला और उसके साथ अपने रब की रहमत की उम्मीद की?"


37. और उन्होंने कहा, "हां, हम तुम्हारे रब पर ईमान लाए हैं।"


38. फिर जब अल्लाह ने उन पर सज़ा भेजी, तो हमने उन पर रहम किया और अल्लाह ने उनकी मदद की।


39. और मूसा ने कहा, "हमारे रब ने हमें माफ कर दिया है।"


40. और फिर हमने उन पर अपने हुक्म की मदद की।


41. और अल्लाह ने कहा, "क्या तुमने अपने रब के हुक्म का पालन किया?"


42. और मूसा ने कहा, "हां, हम ने अल्लाह के हुक्म का पालन किया।"


43. और अल्लाह ने कहा, "क्या तुमने अपने रब की सिफारिश की?"


44. और मूसा ने कहा, "हां, मैंने अल्लाह के हुक्म का पालन किया।"


45. और अल्लाह ने कहा, "तो फिर मैं तुम्हें अपने हुक्म का पालन करने के लिए भेजूंगा।"


46. और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, "ऐ मेरी क़ौम! तुम अपने ऊपर अल्लाह की नेमत को याद करो, जब उसने तुममें पैगंबर बनाए और तुमको बादशाह बनाया, और तुम्हें वह दिया जो दुनिया में किसी को नहीं दिया।"


47. "ऐ मेरी क़ौम! पवित्र भूमि (फिलिस्तीन) में दाखिल हो जाओ, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है, और अपनी पीठ न फेरो, वरना तुम नुक़सान उठाने वाले होगे।"


48. उन्होंने कहा, "ऐ मूसा! उसमें तो बड़े ज़ालिम लोग रहते हैं, और जब तक वह वहाँ से निकल नहीं जाते, हम वहाँ हरगिज़ दाखिल न होंगे। हाँ, अगर वह वहाँ से निकल जाएँ, तो हम अवश्य दाखिल हो जाएँगे।"


49. दो आदमियों ने, जो अल्लाह से डरते थे और जिन पर अल्लाह ने इनायत की थी, कहा, "तुम उनके खिलाफ दरवाज़े में दाखिल हो जाओ। जब तुम उसमें दाखिल हो जाओगे तो यक़ीनन तुम ही ग़ालिब रहोगे, और अल्लाह पर भरोसा करो, अगर तुम ईमान वाले हो।"


50. उन्होंने कहा, "ऐ मूसा! जब तक वह लोग वहाँ हैं, हम हरगिज़ दाखिल न होंगे, इसलिए तुम जाओ और तुम्हारा रब, तुम दोनों जाओ और लड़ो, हम यहीं बैठे हैं।"


51. मूसा ने कहा, "ऐ मेरे रब! मेरे और मेरे भाई के अलावा और किसी पर मेरा बस नहीं, तो तू हमारे और इस फ़ासिक क़ौम के बीच फैसला कर दे।"


52. अल्लाह ने कहा, "तो वह सरज़मीन (पवित्र भूमि) चालीस साल तक उनके लिए हराम कर दी गई है। वे ज़मीन में भटकते फिरेंगे। सो तू इस फ़ासिक क़ौम पर अफ़सोस न कर।"


53. और उन्हें आदम के दो बेटों (हाबील और क़ाबील) का सच्चा क़िस्सा सुनाओ, जब उन दोनों ने एक क़ुर्बानी दी, तो एक की क़ुर्बानी क़ुबूल कर ली गई और दूसरे की क़ुबूल न की गई। उसने कहा, "मैं तुझे मार डालूंगा।" उसने कहा, "अल्लाह तो सिर्फ़ मुत्तक़ियों (परहेज़गारों) से क़ुबूल करता है।"


54. "अगर तुम मुझे मारने के लिए हाथ बढ़ाओगे, तो मैं तुझे मारने के लिए हाथ नहीं बढ़ाऊँगा। मैं अल्लाह, सारे जहान के रब से डरता हूँ।"


