बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम
(शुरुआत अल्लाह के नाम से, जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला है)
1. ऐ इंसानो! अपने उस रब से डरो, जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया और उसी से उसका बनाया, और उन दोनों से बहुत से मर्द और औरतें (दुनिया में) फैला दीं। और अल्लाह से डरो, जिसके नाम का वास्ता देकर तुम एक-दूसरे से सवाल करते हो, और रिश्तों (को तोड़ने) से बचो। बेशक अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है।
2. और यतीमों का माल उन्हें वापस कर दो और उनके अच्छे माल को अपने खराब माल से न बदलो, और न उनके माल को अपने माल के साथ मिलाकर खा जाओ। बेशक यह बहुत बड़ा गुनाह है।
3. और अगर तुम इस बात से डरते हो कि यतीमों (के मामले में) इंसाफ़ न कर सकोगे, तो उन औरतों में से जो तुम्हें पसंद आए, दो-दो, तीन-तीन, चार-चार से निकाह कर लो। लेकिन अगर तुम इस बात से डरते हो कि (उनमें) इंसाफ़ न कर सकोगे, तो (फिर) एक ही से निकाह करो, या (उनसे) जो तुम्हारी मिल्कियत में हों। यह ज्यादा करीब है, कि तुम (अदालत से) न हटो।
4. और औरतों को उनका महर ख़ुशी से दे दो। फिर अगर वे अपनी ख़ुशी से उसमें से कुछ छोड़ दें, तो उसे मज़े से खा सकते हो।
5. और नासमझों (बेवकूफों) को अपना माल, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए गुज़ारे का सामान बनाया है, न दो, बल्कि उन्हें उसमें से खिलाओ और पहनाओ, और उनसे नरमी से बात करो।
6. और यतीमों की परवरिश के दौरान उन्हें परखते रहो, यहां तक कि वे शादी की उम्र को पहुंच जाएं। फिर अगर तुम उनमें समझदारी देखो, तो उनका माल उन्हें वापस कर दो। और इस डर से कि वे बड़े हो जाएंगे, उनके माल को फुज़ूल ख़र्ची और जल्दी में न खाओ। और जो मालदार हो, वह (यतीम के माल से) कुछ न ले, और जो तंगदस्त हो, वह मुनासिब तरीके से ले सकता है। फिर जब तुम उनका माल उन्हें वापस करो, तो उन पर गवाह बना लो। और अल्लाह हिसाब लेने के लिए काफी है।
7. मर्दों के लिए उस माल में से हिस्सा है, जो मां-बाप और रिश्तेदार छोड़ गए हों। औरतों के लिए भी उस माल में से हिस्सा है, जो मां-बाप और रिश्तेदार छोड़ गए हों, चाहे वह कम हो या ज्यादा। यह हिस्सा तय किया हुआ है।
8. और जब विरासत बांटी जा रही हो और वहां रिश्तेदार, यतीम और गरीब मौजूद हों, तो उन्हें भी उसमें से कुछ दे दो और उनसे नरमी से बात करो।
9. और जो लोग डरते हैं कि अगर वे अपने पीछे कमज़ोर औलाद छोड़ते, तो उनके बारे में चिंता करते, उन्हें चाहिए कि अल्लाह से डरें और ठीक बात कहें।
10. जो लोग नाहक़ यतीमों का माल खाते हैं, वे अपने पेट में आग भर रहे हैं, और जल्द ही वे धधकती हुई आग में जाएंगे।
11. अल्लाह तुम्हें तुम्हारी औलाद के बारे में हुक्म देता है कि मर्द का हिस्सा दो औरतों के बराबर है। फिर अगर (मृतक की) औलाद सिर्फ़ औरतें हों, और वे दो या उससे ज्यादा हों, तो उन्हें उसके छोड़े हुए माल का दो-तिहाई हिस्सा मिलेगा। और अगर एक ही हो, तो उसे आधा हिस्सा मिलेगा। और अगर मय्यत (मृतक) की औलाद हो, तो उसके मां-बाप में से हर एक को उसके छोड़े हुए माल का छठा हिस्सा मिलेगा। और अगर उसकी औलाद न हो और उसके वारिस मां-बाप ही हों, तो उसकी मां को एक-तिहाई मिलेगा। फिर अगर उसके भाई-बहन भी हों, तो उसकी मां का हिस्सा छठा होगा। (यह सब) उसके वसीयत करने के बाद (होगा), जो उसने की हो, या उसके कर्ज़ की अदायगी के बाद। तुम्हारे मां-बाप और तुम्हारी औलाद में से किसका तुम्हें ज्यादा फायदा होगा, यह तुम्हें मालूम नहीं। यह हिस्सा अल्लाह ने तय कर दिया है। बेशक अल्लाह खूब जानने वाला, हिकमत वाला है।
