सूरह अल-इमरान (सूरह 3)

बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम  

(शुरुआत अल्लाह के नाम से, जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला है)


1. अलिफ़ लाम मीम।  


2. अल्लाह, उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं, वह हमेशा ज़िंदा रहने वाला और कायम रहने वाला है।  


3. उसने आप पर किताब हक़ के साथ नाज़िल की, जो इससे पहले की किताबों की तस्दीक़ (सत्यापन) करने वाली है। और उसने इससे पहले तौरात और इंजील को नाज़िल किया।  


4. (वह किताबें) इससे पहले हिदायत के लिए उतारी गईं, और उसने फ़ुरक़ान (सही और ग़लत में फ़र्क़ करने वाली किताब) उतारी। बेशक, जो लोग अल्लाह की आयतों का इंकार करते हैं, उनके लिए सख्त अज़ाब है, और अल्लाह ग़ालिब (सब पर हावी) और बदला लेने वाला है।  


5. ज़मीन और आसमान में जो कुछ है, अल्लाह से छिपा हुआ नहीं है।  


6. वही है जो माँ के पेट में जैसा चाहता है, वैसी सूरत बना देता है। उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। वही ग़ालिब और हिकमत वाला है।  


7. वही है जिसने आप पर किताब नाज़िल की, उसमें कुछ आयतें पक्की हैं (जिनका मतलब बिल्कुल साफ है), वे किताब की असल बुनियाद हैं, और दूसरी कुछ (मुतशाबेह) हैं (जिनके अर्थ में मामूली शक है)। तो जिनके दिलों में कुटिलता (टेढ़ापन) है, वे उसी के पीछे चलते हैं, जो उसमें मुतशाबेह है, फितना ढूंढने और उसके अर्थ तलाश करने के लिए, हालाँकि उसका अर्थ अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता। और जो लोग इल्म में रासिख़ (पक्के) हैं, वे कहते हैं, "हम उस पर ईमान लाए, यह सब हमारे रब की तरफ़ से है।" और नसीहत तो बस अक्लमंद ही हासिल करते हैं।  


8. "ऐ हमारे रब, हमारे दिलों को फिसलने न दे, जब कि तूने हमें हिदायत दे दी है, और हमें अपनी तरफ से रहमत अता कर, बेशक तू ही बख्शने वाला है।"  


9. "ऐ हमारे रब, बेशक तू उस दिन सब इंसानों को जमा करने वाला है, जिसमें कोई शक नहीं।" बेशक अल्लाह अपने वादे के खिलाफ नहीं करता।  


10. बेशक जिन लोगों ने कुफ्र किया, न तो उनके माल अल्लाह के मुकाबले में उनके किसी काम आएंगे, और न उनकी औलाद। और वही लोग हैं, जो जहन्नम का ईंधन बनेंगे।  

11. इनकी मिसाल उस फिरऔन की क़ौम और उन लोगों जैसी है, जो उनसे पहले थे। उन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया, तो अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों की वजह से पकड़ा। और अल्लाह सख्त अज़ाब देने वाला है।  


12. (ऐ नबी) उन लोगों से कह दीजिए, जिन्होंने कुफ्र किया है कि जल्द ही तुम हार जाओगे और जहन्नम की तरफ़ हांके जाओगे। और वह बहुत ही बुरी जगह है।  


13. तुम्हारे लिए उन दो गिरोहों में निशानी थी, जो आपस में टकराए थे। एक गिरोह अल्लाह की राह में लड़ रहा था, और दूसरा काफिरों का था, जो अपनी आँखों से उन्हें अपने से दुगना देख रहे थे। और अल्लाह अपनी मदद से जिसको चाहता है, ताकत देता है। इसमें अक्लमंदों के लिए बड़ी इबरत (नसीहत) है।  


14. लोगों के लिए औरतों, औलाद, ढेरों सोने-चाँदी, निशान लगे घोड़ों, मवेशियों और खेतियों की मोहब्बत को सजा कर दिखाया गया है। ये सब दुनिया की ज़िंदगी का सामान हैं, और अल्लाह के पास बेहतरीन ठिकाना है।  


15. (ऐ नबी) कह दीजिए, "क्या मैं तुम्हें इससे बेहतर चीज़ बता दूं?" जो लोग (अल्लाह से) डरते हैं, उनके लिए उनके रब के पास जन्नतें हैं, जिनके नीचे नहरें बहती हैं, उनमें वे हमेशा रहेंगे, और पाकीज़ा बीवियाँ होंगी, और अल्लाह की तरफ से रज़ा (खुशी)। और अल्लाह अपने बंदों को देख रहा है।  


16. (ये वो लोग हैं) जो कहते हैं, "ऐ हमारे रब, हम ईमान ले आए, सो हमारे गुनाह माफ़ कर दे, और हमें आग के अज़ाब से बचा ले।"  


17. (ये वो लोग हैं) जो सब्र करने वाले, सच्चाई पर कायम, फरमाबरदार, (अल्लाह के रास्ते में) खर्च करने वाले, और रात के आखिर में अल्लाह से माफी मांगने वाले हैं।  


18. अल्लाह गवाही देता है कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं, और फरिश्ते और इल्म वाले भी (इस पर गवाही देते हैं) कि वह इन्साफ के साथ कायम है। उसके सिवा कोई माबूद नहीं, वही ग़ालिब और हिकमत वाला है।  


19. बेशक, अल्लाह के नज़दीक (क़ुबूल) धर्म इस्लाम ही है। और जिन लोगों को किताब दी गई थी, उन्होंने इल्म हासिल हो जाने के बाद आपस की हसदबाज़ी से इसमें इख्तिलाफ़ किया। और जो अल्लाह की आयतों का इंकार करते हैं, तो बेशक अल्लाह बहुत जल्दी हिसाब लेने वाला है।  


20. फिर अगर वे आपसे झगड़ें, तो कह दीजिए, "मैंने अपना चेहरा अल्लाह के सामने झुका दिया है, और जो लोग मेरा अनुसरण कर रहे हैं, उन्होंने भी।" और जो लोग अहले किताब और अनपढ़ (लोग) हैं, उनसे कहिए, "क्या तुम भी (अल्लाह की बात) मानते हो?" फिर अगर वे मान लें, तो सही रास्ते पर हैं, और अगर मुँह मोड़ लें, तो आप पर बस पहुंचाना है, और अल्लाह अपने बंदों को देख रहा है।  


21. बेशक, जो लोग अल्लाह की आयतों का इंकार करते हैं, और नबियों को बेजा क़त्ल करते हैं, और उन लोगों को भी क़त्ल करते हैं, जो इंसाफ का हुक्म देते हैं, तो उनको दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशखबरी दे दीजिए।  


22. यही वो लोग हैं, जिनके काम दुनिया और आख़िरत में बरबाद हो गए, और उनका कोई मददगार न होगा।  


23. क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें किताब का हिस्सा दिया गया था? उन्हें अल्लाह की किताब की तरफ बुलाया जा रहा है ताकि वह उनके बीच फैसला करे, फिर उनमें से कुछ लोग मुँह मोड़कर पीछे हट जाते हैं।  


24. यह इसलिए कि वे कहते हैं, "हमें तो आग बस कुछ गिने-चुने दिनों के लिए छुएगी।" और जो कुछ झूठ वे घड़ते रहे हैं, उसी ने उन्हें उनके दीन के मामले में धोखे में डाल रखा है।

  

25. फिर क्या हाल होगा, जब हम उन्हें एक दिन जमा करेंगे, जिसमें कोई शक नहीं, और हर शख्स को उसका किया हुआ पूरा-पूरा दिया जाएगा, और उन पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा?  