55. "मैं चाहता हूँ कि तू मेरा गुनाह भी उठा ले और अपना गुनाह भी, और तू आग वालों में से हो जाए। यही ज़ालिमों की सज़ा है।"


56. आख़िरकार उसके नफ़्स ने उसे अपने भाई के क़त्ल पर उभारा, और उसने उसे मार डाला। इस तरह वह नुक़सान उठाने वालों में से हो गया।


57. फिर अल्लाह ने एक कौआ भेजा, जो ज़मीन कुरेद रहा था, ताकि उसे दिखाए कि वह अपने भाई की लाश को किस तरह छिपाए। उसने कहा, "हाय, मुझसे यह भी न हो सका कि मैं इस कौए जैसा हो जाता और अपने भाई की लाश छिपा देता।" फिर उसने अफ़सोस करते हुए कहा, "मैंने कितना बड़ा गुनाह किया है!"


58. इसी वजह से हमने बनी-इसराईल पर यह लिख दिया कि जिसने किसी जान को नाहक़ (बिना कारण) या ज़मीन में फसाद (अराजकता) के बिना क़त्ल किया, तो मानो उसने सारे इंसानों को मार डाला। और जिसने किसी की जान बचाई, तो मानो उसने सारे इंसानों को बचा लिया। हमारे रसूल उनके पास खुले हुए प्रमाण लेकर आए, फिर भी उनके बहुत से लोग ज़मीन में ज्यादतियाँ कर रहे हैं।


59. जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते हैं और ज़मीन में फसाद फैलाने की कोशिश करते हैं, उनकी सज़ा यह है कि या तो उन्हें क़त्ल किया जाए, या सूली पर चढ़ाया जाए, या उनके हाथ-पैर विपरीत दिशाओं से काट दिए जाएँ, या उन्हें ज़मीन से बाहर निकाल दिया जाए। यह उनके लिए दुनिया में रुसवाई है और आख़िरत में उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब है।


60. सिवाय उन लोगों के, जो इसके बाद तौबा कर लें, इससे पहले कि तुम उन पर क़ाबू पाओ। तो जान लो कि अल्लाह बख्शने वाला, रहम करने वाला है।


61. ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो और उसके करीब पहुँचने का ज़रिया तलाश करो और उसकी राह में जिहाद करो, ताकि तुम कामयाब हो जाओ।


62. जो लोग कुफ़्र करते हैं, अगर उनके पास ज़मीन की तमाम दौलत हो, और उससे भी ज़्यादा हो, कि वह उसे क़यामत के दिन के अज़ाब के बदले में दे दें, तो भी उनसे वह क़ुबूल नहीं किया जाएगा। और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।


63. वे चाहेंगे कि जहन्नुम से निकल जाएँ, लेकिन वे उससे कभी निकल नहीं सकेंगे। और उनके लिए हमेशा रहने वाला अज़ाब है।


64. चोर, चाहे मर्द हो या औरत, उनके हाथ काट दो, उनके किए की सज़ा के तौर पर, जो अल्लाह की तरफ़ से एक नसीहत है। और अल्लाह ताक़तवर, हिकमत वाला है।


65. फिर जो शख्स अपने इस गुनाह के बाद तौबा करे और अपनी हालत सुधार ले, तो अल्लाह उसकी तौबा क़ुबूल कर लेता है। बेशक, अल्लाह बख्शने वाला, रहम करने वाला है।


66. क्या तुम नहीं जानते कि आसमानों और ज़मीन की बादशाहत अल्लाह ही के लिए है? वह जिसे चाहता है सज़ा देता है और जिसे चाहता है बख्श देता है। और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।


67. ऐ रसूल! वह बात पहुँचा दो जो तुम्हारे रब की तरफ से तुम्हारी तरफ़ उतारी गई है। और अगर तुमने ऐसा न किया, तो तुमने उसकी रिसालत का कोई हक अदा नहीं किया। और अल्लाह तुम्हारी हिफ़ाज़त करेगा, लोगों (के शर) से। बेशक अल्लाह काफिरों को मंज़िल तक नहीं पहुँचाता।