12. और तुम्हारे लिए तुम्हारी बीवियों के छोड़े हुए माल का आधा हिस्सा है, अगर उनकी कोई औलाद न हो। फिर अगर उनकी औलाद हो, तो तुम्हारे लिए उनके माल का चौथाई हिस्सा है, वसीयत करने के बाद, जो उन्होंने की हो, या उनके कर्ज़ की अदायगी के बाद। और तुम्हारी बीवियों के लिए तुम्हारे छोड़े हुए माल का चौथाई हिस्सा है, अगर तुम्हारी कोई औलाद न हो। फिर अगर तुम्हारी औलाद हो, तो उनके लिए तुम्हारे माल का आठवां हिस्सा है, वसीयत के बाद, जो तुमने की हो, या कर्ज़ की अदायगी के बाद। और अगर किसी मर्द या औरत का (वारिस) कलाला (ऐसा व्यक्ति जिसकी औलाद और मां-बाप न हों) हो, और उसका एक भाई या एक बहन हो, तो उन दोनों में से हर एक के लिए छठा हिस्सा है। फिर अगर वे (भाई-बहन) ज्यादा हों, तो वे सब एक-तिहाई में शरीक होंगे, वसीयत के बाद, जो की गई हो, या कर्ज़ की अदायगी के बाद, बशर्ते कि वह वसीयत नुक्सानदेह न हो। यह अल्लाह की तरफ से हुक्म है, और अल्लाह जानने वाला, बर्दाश्त करने वाला है।
13. ये अल्लाह की तय की हुई हदें हैं। जो अल्लाह और उसके रसूल की फरमांबरदारी करेगा, उसे अल्लाह ऐसे बागों में दाखिल करेगा, जिनके नीचे नहरें बहती हैं। वे उनमें हमेशा रहेंगे, और यही सबसे बड़ी कामयाबी है।
14. और जो अल्लाह और उसके रसूल की नाफरमानी करेगा और उसकी हदों से आगे बढ़ेगा, उसे वह आग में दाखिल करेगा, जिसमें वह हमेशा रहेगा, और उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है।
15. और तुम्हारी औरतों में से जो बदकारी करें, उन पर अपने में से चार गवाह बुलाओ। फिर अगर वे गवाही दें, तो उन्हें घरों में बंद रखो, यहां तक कि मौत उन्हें आ जाए, या अल्लाह उनके लिए कोई रास्ता बना दे।
16. और तुममें से जो दो लोग ऐसा करें, उन्हें तकलीफ दो। फिर अगर वे तौबा करें और अपने आप को सुधार लें, तो उन्हें छोड़ दो। बेशक अल्लाह तौबा कबूल करने वाला, मेहरबान है।
17. अल्लाह के जिम्मे तौबा सिर्फ उन्हीं लोगों की है, जो नादानी में बुराई करते हैं और फिर जल्द ही तौबा कर लेते हैं। यही वो लोग हैं जिनकी तौबा अल्लाह कबूल करता है। और अल्लाह खूब जानने वाला, हिकमत वाला है।
18. और जो लोग बुराई करते रहें, यहां तक कि जब उन में से किसी के पास मौत आ जाए, तब कहे कि, "अब मैं तौबा करता हूं," और न ही उन लोगों की तौबा कबूल होगी, जो काफ़िर होकर मरें। ऐसे लोगों के लिए हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार किया है।
19. ऐ ईमान लानेवालों! तुम्हारे लिए यह हलाल नहीं कि औरतों को जबरदस्ती विरासत में ले लो, और उन्हें इस ख्याल से न रोको कि तुम जो उन्हें दिया है, उसमें से कुछ वापस ले सको, सिवाय इसके कि वे कोई खुली हुई बुराई करें। और उनके साथ अच्छे तरीके से ज़िंदगी गुज़ारो। फिर अगर तुम्हें उनसे नफरत हो, तो हो सकता है कि तुम्हें किसी चीज़ से नफरत हो और अल्लाह उसमें बहुत भलाई रख दे।
20. और अगर तुम एक बीवी की जगह दूसरी बीवी लेना चाहो, और तुमने पहली को बहुत सारा माल भी दे दिया हो, तो उसमें से कुछ भी वापस न लो। क्या तुम उस माल को नाहक़ और खुल्लम-खुल्ला गुनाह के ज़रिए लोगे?