26. कह दीजिए, "ऐ अल्लाह! बादशाहत के मालिक! जिसे तू चाहे बादशाहत दे, और जिससे चाहे, बादशाहत छीन ले, और जिसे चाहे इज़्ज़त दे, और जिसे चाहे ज़लील कर दे। सारे भलाई तेरे ही हाथ में है। बेशक तू हर चीज़ पर क़ादिर है।  


27. तू रात को दिन में डालता है, और दिन को रात में डालता है। तू मुर्दे से ज़िंदा को निकालता है, और ज़िंदा से मुर्दे को निकालता है। और जिसे चाहे, बेहिसाब रिज़्क़ देता है।"  


28. ईमान वाले, ईमान वालों के बजाय काफ़िरों को अपना दोस्त न बनाएं। और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई ताल्लुक़ नहीं, सिवाय इसके कि तुम उनसे बचने के लिए किसी तरह की हिफ़ाज़त (बचाव) करो। और अल्लाह तुम्हें अपनी नफ़्स (खुदा से डरने) के बारे में ताकीद करता है, और अल्लाह की तरफ ही लौट कर जाना है।  


29. कह दीजिए, "चाहे जो कुछ तुम्हारे दिलों में हो, उसे छुपाओ या ज़ाहिर करो, अल्लाह उसे जानता है। और जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, उसे भी जानता है। और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।"  


30. जिस दिन हर शख्स अपने किए हुए भले कामों को हाज़िर पाएगा, और जो बुरे काम उसने किए होंगे, वह चाहता होगा कि काश उसके और उन (बुरे कामों) के बीच बहुत ज़्यादा दूरी होती। और अल्लाह तुम्हें अपने आप से डराता है। और अल्लाह बंदों के साथ बहुत रहम करने वाला है।  


31. कह दीजिए, "अगर तुम अल्लाह से मुहब्बत करते हो, तो मेरी पैरवी करो, अल्लाह तुमसे मुहब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाह माफ़ कर देगा। और अल्लाह बख्शने वाला और रहम करने वाला है।"  


32. कह दीजिए, "अल्लाह और रसूल की बात मानो।" फिर अगर वे मुँह मोड़ें, तो बेशक अल्लाह काफिरों को पसंद नहीं करता।  


33. बेशक अल्लाह ने आदम, नूह, इब्राहीम के घराने और इमरान के घराने को दुनिया के सब लोगों पर चुना है।  


34. ये सब एक ही नस्ल से हैं, और अल्लाह सुनने और जानने वाला है।  


35. जब इमरान की बीवी ने कहा, "ऐ मेरे रब! जो कुछ मेरे पेट में है, मैं उसे तेरी सेवा के लिए नज़्र करती हूँ। तो तू इसे मुझसे क़ुबूल कर ले, बेशक तू सुनने और जानने वाला है।"  


36. फिर जब उसने उसे जना, तो कहा, "ऐ मेरे रब! मैंने तो लड़की जनी है।" और अल्लाह जानता है कि उसने क्या जना, और लड़का लड़की की तरह नहीं होता। और मैंने उसका नाम मरियम रखा है, और मैं उसे और उसकी औलाद को रंजीदा शैतान से तेरी पनाह में देती हूँ।  


37. फिर उसका रब उसे अच्छे तरीके से क़ुबूल कर लिया और उसे बेहतरीन तरीके से पाला। और ज़करिया उसका क़फ़ील (पालनहार) बना दिया। जब ज़करिया उसके पास मेहराब (इबादतगाह) में जाते, तो उसके पास कुछ रोज़ी पाते। उन्होंने कहा, "ऐ मरियम, यह तुम्हारे पास कहाँ से आया?" उसने कहा, "यह अल्लाह के पास से है। बेशक, अल्लाह जिसे चाहे बेहिसाब रोज़ी देता है।"  


38. वहाँ पर ज़करिया ने अपने रब से दुआ की, कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे अपनी तरफ से नेक औलाद अता कर। बेशक, तू ही दुआ सुनने वाला है।"  


39. फिर फ़रिश्तों ने उसे आवाज़ दी, जबकि वह मेहराब में खड़े नमाज़ पढ़ रहे थे, कि "अल्लाह तुम्हें याह्या की खुशखबरी देता है, जो अल्लाह के एक कलिमे की तस्दीक़ करने वाला, अपने क़ौम का सरदार, परहेज़गार और नेक लोगों में से एक नबी होगा।"  


40. ज़करिया ने कहा, "ऐ मेरे रब! मेरे लिए बेटा कैसे होगा, जबकि मैं बूढ़ा हो गया हूँ और मेरी बीवी बाँझ है?" अल्लाह ने फ़रमाया, "इस तरह ही अल्लाह जो चाहे करता है।"  


41. उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मेरे लिए कोई निशानी बना दे।" (अल्लाह ने) कहा, "तुम्हारी निशानी यह है कि तुम तीन दिनों तक लोगों से इशारे के सिवा बात नहीं कर सकोगे। और अपने रब का बहुत ज़िक्र करो, और सुबह-शाम उसकी तस्बीह (महानता का वर्णन) करते रहो।"  


42. और जब फ़रिश्तों ने कहा, "ऐ मरियम! बेशक, अल्लाह ने तुम्हें चुना, और तुम्हें पाक किया, और दुनिया की औरतों में से तुम्हें चुना है।  


43. ऐ मरियम! अपने रब की इताअत (आज्ञा) करो, और सजदा करो, और रुकू करने वालों के साथ रुकू करो।"  


44. (ऐ नबी) ये ग़ैब की ख़बरें हैं, जिन्हें हम आपकी तरफ़ वही के ज़रिए भेज रहे हैं। और आप उनके पास नहीं थे, जब वे अपने कलमों से (मरियम की) कफ़ालत (पालन-पोषण) के लिए क़ुरआ डाल रहे थे, और न ही आप उनके पास थे, जब वे झगड़ रहे थे।  


45. जब फ़रिश्तों ने कहा, "ऐ मरियम! अल्लाह तुम्हें अपनी तरफ़ से एक कलिमे की खुशखबरी देता है, जिसका नाम मसीह, ईसा इब्ने मरियम होगा, जो दुनिया और आख़िरत में इज़्ज़त वाला और (अल्लाह के) करीब लाए गए लोगों में से होगा।  


46. और वह लोगों से पालने में और बड़ी उम्र में भी बातें करेगा, और नेक लोगों में से होगा।"  


47. मरियम ने कहा, "ऐ मेरे रब! मेरे यहाँ बेटा कैसे होगा, जबकि मुझे किसी मर्द ने नहीं छुआ?" (अल्लाह ने) कहा, "इस तरह ही अल्लाह जो चाहे पैदा करता है। जब वह किसी चीज़ का इरादा करता है, तो बस उसे कहता है, 'हो जा', और वह हो जाती है।"  


48. और वह (अल्लाह) उसे किताब और हिकमत और तौरात और इंजील सिखाएगा।  


49. और वह बनी इस्राईल की तरफ़ रसूल होगा (और कहेगा), "मैं तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम्हारे लिए एक निशानी लेकर आया हूँ। मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से परिंदे की सूरत जैसी चीज़ बनाता हूँ, फिर उसमें फूँक मारता हूँ, तो वह अल्लाह के हुक्म से परिंदा बन जाता है। और अल्लाह के हुक्म से मैं अंधे और कोढ़ी को अच्छा कर देता हूँ, और मुर्दों को ज़िंदा कर देता हूँ। और मैं तुम्हें बताता हूँ जो कुछ तुम खाते हो और जो कुछ अपने घरों में जमा करते हो। बेशक इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानी है, अगर तुम ईमान लाओ।"  


50. "और मैं उसकी तस्दीक़ करने वाला हूँ, जो तौरात में मेरे सामने मौजूद है, और मैं तुम्हारे लिए कुछ वह चीज़ें हलाल करता हूँ, जो तुम पर हराम कर दी गई थीं। और मैं तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम्हारे लिए एक निशानी लेकर आया हूँ। सो अल्लाह से डरो और मेरी इताअत (आज्ञा) करो।  