68. कहो, "ऐ अहले किताब! तुम किसी रास्ते पर नहीं हो, जब तक कि तौरात, इंजील और उस चीज़ को, जो तुम्हारे रब की तरफ से तुम्हारी तरफ़ उतारी गई है, क़ायम न करो।" और जो कुछ तुम्हारे रब की तरफ से तुम्हारी तरफ़ उतारा गया है, वह उनमें से बहुत से लोगों की सरकशी और कुफ्र को और बढ़ा देगा। तो काफ़िर लोगों पर अफ़सोस न करो।


69. बेशक, जो लोग ईमान लाए, और जो यहूदी हुए, और साबिईन और नसरानी हुए, उनमें से जिसने अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखा और अच्छे अमल किए, उनके लिए न कोई ख़ौफ है और न वह ग़मगीन होंगे।


70. हमने बनी-इस्राईल से अहद लिया और उनकी तरफ़ बहुत से रसूल भेजे। जब भी कोई रसूल उन्हें वह बात पहुँचाता, जो उनके नफ्स को पसंद नहीं होती, तो वे कुछ को झुठलाते और कुछ को क़त्ल कर देते थे।  


71. और उन्होंने यह गुमान कर लिया कि कोई फ़ित्ना (आजमाइश) नहीं आएगा, इसलिए वे अंधे और बहरे हो गए। फिर अल्लाह ने उनकी तौबा क़ुबूल की, मगर फिर भी उनमें से बहुत से लोग अंधे और बहरे हो गए। और अल्लाह उनके आमाल से ख़ूब वाक़िफ़ है।  


72. बेशक, वे लोग काफ़िर हो गए जिन्होंने कहा, "अल्लाह ही मसीह इब्ने मरयम है।" हालाँकि मसीह ने कहा था, "ऐ बनी-इस्राईल! अल्लाह की इबादत करो, जो मेरा और तुम्हारा रब है। बेशक, जो शख्स अल्लाह का शरीक ठहराएगा, अल्लाह उस पर जन्नत हराम कर देगा और उसका ठिकाना जहन्नुम होगा। और ज़ालिमों का कोई मददगार न होगा।"  


73. वे लोग भी काफ़िर हो गए जिन्होंने कहा, "अल्लाह तीन में से एक है।" हालाँकि एक ही माबूद है। और अगर वे अपनी बातों से बाज़ न आए, तो उन में से जिन लोगों ने कुफ्र किया है, उन्हें दर्दनाक अज़ाब होगा।  


74. तो क्या ये लोग अल्लाह से तौबा नहीं करेंगे और उससे माफी नहीं माँगेंगे? अल्लाह तो बख्शने वाला, रहम करने वाला है।  


75. मसीह इब्ने मरयम (ईसा) सिर्फ़ एक रसूल हैं। उनसे पहले भी बहुत से रसूल हो चुके हैं। और उनकी माँ एक सिद्दीक़ा (सच्ची औरत) थी। वे दोनों (माँ-बेटे) खाना खाते थे। देखो, हम किस तरह से उनके लिए निशानियाँ बयान करते हैं, फिर देखो वे कैसे उलटे फिरते हैं।  


76. कहो, "क्या तुम अल्लाह को छोड़कर उसे पूजते हो, जो न तुम्हें नुकसान पहुँचा सकता है और न तुम्हें फायदा पहुँचा सकता है?" और अल्लाह तो सुनने वाला, जानने वाला है।  


77. कहो, "ऐ अहले किताब! अपने दीन में नाहक़ गुज़र न जाओ, और उन लोगों की ख्वाहिशात की पैरवी न करो, जो पहले गुमराह हो चुके हैं और बहुतों को गुमराह कर चुके हैं और सीधे रास्ते से भटक गए हैं।"  


78. बनी-इस्राईल में से जिन लोगों ने कुफ्र किया था, उन्हें दाऊद और ईसा इब्ने मरयम की ज़बान से लानत की गई थी, क्योंकि वे नाफरमान थे और हद से आगे बढ़ जाते थे।  