21. और तुम उसे कैसे वापस लोगे, जबकि तुम एक-दूसरे से मिल चुके हो और उन्होंने तुमसे पक्का अहद (वादा) लिया था?
22. और जिन औरतों से तुम्हारे बाप ने निकाह किया हो, उनसे निकाह मत करो, सिवाय इसके जो पहले हो चुका है। बेशक यह बेहयाई है, और नफरत की चीज़ है, और बहुत बुरा रास्ता है।
23. तुम पर हराम की गई हैं तुम्हारी माएं, तुम्हारी बेटियां, तुम्हारी बहनें, तुम्हारी फूफियां, तुम्हारी खालाएं, तुम्हारी भतीजियां, तुम्हारी भांजियां, और तुम्हारी वो दूध पिलाने वाली मांएं जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो, और तुम्हारी दूध-शरीक बहनें, और तुम्हारी बीवियों की माएं, और तुम्हारी पाली हुई बेटियां जो तुम्हारी गोद में पली हों, उन बीवियों से जिनसे तुमने संबंध बनाए हों। फिर अगर तुमने उनसे संबंध न बनाए हों, तो (उनकी बेटियों से निकाह करने में) तुम पर कोई गुनाह नहीं है। और तुम्हारे बेटों की बीवियां, जो तुम्हारे सुलबी (सगे) बेटों से हों, और ये भी हराम है कि तुम दो बहनों को इकट्ठा करो, सिवाय इसके जो पहले हो चुका है। बेशक अल्लाह बड़ा बख्शने वाला, मेहरबान है।
24. और (तुम पर हराम हैं) वे औरतें जो किसी और के निकाह में हों, सिवाय उन (कनीज़ों) के जो तुम्हारी मिल्कियत में हों। ये अल्लाह का हुक्म है जो तुम पर लाज़िम किया गया है। और इनके अलावा जो (औरतें) हैं, वह तुम्हारे लिए हलाल की गई हैं, बशर्ते कि तुम अपने माल के साथ उनको (निकाह के ज़रिए) हासिल करो, पाकदामनी बरतते हुए, न कि खुल्लम-खुल्ला ज़िना करते हुए। फिर जो लुत्फ़ उठा चुके हो उनसे, उन्हें उनका महर दे दो, जो तय किया हुआ हो। और कोई गुनाह नहीं है तुम पर इस बात में कि तयशुदा महर के बाद आपस की रज़ामंदी से और कोई तय कर लो। बेशक अल्लाह खूब जानने वाला, हिकमत वाला है।
25. और तुममें से जो आदमी इस काबिल न हो कि आज़ाद ईमान वाली औरतों से निकाह कर सके, तो वो अपनी उन मोमिन कनीज़ों से निकाह कर ले, जो तुम्हारी मिल्कियत में हों। और अल्लाह तुम्हारे ईमान को अच्छी तरह जानता है। तुम सब आपस में एक ही (क़ौम) हो। तो उनसे उनके मालिकों की इजाज़त से निकाह कर लो और उनकी मिहरियत अदा कर दो, अच्छे तरीके से, बशर्ते कि वे पाकदामन हों, न कि खुल्लम-खुल्ला बदकारी करने वाली और न ही छुपकर आशिक़ी करने वाली। फिर जब वो निकाह के बंधन में आ जाएं और इसके बाद वो बदकारी करें, तो उन पर आधी सज़ा है जितनी कि आज़ाद औरतों पर है। ये (इजाज़त) उस शख्स के लिए है, जिसे गुनाह में पड़ने का अंदेशा हो। और सब्र करना तुम्हारे लिए बेहतर है। और अल्लाह बख्शने वाला, मेहरबान है।
26. अल्लाह चाहता है कि वह तुम्हारे लिए (अपने) हुक्म बयान करे, और तुम्हें उन लोगों के तरीकों पर चलाए जो तुमसे पहले गुजर चुके हैं, और तुम्हारी तौबा कबूल करे। और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, हिकमत वाला है।