51. बेशक, अल्लाह मेरा रब और तुम्हारा रब है, सो उसकी इबादत करो। यही सीधा रास्ता है।"  


52. फिर जब ईसा ने उनसे कुफ्र (इंकार) का इरादा देखा, तो कहा, "अल्लाह के रास्ते में मेरे मददगार कौन हैं?" हवारियों (ईसा के अनुयायी) ने कहा, "हम अल्लाह के मददगार हैं। हम अल्लाह पर ईमान लाए हैं, और गवाही दीजिए कि हम फरमाबरदार हैं।  


53. ऐ हमारे रब! जो कुछ तूने नाज़िल किया है, हम उस पर ईमान लाए, और हमने रसूल का अनुसरण किया। सो हमें गवाहों में लिख ले।"  


54. और उन्होंने (काफ़िरों ने) मक्कारी की, और अल्लाह ने भी मक्कारी की, और अल्लाह सबसे बेहतरीन मक्कारी करने वाला है।  


55. (वह वक्त याद करो) जब अल्लाह ने कहा, "ऐ ईसा! बेशक, मैं तुम्हें पूरा लूंगा, और अपनी तरफ उठा लूंगा, और तुम्हें काफ़िरों से पाक कर दूंगा, और तुम्हारे अनुयायियों को कयामत तक उन लोगों पर ग़ालिब कर दूंगा, जिन्होंने कुफ्र किया। फिर तुम सबकी वापसी मेरी तरफ होगी, तो जिन बातों में तुम झगड़ते थे, मैं उनके बारे में तुम्हारे बीच फैसला कर दूंगा।  


56. फिर जिन लोगों ने कुफ्र किया, उन्हें मैं दुनिया और आख़िरत में सख्त अज़ाब दूंगा, और उनका कोई मददगार न होगा।  


57. और जो लोग ईमान लाए और नेक काम करते रहे, उन्हें अल्लाह उनके पूरे-पूरे बदले देगा। और अल्लाह ज़ालिमों को पसंद नहीं करता।  


58. ये हम आपकी तरफ आयतें और हिकमत से भरी नसीहतें सुनाते हैं।  


59. बेशक, ईसा की मिसाल अल्लाह के नज़दीक आदम जैसी है। उसने उसे मिट्टी से बनाया, फिर उससे कहा, "हो जा!" और वह हो गया।  


60. यह तुम्हारे रब की तरफ से हक़ बात है, सो तुम शक करने वालों में से न हो।  


61. फिर जो कोई इसके बाद भी आपसे झगड़े, जबकि आपके पास इल्म आ चुका हो, तो कह दीजिए, "आओ, हम अपने बेटों को और तुम्हारे बेटों को, अपनी औरतों को और तुम्हारी औरतों को, और अपने आप को और तुम्हारे आप को बुला लें। फिर हम अल्लाह से दुआ करें और झूठों पर अल्लाह की लानत भेजें।"  


62. बेशक यह वही सच्ची दास्तान है, और अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, और बेशक अल्लाह ही ग़ालिब और हिकमत वाला है।  


63. फिर अगर वे मुँह मोड़ लें, तो बेशक अल्लाह फसादियों को जानता है।  


64. कह दीजिए, "ऐ अहले किताब! आओ हम उस बात पर एक हो जाएं, जो हमारे और तुम्हारे बीच बराबर है, कि हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करें, और उसके साथ किसी को शरीक न ठहराएं, और हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह के सिवा अपना रब न बनाए।" फिर अगर वे मुँह मोड़ लें, तो कह दीजिए, "गवाह रहो कि हम तो फरमाबरदार हैं।"  


65. ऐ अहले किताब! तुम इब्राहीम के बारे में क्यों झगड़ते हो, जबकि तौरात और इंजील उनके बाद नाज़िल की गई हैं? क्या तुम (इतनी सी बात भी) नहीं समझते?  


66. सुन लो, तुम वही लोग हो, जो उस बात में झगड़ रहे हो, जिसका तुम्हें इल्म है। अब उस बात में क्यों झगड़ते हो, जिसका तुम्हें कोई इल्म नहीं? और अल्लाह जानता है, और तुम नहीं जानते।  


67. इब्राहीम न तो यहूदी थे और न नसरानी, बल्कि वह एक सच्चे मुसलमान थे, और मुशरिकों में से न थे।  


68. बेशक इब्राहीम से सबसे नज़दीक वही लोग हैं, जिन्होंने उनका अनुसरण किया, और यह नबी और जो लोग इस नबी पर ईमान लाए। और अल्लाह ईमान वालों का दोस्त है।  


69. अहले किताब का एक गिरोह चाहता है कि किसी तरह तुम्हें गुमराह कर दे, जबकि वे बस अपने आप को ही गुमराह कर रहे हैं, और वे इसका एहसास नहीं करते।  


70. ऐ अहले किताब! तुम अल्लाह की आयतों का क्यों इंकार करते हो, जबकि तुम गवाह हो?  


71. ऐ अहले किताब! तुम हक़ को गलत के साथ क्यों मिलाते हो, और हक़ को क्यों छुपाते हो, जबकि तुम जानते हो?  


72. और अहले किताब का एक गिरोह कहता है, "उन लोगों पर जो ईमान लाए हैं, दिन के शुरुआती हिस्से में ईमान लाओ और आखिर में उसका इंकार कर दो, शायद वे वापस लौट आएं।"  


73. "और अपने दीन की पैरवी के अलावा किसी और की बात न मानो।" (ऐ नबी!) कह दीजिए, "असली हिदायत तो अल्लाह की हिदायत है।" यह इस कारण कहते हैं कि जैसा इल्म तुम लोगों को दिया गया, वैसा ही किसी और को भी दिया जाए, या वे तुमसे तुम्हारे रब के पास हुज्जत (दलील) करें। कह दीजिए, "बेशक फज़्ल (दया) अल्लाह के हाथ में है, जिसे चाहे देता है। और अल्लाह बड़ा वसी (व्यापक) और अलीम (जानने वाला) है।"  


74. वह अपनी रहमत के लिए जिसे चाहे चुनता है। और अल्लाह बड़ा फज़्ल (दया) करने वाला है।  


75. और अहले किताब में कुछ ऐसे भी हैं कि अगर तुम उनके पास अमानत (संपत्ति) का ढेर भी रख दो, तो वह तुम्हें वापस कर देंगे। और उनमें से कुछ ऐसे भी हैं कि अगर तुम उनके पास एक दीनार भी रख दो, तो वह तुम्हें तब तक वापस न करेंगे, जब तक कि तुम बार-बार उनके सिर पर खड़े न रहो। यह इस वजह से है कि उन्होंने कहा, "हम पर इन उम्मियों (अनपढ़ों) के बारे में कोई गुनाह नहीं।" और वे जानबूझकर अल्लाह पर झूठ कहते हैं।  


76. क्यों नहीं? जो कोई अपने अहद (वचन) को पूरा करे और तक़वा (अल्लाह से डरते हुए जीवन व्यतीत) रखे, तो बेशक अल्लाह मुत्तक़ीन (परहेज़गारों) से मुहब्बत करता है।  


77. बेशक जो लोग अल्लाह के अहद और अपनी क़समों को थोड़ी सी क़ीमत पर बेच देते हैं, उनके लिए आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं। और अल्लाह न उनसे बात करेगा, न क़यामत के दिन उनकी तरफ देखेगा और न उन्हें पाक करेगा, और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।  


78. और बेशक उनमें से एक गिरोह ऐसा है जो किताब पढ़ते वक्त अपनी ज़बानों को इस तरह मरोड़ते हैं कि तुम समझो कि जो कुछ वे पढ़ रहे हैं, वह किताब का हिस्सा है, जबकि वह किताब का हिस्सा नहीं होता। और वे कहते हैं, "यह अल्लाह की तरफ से है," जबकि वह अल्लाह की तरफ से नहीं होता। और वे जानबूझकर अल्लाह पर झूठ बोलते हैं।  


79. किसी इंसान को यह हक़ नहीं कि अल्लाह उसे किताब, हिकमत और नुबूवत (पैग़ंबरी) अता करे और फिर वह लोगों से कहे, "अल्लाह को छोड़कर मेरी बंदगी करो।" बल्कि वह तो यह कहेगा, "रब के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि तुम किताब सिखाते हो और उसे पढ़ते हो।"  


80. और वह तुमसे यह भी नहीं कह सकता कि तुम फ़रिश्तों और नबियों को अपना रब बना लो। क्या वह तुम्हें कुफ्र का हुक्म देगा, जबकि तुम मुसलमान हो?  