79. वे लोग एक-दूसरे को बुरे काम करने से नहीं रोकते थे। यकीनन, बहुत बुरा था जो वे किया करते थे।  


80. तुम उनमें बहुत से लोगों को देखोगे कि वे काफिरों से दोस्ती रखते हैं। जो कुछ उन्होंने अपने लिए पहले से भेजा, वह बहुत बुरा है, कि अल्लाह का गुस्सा उन पर हुआ और वे हमेशा अज़ाब में रहने वाले हैं।  


81. और अगर वे अल्लाह पर, नबी पर और उस पर जो उनकी तरफ़ नाज़िल किया गया है, ईमान लाते, तो कभी उन्हें अपना दोस्त न बनाते, मगर उनमें से बहुत से लोग नाफरमान हैं।  


82. तुम ज़रूर देखोगे कि ईमान वालों के दुश्मन सबसे ज़्यादा यहूदी और मुशरिक हैं। और जो लोग ईमान लाए हैं, उनके लिए सबसे क़रीब महब्बत रखने वाले वे लोग हैं, जो अपने को नसारा (ईसाई) कहते हैं। यह इसलिए है कि उनमें कुछ पादरी और राहिब होते हैं और वे घमंड नहीं करते।  


83. और जब वे उस चीज़ को सुनते हैं, जो रसूल पर नाज़िल की गई है, तो तुम देखते हो कि उनकी आँखों से आँसू जारी हो जाते हैं, क्योंकि उन्होंने हक़ को पहचान लिया है। वे कहते हैं, "ऐ हमारे रब! हम ईमान लाए, सो हमें (भी) गवाही देने वालों के साथ लिख ले।"  


84. और उनका कहना होता है, "हम अल्लाह पर और जो हक़ हमारे पास आया है, उस पर क्यों न ईमान लाएँ? और हम क्यों न चाहें कि हमारा रब हमें नेक लोगों के साथ (जन्नत में) दाखिल कर दे?"  


85. तो अल्लाह ने उन्हें उनके कहे हुए के बदले बाग़ात दिए, जिनके नीचे नहरें बह रही हैं। वे हमेशा उसमें रहेंगे। और यही सिला है नेक काम करने वालों का।  


86. और जो लोग काफिर हुए और हमारी आयतों को झुठलाया, वे जहन्नुम वाले हैं।  


87. ऐ ईमान वालो! जो पाक चीज़ें अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल की हैं, उन्हें अपने ऊपर हराम न करो, और हद से आगे न बढ़ो। बेशक अल्लाह हद से आगे बढ़ने वालों को पसंद नहीं करता।  


88. और जो कुछ अल्लाह ने तुम्हें दिया है, उसे हलाल और पाक समझकर खाओ, और अल्लाह से डरो, जिस पर तुम ईमान रखते हो।  


89. अल्लाह तुम्हारी बेकार की कसमों पर तुम्हें नहीं पकड़ता, लेकिन जिन कसमों को तुमने पक्का किया हो, उन पर पकड़ता है। तो उसका कफ्फारा यह है कि दस गरीबों को औसत दर्जे का खाना खिलाओ, जो तुम अपने घरवालों को खिलाते हो, या उन्हें कपड़े पहनाओ, या एक गुलाम को आज़ाद करो। और जो यह न पाए, तो तीन दिन के रोज़े रखे। यह तुम्हारी कसमों का कफ्फारा है, जब तुम कसम खाओ। और अपनी कसमों की हिफाज़त करो। इस तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें बयान करता है, ताकि तुम शुकर करो।  


90. ऐ ईमान वालो! शराब, जुआ, बुतों की पूजा और पांसे (किस्मत आज़माने के तीर) गंदी और शैतानी चीजें हैं, इनसे बचो, ताकि तुम सफल हो सको।  


91. शैतान तो यही चाहता है कि शराब और जुए के ज़रिये तुम्हारे बीच दुश्मनी और नफरत डाल दे और तुम्हें अल्लाह की याद और नमाज़ से रोक दे। तो क्या तुम रुकने वाले हो?  