81. और याद करो, जब अल्लाह ने नबियों से अहद लिया था कि, "जब मैं तुम्हें किताब और हिकमत दूं, फिर तुम्हारे पास वह रसूल आए, जो उस चीज़ की तस्दीक़ करे जो तुम्हारे पास है, तो तुम उस पर ईमान लाना और उसकी मदद करना।" (अल्लाह ने) कहा, "क्या तुमने यह अहद क़ुबूल कर लिया और इस पर मेरा भारी जिम्मा उठाया?" उन्होंने कहा, "हमने क़ुबूल कर लिया।" (अल्लाह ने) कहा, "तो गवाह रहो, और मैं भी तुम्हारे साथ गवाहों में से हूँ।"  


82. फिर इसके बाद जो कोई भी (अपने अहद से) फिर जाए, तो वही लोग फासिक़ (नाफरमान) हैं।  


83. क्या वे अल्लाह के दीन के अलावा किसी और दीन की तलाश में हैं, जबकि आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है, वह उसके सामने सर झुकाए हुए है, चाहें ख़ुशी से या मजबूरी से, और उसी की तरफ सबको लौटना है?  


84. कह दीजिए, "हम अल्लाह पर ईमान लाए और जो कुछ हम पर नाज़िल किया गया, और जो कुछ इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक, याक़ूब और उनकी औलाद पर नाज़िल किया गया, और जो कुछ मूसा, ईसा और दूसरे नबियों को उनके रब की तरफ से दिया गया, हम उन सब पर ईमान लाए, और हम उनमें से किसी के बीच फर्क नहीं करते। और हम उसी के फरमाबरदार (आज्ञाकारी) हैं।"  


85. और जो कोई इस्लाम के अलावा कोई और दीन तलाश करेगा, तो उससे हरगिज़ क़ुबूल नहीं किया जाएगा, और वह आख़िरत में घाटे उठाने वालों में से होगा।  


86. अल्लाह ऐसे लोगों को हिदायत कैसे देगा, जिन्होंने ईमान लाने के बाद कुफ्र (इंकार) किया, और इस बात की गवाही दे चुके थे कि यह रसूल हक़ पर है, और उनके पास वाज़ेह दलीलें आ चुकी थीं? और अल्लाह ज़ालिमों को हिदायत नहीं देता।  


87. उन्हीं पर अल्लाह की, फ़रिश्तों की, और सब इंसानों की लानत है।  


88. वे हमेशा उस (लानत) में रहेंगे। न उनसे अज़ाब हल्का किया जाएगा, और न उन्हें मोहलत दी जाएगी।  


89. सिवाय उन लोगों के, जिन्होंने इसके बाद तौबा कर ली और अपनी हालत सुधार ली, तो बेशक अल्लाह बड़ा बख्शने वाला, रहम करने वाला है।  


90. बेशक जो लोग ईमान लाने के बाद कुफ्र करते रहे, फिर कुफ्र में बढ़ते गए, उनकी तौबा हरगिज़ क़ुबूल नहीं की जाएगी। और वही लोग गुमराह हैं।  


91. बेशक जो लोग कुफ्र करें और काफ़िर होने की हालत में मरें, तो उन में से किसी एक से ज़मीन भर कर भी सोना (अगर) फ़िदिया (प्रायश्चित) के तौर पर दिया जाए, तो हरगिज़ क़ुबूल न किया जाएगा। उन्हीं के लिए दर्दनाक अज़ाब है, और उनका कोई मददगार न होगा।  


92. तुम उस वक़्त तक भलाई को नहीं पा सकते जब तक कि तुम अल्लाह की राह में अपनी प्यारी चीज़ें ख़र्च न कर दो। और तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगे, अल्लाह उसे पूरी तरह जानता है।  


93. बनी इस्राईल के लिए तौरात नाज़िल होने से पहले हर तरह का खाना हलाल था, सिवाय उस खाने के जिसे याक़ूब ने अपनी जान पर हराम कर लिया था। (ऐ नबी!) कह दीजिए, "अगर तुम सच्चे हो, तो तौरात लेकर आओ और उसे पढ़ो।"  


94. फिर इसके बाद भी जो लोग झूठ घड़ें, वही ज़ालिम हैं।

  

95. कह दीजिए, "अल्लाह ने सच फ़रमाया है। सो अब इब्राहीम के दीन का अनुसरण करो, जो हनीफ़ (अल्लाह के एक सच्चे उपासक) थे, और वह मुशरिकों में से न थे।"  


96. बेशक पहला घर (काबा), जो लोगों के लिए बनाया गया, वही है जो मक्का में है, जो पूरे जहाँ के लोगों के लिए बरकत वाला और हिदायत है।  


97. उसमें वाज़ेह निशानियाँ हैं, (जैसे) मक़ाम-ए-इब्राहीम। और जो कोई उसमें दाखिल हो जाए, वह अमन पा जाता है। और लोगों पर अल्लाह के लिए हज करना फ़र्ज़ है, जो उस तक पहुँचने की ताक़त रखता हो। और जिसने कुफ्र किया, तो बेशक अल्लाह तमाम जहानों से बेपरवाह है।  


98. कह दीजिए, "ऐ अहले किताब! तुम अल्लाह की आयतों का क्यों इंकार करते हो, जबकि अल्लाह तुम्हारे किए पर गवाह है?"  


99. कह दीजिए, "ऐ अहले किताब! तुम क्यों उसे हक़ रास्ते से रोकते हो, जो उस पर ईमान लाता है, और चाहते हो कि वह टेढ़ा कर दो, जबकि तुम खुद गवाह हो? और अल्लाह तुम्हारे किए से बेख़बर नहीं है।"  


100. ऐ ईमान लाने वालों! अगर तुम अहले किताब के किसी गिरोह का कहना मानोगे, तो वह तुम्हें ईमान लाने के बाद फिर कुफ्र में लौटा देगा।  


101. और तुम्हारा क्या हाल होगा कि अल्लाह की आयतें तुम्हारे सामने पढ़ी जाती हैं और तुम्हारे बीच उसका रसूल मौजूद है? और जो कोई अल्लाह (की रस्सी) को मजबूती से थामे, तो बेशक उसे सीधा रास्ता दिखा दिया गया।  


102. ऐ ईमान लाने वालों! अल्लाह से उस तरह डरो, जैसा कि उससे डरने का हक़ है, और तुम हरगिज़ न मरो सिवाय इसके कि तुम मुसलमान हो।  


103. और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थामे रहो, और आपस में फूट न डालो, और याद करो अल्लाह का वह एहसान जो उसने तुम पर किया, जब तुम एक-दूसरे के दुश्मन थे, फिर उसने तुम्हारे दिलों को जोड़ दिया और उसकी नेमत से तुम भाई-भाई बन गए। और तुम आग के गड्ढे के किनारे पर थे, तो उसने तुम्हें उससे बचा लिया। इस तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें बयान करता है, ताकि तुम हिदायत पाओ।  


104. और तुम्हारे बीच से एक ऐसा गिरोह होना चाहिए, जो भलाई की तरफ बुलाए, नेकी का हुक्म दे और बुराई से रोके। और वही लोग सफल होने वाले हैं।  


105. और उन लोगों की तरह न हो जाना, जो आपस में बंट गए और झगड़ने लगे, जबकि उनके पास वाज़ेह दलीलें आ चुकी थीं। और उन्हीं के लिए बड़ा अज़ाब है।  


106. जिस दिन कुछ चेहरे चमकते होंगे, और कुछ चेहरे स्याह होंगे। तो जिनके चेहरे स्याह होंगे, उनसे कहा जाएगा, "क्या तुमने ईमान लाने के बाद कुफ्र किया? तो (अब) उस कुफ्र के बदले अज़ाब का मज़ा चखो।"  


107. और जिनके चेहरे चमकते होंगे, वे अल्लाह की रहमत में होंगे, उसमें हमेशा रहेंगे।  


108. ये अल्लाह की आयतें हैं, जिन्हें हम तुम्हारे सामने ठीक-ठीक बयान कर रहे हैं, और अल्लाह दुनिया वालों पर ज़ुल्म करने का इरादा नहीं रखता।  


109. और जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, सब अल्लाह का है। और सब कामों का अंजाम अल्लाह की तरफ है।  


110. तुम वह सबसे बेहतरीन उम्मत हो, जिसे लोगों (की हिदायत) के लिए निकाला गया है। तुम नेकी का हुक्म देते हो और बुराई से रोकते हो, और अल्लाह पर ईमान रखते हो। और अगर अहले किताब भी ईमान ले आते, तो यह उनके लिए बेहतर होता। उनमें से कुछ ईमान वाले हैं, और उनमें से ज्यादातर फ़ासिक़ (नाफरमान) हैं।  


111. वे तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते, सिवाय थोड़ी सी तकलीफ़ के। और अगर वे तुमसे लड़ें भी, तो तुमसे पीठ फेर कर भागेंगे, फिर उनकी मदद न की जाएगी।  


112. उन पर ज़िल्लत (अपमान) ठोक दी गई, जहां भी पाए जाएं, सिवाय इसके कि अल्लाह की रस्सी और लोगों की रस्सी को थाम लें। और वे अल्लाह के ग़ज़ब (क्रोध) के भागी हुए, और उन पर मोहताजी ठोक दी गई। ये इस वजह से है कि वे अल्लाह की आयतों का इंकार करते थे और नबियों को नाहक क़त्ल करते थे। ये इस वजह से हुआ कि उन्होंने नाफरमानी की और हद से बढ़ते थे।  


113. (इसके बावजूद) वे सब एक जैसे नहीं हैं। अहले किताब में एक गिरोह ऐसा भी है, जो रात के वक्त अल्लाह की आयतों की तिलावत करता है और वह सज्दा करते हैं।  


114. वे अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हैं, नेकी का हुक्म देते हैं और बुराई से रोकते हैं, और भलाई के कामों में जल्दबाजी करते हैं। और यही लोग नेक लोगों में से हैं।  


115. और वे जो भी भलाई करें, कभी उसकी कद्रदानी (इनकार) न की जाएगी। और अल्लाह मुत्तक़ीन (परहेज़गारों) को खूब जानता है।  


116. बेशक जिन लोगों ने कुफ्र किया, न उनके माल और न उनकी औलादें अल्लाह के सामने उन्हें कुछ भी फायदा पहुंचा सकेंगी। और वही लोग आग (जहन्नम) के साथी हैं, वे उसमें हमेशा रहेंगे।  


117. इस दुनिया की जिंदगी में जो कुछ वे खर्च करते हैं, उसकी मिसाल एक ठंडी हवा की तरह है, जिसमें सर्दी के वक्त पाले की मार हो और वह उन लोगों की खेती को जा लगे, जिन्होंने खुद पर ज़ुल्म किया हो और उसे तबाह कर दे। और अल्लाह ने उन पर ज़ुल्म नहीं किया, बल्कि वे खुद ही अपनी जानों पर ज़ुल्म करते थे।  


118. ऐ ईमान लाने वालों! अपने अलावा किसी को अपना राज़दार न बनाओ। वे तुम्हारे विनाश के सिवा कुछ और नहीं चाहते। उनकी अंदरूनी नफ़रतें ज़ाहिर हो चुकी हैं, और जो कुछ वे अपने दिलों में छुपाए हुए हैं, वह उससे भी ज्यादा बड़ा है। हम तुम्हारे लिए आयतें स्पष्ट कर चुके हैं, अगर तुम समझ रखते हो।  


119. देखो, तुम ऐसे हो कि तुम उनसे मुहब्बत रखते हो, और वे तुमसे मुहब्बत नहीं रखते, और तुम पूरी किताब पर ईमान रखते हो, जबकि वे तुमसे मिलने पर कहते हैं, "हम भी ईमान लाए हैं," और जब अलग होते हैं, तो तुम्हारे खिलाफ गुस्से से अपनी उंगलियां चबाते हैं। कह दीजिए, "तुम अपने गुस्से में ही मर जाओ!" बेशक अल्लाह दिलों के अंदर की बातें जानता है।  

120. अगर तुम्हें कोई भलाई मिले, तो उन्हें बुरा लगता है, और अगर तुम्हें कोई मुसीबत आए, तो वे उससे खुश होते हैं। और अगर तुम सब्र करो और तक़वा (अल्लाह का डर) रखो, तो उनका मकर (षड्यंत्र) तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। बेशक अल्लाह उनके कामों पर पूरी तरह से हावी है।  


121. और (याद करो) जब तुम अपने घर से निकले थे, ताकि मोमिनीन को जंग के मोर्चों पर तैनात करो। और अल्लाह सब कुछ सुनता और जानता है।  


122. उस वक्त तुम में से दो गिरोह थे जो नाकाम होने का इरादा कर रहे थे, जबकि अल्लाह उनका सहायक था। और मोमिनों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।  


123. और बेशक अल्लाह ने तुम लोगों की मदद की थी बद्र (की जंग) में, जबकि तुम कमज़ोर थे। तो अल्लाह से डरो, ताकि तुम शुक्र अदा कर सको।  


124. (याद करो) जब तुम मोमिनों से कहते थे, "क्या यह तुम्हारे लिए काफी नहीं है कि तुम्हारा रब तुम्हारी मदद के लिए तीन हज़ार फ़रिश्ते उतारे?"  


125. हां, क्यों नहीं! अगर तुम सब्र करो और तक़वा (परहेज़गारी) रखो, और अगर दुश्मन उसी वक्त तुम पर आ जाएं, तो तुम्हारा रब तुम्हारी मदद के लिए पांच हज़ार फ़रिश्तों को निशानियों के साथ भेजेगा।  


126. और अल्लाह ने इसे सिर्फ तुम्हारी खुशी और दिलों के इत्मिनान के लिए किया। और मदद तो सिर्फ अल्लाह की तरफ से होती है, जो ग़ालिब (सब पर हावी) और हकीम (बड़ा हिकमत वाला) है।  


127. ताकि वह उन लोगों का एक हिस्सा काट दे, जिन्होंने कुफ्र किया, या उन्हें नीचा कर दे कि वे मायूस होकर वापस लौटें।  


128. तुम्हारे हाथ में कुछ भी नहीं है, चाहे वह उनकी तौबा क़ुबूल करे, चाहे उन्हें अज़ाब दे, क्योंकि वे ज़ालिम हैं।  


129. और जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, वह अल्लाह ही का है। वह जिसे चाहे बख्शे, और जिसे चाहे अज़ाब दे। और अल्लाह बड़ा बख्शने वाला, रहम करने वाला है।  