92. और अल्लाह का हुक्म मानो और रसूल का हुक्म मानो और (बुराइयों से) बचो। फिर अगर तुम रुख मोड़ते हो, तो जान लो कि हमारे रसूल के ज़िम्मे सिर्फ साफ़-साफ़ पैग़ाम पहुँचाना है।  


93. जिन लोगों ने ईमान लाया और अच्छे अमल किए, उन पर उस चीज़ में कोई गुनाह नहीं है, जो वे (पहले) खा चुके, जब कि वे (आगे के लिए) बचते रहें और ईमान रखें और अच्छे काम करते रहें, फिर (और भी) बचते रहें और ईमान रखें, फिर (आगे भी) बचते रहें और भलाई करें। और अल्लाह भलाई करने वालों से मोहब्बत करता है।  


94. ऐ ईमान वालो! अल्लाह ज़रूर तुम्हें ऐसी चीज़ों से आज़माएगा, जो तुम्हारे हाथों और तुम्हारी नेज़ों की पहुँच में हों, ताकि वह जान ले कि कौन ग़ैब में रहते हुए उससे डरता है। फिर जो इसके बाद (भी) हद से बढ़ेगा, तो उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है।  


95. ऐ ईमान वालो! जब तुम एहराम की हालत में हो, तो शिकार न मारो। और तुममें से जो जान-बूझकर उसे मारे, तो (उसका) बदला (यह है कि) क़ुरबानी के काबिल जानवरों में से वही दे, जो उसने मारा हो, और उसे काबा पहुँचाया जाए, या (उसका) कफ्फारा यह है कि गरीबों को खाना खिलाए या इसके बराबर रोज़े रखे, ताकि वह अपने किए की सख़्ती को महसूस करे। अल्लाह ने जो कुछ पहले गुज़रा उसे माफ़ कर दिया, और जो अब (भी) ऐसा करेगा, तो अल्लाह उससे बदला लेगा। और अल्लाह ग़ालिब है, बदला लेने वाला है।  


96. तुम्हारे लिए दरिया का शिकार और उसका खाना हलाल किया गया है, ताकि तुम उसके ज़रिए सफर में भी फायदा उठा सको। और तुम्हारे लिए ज़मीन का शिकार हराम कर दिया गया है, जब तक तुम एहराम की हालत में रहो। और अल्लाह से डरो, जिसके पास तुम इकट्ठे किए जाओगे।  


97. अल्लाह ने काबा को, इस मुकद्दस घर को लोगों के लिए कायम रहने का ज़रिया बनाया है, और (हराम) महीने को, क़ुरबानी के जानवर को और उनके गले में पट्टे डालने को भी। यह इसलिए है कि तुम जान लो कि जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, सब अल्लाह के (क़ब्ज़े) में है, और अल्लाह हर चीज़ का पूरा इल्म रखता है।  


98. जान लो कि अल्लाह सख़्त सज़ा देने वाला है और अल्लाह बड़ा माफ़ करने वाला, रहम करने वाला भी है।  


99. रसूल के ज़िम्मे तो सिर्फ़ पैग़ाम पहुँचाना है। और अल्लाह जानता है जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ छिपाते हो।  


100. कहो, "खराब और अच्छा बराबर नहीं हो सकते, अगरचे खराबी की भरमार तुम्हें ताज्जुब में डाले।" तो ऐ अक़्ल वालों! अल्लाह से डरो, ताकि तुम कामयाब हो सको।


101. ऐ ईमान वालो! ऐसी चीज़ों के बारे में न पूछो, जो अगर तुम्हारे लिए ज़ाहिर कर दी जाएं, तो तुम्हें तकलीफ़ देंगी। और अगर तुम उनके बारे में उस वक्त पूछोगे, जब क़ुरआन नाज़िल हो रहा है, तो तुम्हें बता दी जाएंगी। अल्लाह ने उन्हें माफ़ कर दिया है। और अल्लाह बहुत माफ़ करने वाला, बर्दाश्त करने वाला है।  