130. ऐ ईमान लाने वालों! सूद (ब्याज) न खाओ, वह भी कई गुना बढ़ाकर, और अल्लाह से डरो, ताकि तुम सफल हो सको।  


131. और उस आग से बचो, जो काफ़िरों के लिए तैयार की गई है।  


132. और अल्लाह और उसके रसूल का कहना मानो, ताकि तुम पर रहम किया जाए।  


133. और अपने रब की माफी और उस जन्नत की तरफ दौड़ पड़ो, जिसकी चौड़ाई आसमानों और ज़मीन के बराबर है, और वह मुत्तक़ीन (परहेज़गारों) के लिए तैयार की गई है।  


134. जो ख़ुशहाली में और तंगी में अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं, और गुस्से को पी जाते हैं और लोगों को माफ कर देते हैं। और अल्लाह मुहसिनीन (भलाई करने वालों) से मुहब्बत करता है।  


135. और जो जब कोई बुरा काम कर बैठते हैं या अपनी जानों पर ज़ुल्म कर लेते हैं, तो अल्लाह को याद करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। और अल्लाह के सिवा कौन गुनाह माफ कर सकता है? और वे जान-बूझकर किए गए गुनाहों पर अड़े नहीं रहते।  


136. यही लोग हैं, जिनका बदला उनके रब की तरफ से मगफिरत (माफी) और वह जन्नतें हैं, जिनके नीचे नहरें बहती हैं। उनमें वे हमेशा रहेंगे। और यह कैसा अच्छा बदला है नेक काम करने वालों का।  


137. तुमसे पहले बहुत से (उम्हों) की मिसालें गुज़र चुकी हैं, तो ज़मीन में चल फिर कर देखो कि झुठलाने वालों का क्या अंजाम हुआ।  


138. यह (क़ुरआन) इंसानों के लिए एक साफ़ बयान है, और मुत्तक़ीन (परहेज़गारों) के लिए हिदायत और नसीहत है।  


139. और ढीले न पड़ो और न ही ग़म करो, अगर तुम ईमान वाले हो, तो तुम ही ग़ालिब रहोगे।  


140. अगर तुम्हें कोई चोट लगी है, तो (याद रखो) वैसी ही चोट तुम्हारे दुश्मन को भी लग चुकी है। और ये दिन हम लोगों के बीच अदला-बदली करते रहते हैं, ताकि अल्लाह सच्चे ईमान वालों को अलग कर दे और तुम में से कुछ को शहीद बनाए। और अल्लाह ज़ालिमों को पसंद नहीं करता।  


141. और ताकि अल्लाह ईमान वालों को छान-बीन करके साफ कर दे, और काफ़िरों को मिटा दे।  


142. क्या तुमने ये समझ रखा है कि तुम जन्नत में यूं ही दाखिल हो जाओगे, जबकि अभी अल्लाह ने उन लोगों को तो आज़माया ही नहीं है, जो तुममें से जिहाद करने वाले हों और (सच्चे) सब्र करने वाले हों?  


143. और तुम मौत से पहले उसकी तमन्ना किया करते थे, तो अब तुमने उसे अपनी आंखों से देख लिया, और देख रहे हो।  


144. और मोहम्मद तो सिर्फ एक रसूल हैं। उनसे पहले भी बहुत से रसूल गुज़र चुके हैं। तो क्या अगर वे मर जाएं या क़त्ल कर दिए जाएं, तो तुम अपनी एड़ियों के बल पीछे की तरफ पलट जाओगे? और जो कोई अपनी एड़ियों पर पीछे पलट जाएगा, वह अल्लाह को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता, और अल्लाह शुकर गुज़ारों को जल्द सज़ा देगा।  


145. और कोई जान अल्लाह के हुक्म के बगैर मर नहीं सकती। मौत का वक्त लिखा हुआ है। और जो कोई दुनिया का इनाम चाहता है, हम उसे दुनिया में से देंगे, और जो आख़िरत का इनाम चाहता है, हम उसे आख़िरत में से देंगे। और हम शुकर गुज़ारों को जल्द सज़ा देंगे।  


146. और कितने ही नबी ऐसे गुज़रे हैं जिनके साथ बहुत सारे अल्लाह वाले जंग में लड़े, तो उन्हें जो तकलीफ अल्लाह की राह में आई, उससे न तो उन्होंने हिम्मत हारी, न कमज़ोरी दिखाई और न ही उन्होंने (दुश्मनों के सामने) झुकाव दिखाया। और अल्लाह सब्र करने वालों से मुहब्बत करता है।  


147. और उनकी बात बस यही थी कि उन्होंने कहा, "ऐ हमारे रब! हमारे गुनाह माफ कर और हमारे कामों में जो ज्यादती हुई हो, उसे भी माफ कर और हमें जमाने पर क़दम जमाए रख और काफ़िर क़ौम पर हमारी मदद कर।"  


148. तो अल्लाह ने उन्हें दुनिया का इनाम भी दिया और आख़िरत का बेहतर इनाम भी। और अल्लाह मुहसिनीन (नेक लोगों) से मुहब्बत करता है।  


149. ऐ ईमान लाने वालों! अगर तुमने काफ़िरों का कहना माना, तो वे तुम्हें तुम्हारी एड़ियों के बल फिर (कुफ्र की तरफ) लौटा देंगे, फिर तुम घाटे में पड़ जाओगे।  


150. बल्कि अल्लाह ही तुम्हारा मसरिफ (दोस्त) है, और वही सबसे बेहतर मदद करने वाला है।  


151. हम जल्द ही काफ़िरों के दिलों में डर डाल देंगे, क्योंकि उन्होंने अल्लाह के साथ उन चीज़ों को शरीक ठहराया, जिनके लिए उसने कोई दलील नहीं उतारी। और उनका ठिकाना जहन्नम है, और ज़ालिमों का क्या ही बुरा ठिकाना है।  


152. और बेशक अल्लाह ने अपना वादा पूरा किया, जब तुम उनके (दुश्मनों) को अल्लाह के हुक्म से मार रहे थे, यहां तक कि जब तुमने कमज़ोरी दिखाई और (ऐ नबी की) ताबेदारी में झगड़ने लगे और जब उसने वह चीज़ (ग़नीमत) दिखाई, जिसे तुम चाहते थे, तो तुमने (हुक्म की) नाफ़रमानी की। तुम में से कुछ लोग दुनिया चाहते थे और कुछ आख़िरत चाहते थे, फिर उसने तुम्हें उनसे हटा लिया, ताकि तुम्हारी आज़माइश हो, और बेशक उसने तुम्हें माफ़ कर दिया। और अल्लाह मोमिनों पर बड़ा फज़ल करने वाला है।  


153. जब तुम (भागते हुए) चढ़ाई किए जा रहे थे, और किसी की तरफ मुड़कर भी नहीं देख रहे थे, और रसूल तुम्हारे पीछे तुम्हें पुकार रहे थे, तो उसने तुम्हें ग़म पर ग़म (देकर) सज़ा दी, ताकि तुम पर जो (ग़नीमत) जाती रही, या जो मुसीबत तुम्हें आई, उस पर ग़म न करो। और अल्लाह तुम्हारे किए से ख़बरदार है।  


154. फिर उस ग़म के बाद उसने तुम्हें इत्मिनान बख्शा, जो तुम्हारे कुछ लोगों पर उंगता हुई (नींद) की सूरत में आई। और कुछ ऐसे भी थे, जिन्हें बस अपनी जानों की फिक्र लगी हुई थी। वे अल्लाह के बारे में ग़लत ख़याल रखते थे, जो जाहिलियत के ख़यालात थे। वे कहते थे, "क्या इस काम में हमारा कोई दखल भी है?" कह दीजिए, "सारे काम अल्लाह ही के हाथ में हैं।" वे अपने दिलों में वह बात छुपाते हैं, जो वह तुम्हारे सामने नहीं ज़ाहिर करते। वे कहते हैं, "अगर इस काम में हमारा कोई हिस्सा होता, तो हम यहां मारे न जाते।" कह दीजिए, "अगर तुम अपने घरों में भी होते, तो जिनके लिए मरना लिखा हुआ है, वे अपने मरने की जगह की तरफ निकल आते। और यह इसलिए है कि अल्लाह तुम्हारी छिपी बातों को परखे और तुम्हारे दिलों में जो (खोट) है, उसे साफ कर दे। और अल्लाह दिलों की बात जानता है।"  


155. बेशक जिन लोगों ने उस दिन पीठ फेर ली, जिस दिन दोनों फ़ौजों की मुठभेड़ हुई, उन्हें बस शैतान ने उनके कुछ कामों की वजह से फिसलाया। और बेशक अल्लाह ने उन्हें माफ कर दिया। बेशक अल्लाह बड़ा बख्शने वाला, हलीम (बहुत बर्दाश्त करने वाला) है।  


156. ऐ ईमान लाने वालों! उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने कुफ्र किया और अपने भाइयों के बारे में कहा, जब वे सफ़र पर निकले या जंग में गए, "अगर वे हमारे पास होते, तो न मरते और न मारे जाते।" ताकि अल्लाह इस बात को उनके दिलों में हसरत (अफसोस) बना दे। और ज़िन्दगी देने और मौत देने वाला तो अल्लाह ही है। और अल्लाह तुम्हारे आमाल को देख रहा है।  


157. और अगर तुम अल्लाह की राह में मारे जाओ या मर जाओ, तो अल्लाह की मग़फिरत (माफी) और रहमत उससे कहीं बेहतर है, जो वे जमा कर रहे हैं।  


158. और अगर तुम मर जाओ या मारे जाओ, तो बेशक तुम सब अल्लाह ही की तरफ लौटाए जाओगे।  


159. (ऐ नबी!) यह अल्लाह की रहमत ही है कि तुम उनके लिए नर्म मिज़ाज हो, और अगर तुम बदमिज़ाज और सख्त दिल होते, तो वे तुम्हारे पास से छिटक जाते। लिहाज़ा उन्हें माफ कर दो और उनके लिए मग़फिरत की दुआ करो, और अपने काम में उनसे मशविरा किया करो। फिर जब तुम किसी काम का इरादा कर लो, तो अल्लाह पर भरोसा करो। बेशक अल्लाह भरोसा करने वालों से मुहब्बत करता है।  


160. अगर अल्लाह तुम्हारी मदद करे, तो तुम्हें कोई हरा नहीं सकता, और अगर वह तुम्हें छोड़ दे, तो उसके बाद कौन है जो तुम्हारी मदद कर सके? और मोमिनों को तो अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।  


161. और किसी नबी के लिए यह मुमकिन नहीं कि वह (ग़नीमत में) खयानत करे। और जो कोई खयानत करेगा, क़यामत के दिन वही उसके साथ लाया जाएगा, जो उसने खयानत की थी। फिर हर शख्स को पूरा-पूरा बदला दिया जाएगा, जो उसने कमाया होगा, और उन पर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा।  


162. क्या वह शख्स, जो अल्लाह की रज़ा के पीछे चलता है, उस शख्स की तरह हो सकता है, जो अल्लाह का ग़ज़ब लेकर लौटे? और उसका ठिकाना जहन्नम है, और वह क्या ही बुरा ठिकाना है!  


163. अल्लाह के नज़दीक उनके दर्जे (मरातिब) अलग-अलग हैं। और जो कुछ वे करते हैं, अल्लाह उसे देख रहा है।  


164. बेशक अल्लाह ने मोमिनों पर बड़ा फज़्ल किया, जब उसने उनमें से ही एक रसूल भेजा, जो उन्हें उसकी आयतें पढ़कर सुनाता है और उन्हें पाक करता है और उन्हें किताब और हिकमत (समझदारी) सिखाता है, हालांकि इससे पहले वे खुली गुमराही में थे।  


165. क्या जब तुम्हें (उहुद में) एक मुसीबत पहुंची, जबकि तुम (बद्र में) दुश्मनों को दो गुना (नुकसान) पहुंचा चुके थे, तो तुमने कहा, "यह कहां से आ गई?" कह दीजिए, "यह तुम्हारे अपने ही तरफ से आई है।" बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।  


166. और जो मुसीबत तुम्हें उस दिन पेश आई, जिस दिन दोनों लश्कर आपस में भिड़े, वह अल्लाह के इज़्न (हुक्म) से थी और ताकि वह मोमिनों को परखे।  


167. और ताकि वह उन लोगों को अलग कर दे, जो मुनाफ़िक़ हैं। और उनसे कहा गया, "आओ, अल्लाह की राह में जंग करो या (दुश्मनों के हमले से) बचाव करो।" उन्होंने कहा, "अगर हम जानते कि जंग होगी, तो हम ज़रूर तुम्हारे साथ चलते।" वे उस वक्त ईमान की तुलना में कुफ्र के ज्यादा करीब थे। वे अपनी बातों में वह बात ज़ाहिर करते हैं, जो उनके दिलों में नहीं थी। और अल्लाह जानता है जो कुछ वे छुपा रहे थे।  


168. जिन्होंने खुद तो बैठने का फैसला किया और अपने भाइयों के बारे में कहा, "अगर वे हमारी बात मानते, तो मारे न जाते।" कह दीजिए, "अगर तुम सच्चे हो, तो अपनी जान से मौत को हटा दो!"  


169. और जो लोग अल्लाह की राह में मारे गए, उन्हें मुर्दा न समझो। बल्कि वे जिंदा हैं, अपने रब के पास उन्हें रोज़ी दी जा रही है।  


170. वे अल्लाह के फज़्ल से खुश हैं, जो उन्हें दिया गया है, और जो लोग उनसे पीछे रह गए और अभी तक उन से नहीं मिले, उनकी भी ख़ुशख़बरी पाकर खुश होते हैं कि उन पर न कोई खौफ होगा और न ही वे ग़मज़दा होंगे।  


171. वे अल्लाह की नेमत और फज़्ल और इस बात से भी खुश हैं कि अल्लाह मोमिनों का बदला ज़ाया नहीं करता।  


172. जिन लोगों ने अल्लाह और उसके रसूल की बात मानी, उसके बाद कि उन्हें जख्म पहुंच चुके थे, उनके लिए उन लोगों में से, जिन्होंने एहसान और तक़वा का रास्ता अपनाया, बहुत बड़ा इनाम है।  


173. जिनसे लोगों ने कहा, "लोगों ने तुम्हारे खिलाफ (बड़ी) फौज जमा कर ली है, तो उनसे डर जाओ," तो इस बात ने उनके ईमान को और बढ़ा दिया, और उन्होंने कहा, "अल्लाह हमें काफी है, और वह बेहतरीन कारसाज़ (काम बनाने वाला) है।"  


174. फिर वे अल्लाह के फज़्ल और नेमत के साथ लौटे, उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा। और उन्होंने अल्लाह की रज़ा की पैरवी की, और अल्लाह बड़ा फज़्ल करने वाला है।  


175. यह तो बस शैतान ही है, जो अपने दोस्तों को डराता है। तो अगर तुम ईमान वाले हो, तो उनसे मत डरो, बल्कि मुझसे डरो।  


176. और जो लोग कुफ्र में जल्दी करते हैं, वह तुम्हें ग़मगीन न करें। बेशक वे अल्लाह को कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचा सकते। अल्लाह चाहता है कि उनके लिए आख़िरत में कोई हिस्सा न रखे, और उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब है।  


177. बेशक जिन लोगों ने ईमान के बदले कुफ्र खरीदा, वे अल्लाह को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते, और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।  