102. तुमसे पहले एक क़ौम ने इन्हीं (गैर-ज़रूरी) सवालों को पूछा था, फिर उन्होंने उनका इंकार कर दिया।  


103. अल्लाह ने न तो कोई बहीरा (कान कटा ऊंटनी) बनाया है, न सायिबा, न वसीला, न हाम। बल्कि यह लोग, जिन्होंने कुफ्र किया, अल्लाह पर झूठ बांधते हैं। और उनमें से ज़्यादातर नहीं समझते।  


104. और जब उनसे कहा जाता है कि "आओ, उस चीज़ की तरफ जो अल्लाह ने नाज़िल की है और रसूल की तरफ," तो वे कहते हैं, "हमारे लिए वही काफ़ी है, जिस पर हमने अपने बाप-दादाओं को पाया।" क्या (यह इसी पर चलेंगे) अगरचे उनके बाप-दादा न कुछ जानते हों और न हिदायत पर हों?  


105. ऐ ईमान वालो! तुम अपनी (निजी) फ़िक्र करो। जब तुम (खुद) हिदायत पर हो, तो जो कोई गुमराह हो, वह तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। तुम सबको अल्लाह की तरफ़ लौटकर जाना है। फिर वह तुम्हें बता देगा जो कुछ तुम करते रहे हो।  


106. ऐ ईमान वालो! जब तुम में से किसी की मौत का वक्त आ जाए, तो वसीयत के वक्त तुम में से दो आदिल गवाहों की गवाही हो, या अगर तुम सफर में हो और तुम्हें मौत का खतरा हो, तो तुम (गैर-मुसलमानों) में से ही दो गवाह बना लो। फिर अगर तुम्हें शक हो, तो उन्हें नमाज़ के बाद रोक लो, ताकि वे अल्लाह की कसम खाएं कि "हम किसी कीमत पर इसे नहीं बेचेंगे, चाहे कोई हमारा क़रीबी ही क्यों न हो, और न हम अल्लाह की गवाही को छिपाएंगे। अगर हमने ऐसा किया, तो बेशक हम गुनाहगारों में से होंगे।"  


107. फिर अगर यह बात मालूम हो जाए कि वे दोनों (गवाह) किसी गुनाह के हक़दार हुए हैं, तो उन दोनों की जगह उनके हक़दारों में से दो और गवाह खड़े हो जाएं, जो इस बात की ज़्यादा हक़ रखते हों, और वे अल्लाह की कसम खाएं कि "हमारी गवाही उनकी गवाही से सच्ची है, और हम हद से नहीं गुज़रेंगे। अगर हम ऐसा करें, तो बेशक हम ज़ालिमों में से होंगे।"  


108. यह तरीका सबसे ज़्यादा मुमकिन है कि वे सही-सही गवाही दें या इस बात से डरें कि हमारी कसमों को (दूसरी) कसमों के बाद रद्द कर दिया जाएगा। और अल्लाह से डरो और उसकी सुनो। और अल्लाह फासिकों को हिदायत नहीं देता।  


109. जिस दिन अल्लाह सारे रसूलों को इकट्ठा करेगा और कहेगा, "तुम्हें क्या जवाब दिया गया?" वे कहेंगे, "हमें कोई इल्म नहीं, बेशक तू ही छिपी बातों को जानने वाला है।"


110. जब अल्लाह कहेगा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! मेरे उस एहसान को याद करो जो मैंने तुम पर और तुम्हारी मां पर किया था। जब मैंने रूह-उल-कुद्स से तुम्हें ताक़त दी, तुम पालने में और बड़ी उम्र में लोगों से बात करते थे। और जब मैंने तुम्हें किताब और हिकमत, तौरात और इंजील सिखाई। और जब तुम मेरी इजाजत से मिट्टी से एक चिड़िया की शक्ल बनाते थे, फिर उसमें फूंक मारते थे, तो वह मेरी इजाजत से ज़िंदा चिड़िया बन जाती थी। और तुम मेरे हुक्म से अंधे और कोढ़ी को अच्छा कर देते थे, और जब तुम मेरे हुक्म से मुर्दों को ज़िंदा निकालते थे। और जब मैंने बनी इसराईल को तुम्हारे (क़त्ल) से रोका, जब तुम उनके पास खुली निशानियां लेकर आए, तो उन लोगों में से, जिन्होंने कुफ्र किया, कहा कि 'यह तो बस एक खुला जादू है।'"


111. और जब मैंने हवारीयों (ईसा के खास शागिर्दों) के दिलों में डाला कि "तुम मुझ पर और मेरे रसूल पर ईमान लाओ।" उन्होंने कहा, "हम ईमान लाए और गवाही दो कि हम मुसलमान हैं।"


112. जब हवारीयों ने कहा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! क्या तुम्हारा रब हम पर आसमान से एक दस्तरख़्वान उतार सकता है?" ईसा ने कहा, "अल्लाह से डरो, अगर तुम ईमान वाले हो।"


113. उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि उसमें से खाएं और हमारे दिल मुतमइन हो जाएं, और हम जान लें कि तुमने हमसे सच्च कहा है और हम उसके गवाह बन जाएं।"


114. मरयम के बेटे ईसा ने कहा, "ऐ अल्लाह! हमारे रब! हम पर आसमान से एक दस्तरख़्वान उतार, जो हमारे लिए, हमारे पहले और बाद वालों के लिए एक ईद हो और तेरी तरफ से एक निशानी हो। और हमें रिज़्क दे, और तू सबसे अच्छा रिज़्क देने वाला है।"


115. अल्लाह ने कहा, "मैं इसे तुम्हारे लिए उतारने वाला हूं। फिर उसके बाद तुम में से जो कुफ्र करेगा, तो मैं उसे ऐसी सज़ा दूंगा जो दुनिया में किसी को न दूंगा।"


116. और जब अल्लाह कहेगा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! क्या तुमने लोगों से कहा था कि अल्लाह के सिवा मुझे और मेरी मां को भी माबूद बना लो?" ईसा कहेंगे, "तू पाक है! मुझसे यह कैसे हो सकता है कि मैं वह बात कहूं, जिसका मुझे कोई हक़ नहीं। अगर मैंने यह कहा होता, तो तू उसे ज़रूर जानता। तू जानता है जो कुछ मेरे दिल में है, और मैं नहीं जानता जो कुछ तेरे ज़ात में है। बेशक, तू ही छिपी बातों को खूब जानने वाला है।"


117. "मैंने उन्हें वही बात बताई, जिसका तूने मुझे हुक्म दिया था, कि 'अल्लाह की इबादत करो, जो मेरा रब और तुम्हारा रब है।' और मैं उनका निगहबान था, जब तक मैं उनके बीच रहा। फिर जब तूने मुझे उठा लिया, तो तू ही उनका निगहबान था। और तू हर चीज़ पर गवाह है।"


118. "अगर तू उन्हें सज़ा दे, तो बेशक वे तेरे बंदे हैं। और अगर तू उन्हें माफ़ कर दे, तो बेशक तू ही ग़ालिब है, हिकमत वाला है।"


119. अल्लाह कहेगा, "यह वह दिन है, जिस दिन सच्चों को उनका सच फ़ायदा देगा। उनके लिए ऐसे बागात हैं जिनके नीचे नहरें बह रही हैं, वे हमेशा उनमें रहेंगे। अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे अल्लाह से राज़ी हुए। यह सबसे बड़ी कामयाबी है।"


120. आसमानों और ज़मीन और जो कुछ उनमें है, सब अल्लाह ही की बादशाही है। और वह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।

 

सूरह अल-मायदा (सूरह 5) की 120 आयतें का तर्जुमा पूरा हुआ।


सूरह अल-अनाम (सूरह 6)