178. और काफ़िर यह न समझें कि हम उन्हें जो मोहलत दे रहे हैं, वह उनके लिए बेहतर है। हम तो उन्हें मोहलत दे रहे हैं ताकि वे और गुनाह कर लें, और उनके लिए ज़लील करने वाला अज़ाब है।  


179. अल्लाह ऐसा नहीं है कि मोमिनों को उसी हालत में छोड़ दे, जिस पर तुम हो, जब तक कि वह खराब को अच्छे से अलग न कर दे। और अल्लाह ऐसा नहीं है कि तुम्हें ग़ैब की बातों से आगाह कर दे, मगर अल्लाह अपने रसूलों में से जिसको चाहे चुन लेता है। लिहाज़ा तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ। और अगर तुम ईमान लाओ और परहेज़गारी (तक़वा) इख़्तियार करो, तो तुम्हारे लिए बहुत बड़ा इनाम है।  


180. और जिन लोगों को अल्लाह ने अपने फज़्ल से कुछ दिया है, वे उसमें कंजूसी न करें। और जो लोग कंजूसी करते हैं, वे यह न समझें कि यह उनके लिए बेहतर है। बल्कि यह उनके लिए बुरा है। क़यामत के दिन वह (माल) उनकी गर्दन में तौक़ बनाकर डाला जाएगा, जिससे वे कंजूसी करते थे। और अल्लाह के लिए आसमानों और ज़मीन की विरासत है। और जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उससे ख़बरदार है।  


181. बेशक अल्लाह ने उन लोगों की बात सुनी, जिन्होंने कहा, "अल्लाह गरीब है और हम अमीर हैं।" हम लिख रखेंगे जो उन्होंने कहा और जो नबियों को नाहक़ क़त्ल किया। और हम कहेंगे, "चखो जलाने वाले अज़ाब का मज़ा!"  


182. यह उसके बदले है, जो तुम्हारे हाथों ने पहले भेजा। और बेशक अल्लाह अपने बन्दों पर ज़ुल्म करने वाला नहीं है।  

183. जो लोग कहते हैं, "बेशक अल्लाह ने हमसे यह अहद लिया है कि हम किसी रसूल पर ईमान न लाएं, जब तक वह हमारे पास ऐसी क़ुर्बानी न लाए, जिसे आग खा जाए।" कह दीजिए, "बेशक मुझसे पहले तुम्हारे पास बहुत से रसूल निशानियां लेकर आए, और वह निशानी भी लेकर आए, जो तुम कह रहे हो, तो फिर तुमने उन्हें क्यों क़त्ल किया, अगर तुम सच्चे हो?"  


184. फिर अगर वे तुम्हें झुठलाते हैं, तो तुमसे पहले के रसूल भी झुठलाए गए, जो वाज़ेह निशानियां, सहिफ़े (अल्लाह के लिखे हुए हुक्म) और रौशन किताब लेकर आए थे।  


185. हर जान को मौत का मज़ा चखना है। और तुम्हें तुम्हारे बदले क़यामत के दिन पूरा-पूरा दिया जाएगा। फिर जिसे आग से बचा लिया गया और जन्नत में दाखिल कर दिया गया, तो वह कामयाब हो गया। और दुनिया की जिंदगी तो बस धोखे का सामान है।  


186. बेशक तुम्हारी माल और जान में आज़माइश की जाएगी, और बेशक तुमसे पहले किताब दिए गए लोगों और मुशरिकों से बहुत सी तकलीफ़देह बातें सुनोगे। और अगर तुम सब्र करो और परहेज़गारी इख़्तियार करो, तो बेशक यह हिम्मत का काम है।  


187. और जब अल्लाह ने उन लोगों से अहद लिया, जिन्हें किताब दी गई कि "तुम इसे लोगों के सामने ज़रूर बयान करोगे और इसे छुपाओगे नहीं," तो उन्होंने इसे अपनी पीठों के पीछे डाल दिया और इसके बदले थोड़ी क़ीमत ले ली। तो यह जो कुछ वे खरीदते हैं, वह बुरा है।  


188. यह न समझना कि जो लोग अपनी हरकतों पर खुश होते हैं और चाहते हैं कि जो उन्होंने नहीं किया, उसकी तारीफ़ की जाए, वे अज़ाब से बच जाएंगे। और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।  


189. और अल्लाह ही के लिए आसमानों और ज़मीन की बादशाहत है। और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।  


190. बेशक आसमानों और ज़मीन की पैदाइश और रात और दिन के अदल-बदल में अक़्ल वालों के लिए निशानियां हैं।  


191. जो अल्लाह को खड़े, बैठे और अपनी करवटों पर याद करते हैं, और आसमानों और ज़मीन की पैदाइश पर ग़ौर करते हैं (और कहते हैं), "ऐ हमारे रब! तूने यह सब बेकार नहीं बनाया। तू (हर ऐब से) पाक है, हमें जहन्नम के अज़ाब से बचा ले।  


192. ऐ हमारे रब! जिसे तूने जहन्नम में डाला, तो बेशक तूने उसे रुसवा कर दिया। और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं। 

 

193. ऐ हमारे रब! हमने एक पुकारने वाले को सुना, जो ईमान के लिए पुकार रहा था कि अपने रब पर ईमान लाओ, तो हमने ईमान लाया। ऐ हमारे रब! हमें हमारे गुनाह माफ कर दे और हमारी बुराइयों को दूर कर दे, और हमें नेक लोगों के साथ मौत दे।  


194. ऐ हमारे रब! और हमें वह दे, जिसका तूने अपने रसूलों के ज़रिए हमसे वादा किया है, और हमें क़यामत के दिन रुसवा न कर। बेशक तू वादा ख़िलाफ़ी नहीं करता।"


195. तो उनके रब ने उनकी दुआ क़ुबूल कर ली कि "मैं तुम में से किसी अमल करने वाले का अमल ज़ाया नहीं करता, चाहे वह मर्द हो या औरत। तुम सब एक-दूसरे से हो। तो जिन्होंने हिजरत की और अपने घरों से निकाले गए और मेरी राह में सताए गए और लड़ाई की और मारे गए, मैं बेशक उनकी बुराइयों को दूर कर दूंगा, और उन्हें जन्नत में दाखिल करूंगा, जिनके नीचे नहरें बह रही हैं। यह अल्लाह के यहां से इनाम है। और अल्लाह के पास सबसे बेहतरीन इनाम है।  


196. काफिरों का जमीन में इधर-उधर चलना-फिरना तुम्हें धोके में न डाले।  


197. यह थोड़ी देर का फायदा है, फिर उनका ठिकाना जहन्नम है। और वह क्या ही बुरा ठिकाना है।  


198. मगर जो लोग अपने रब से डरते हैं, उनके लिए जन्नतें हैं, जिनके नीचे नहरें बह रही हैं, जिनमें वे हमेशा रहेंगे। यह अल्लाह के यहां से मेहमाननवाजी है। और जो अल्लाह के पास है, वह नेक लोगों के लिए सबसे बेहतरीन है।  


199. और बेशक अहल-ए-किताब में से कुछ ऐसे लोग हैं, जो अल्लाह पर ईमान लाते हैं और उस पर जो तुम पर उतरा और जो उन पर उतरा, अल्लाह के आगे झुकते हुए, और अल्लाह की आयतों को थोड़ी कीमत पर नहीं बेचते। उनके लिए उनके रब के पास उनका इनाम है। बेशक अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है।  


200. ऐ ईमान लाने वालों! सब्र करो और (दुश्मनों के मुक़ाबले में) सब्र की मश्क करो और सरहदों पर डटे रहो, और अल्लाह से डरो ताकि तुम कामयाब हो जाओ।  

 

सूरह अल-इमरान (सूरह 3) की 200 आयतें का तर्जुमा पूरा हुआ।


सूरह अन-निसा (सूरह 4)