27. और अल्लाह चाहता है कि वह तुम्हारी तौबा कबूल करे, मगर जो लोग अपनी ख्वाहिशों के पीछे चलते हैं, वो चाहते हैं कि तुम (सही रास्ते से) बहुत ज्यादा भटक जाओ।
28. अल्लाह चाहता है कि तुम्हें हल्कापन दे, क्योंकि इंसान कमज़ोर पैदा किया गया है।
29. ऐ ईमान लानेवालों! आपस में एक-दूसरे के माल को नाहक़ तरीके से न खाओ, सिवाय इसके कि आपस की रज़ामंदी से कारोबार हो। और अपने आपको हलाक मत करो। बेशक अल्लाह तुम पर बहुत मेहरबान है।
30. और जो शख्स नाहक़ और जुल्म से ऐसा करेगा, तो हम उसे जल्द ही आग में झोंक देंगे। और ये अल्लाह के लिए बहुत आसान है।
31. अगर तुम अल्लाह की बड़ी बातों को छोड़कर छोटी बातों पर नज़र रखोगे, तो तुम पर कुछ गुनाह नहीं है। और अगर तुम (खुदा की हदों को) पार करोगे, तो तुम ज़ालिम हो।
32. और उन चीज़ों को न चाहो, जिनमें से अल्लाह ने तुममें से एक को दूसरे पर फज़ीलत दी है। मर्दों के लिए है, जो उन्होंने कमाया, और औरतों के लिए है, जो उन्होंने कमाया। और अल्लाह से उसकी नेमतों का सवाल करो। बेशक अल्लाह हर चीज़ को जानता है।
33. और उन लोगों का हिस्सा भी दो, जिनसे तुमने वादा किया है, और जो तुम्हारे बाप-दादों के वारिस हैं। और यह अल्लाह का हुक्म है, और अल्लाह जानने वाला, हिकमत वाला है।
34. मर्द, औरतों पर हुकूमत रखते हैं, क्योंकि अल्लाह ने उनमें से एक को दूसरे पर फज़ीलत दी है और क्योंकि उन्होंने अपने माल से (परिवार का खर्चा) दिया है। फिर जो नेक औरतें हैं, वे अपनी हिफाज़त करती हैं, और जो चीज़ें अल्लाह ने उनकी हिफाज़त के लिए तय की हैं। और जिनसे तुमको नफरत हो, उनसे दूर रहो, और जब तक उनकी अदब-आदाब से रहें, उन पर सख्त न हो।
35. और अगर तुमको किसी बात का डर हो, तो अपने पास के रिश्तेदारों से भी बात करो। अगर वह सच्चे हैं, तो अल्लाह उनके बीच फैसला करेगा। बेशक अल्लाह जानने वाला, हिकमत वाला है।
36. और अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी को शरीक मत करो। और अपने मां-बाप के साथ, और करीबी रिश्तेदारों, यतीमों, फकीरों, पड़ोसियों, साथी पड़ोसियों, और दाहिनी तरफ़ के पड़ोसियों के साथ, और अपने दोस्तों के साथ अच्छे से पेश आओ। और जो तुम्हारे दास हैं, उनके साथ भी अच्छे से पेश आओ। बेशक अल्लाह तुम्हें इन्साफ के साथ अपने हुक्म देता है। और अगर तुम उन सब पर नज़र रखोगे, तो तुम अल्लाह के हुक्म के अनुसार चलोगे।
37. और जो लोग अपने माल को नाहक़ तरीके से दूसरों पर खर्च करते हैं, तो वो अपने मां-बाप, रिश्तेदारों, यतीमों, फकीरों, और पड़ोसियों के साथ बुराई करने वाले होंगे। और ये अल्लाह के लिए बेहद नापसंद है।
38. और अगर तुम अपने लिए कुछ करोगे, तो तुम अल्लाह के हुक्म के अनुसार चलोगे।
39. और जो लोग (तुमसे) नफरत करते हैं, वो तुमसे दूर रहेंगे, और अल्लाह तुम्हें उनसे भलाई के लिए रहम करेगा।
40. और अल्लाह के लिए कोई भी चीज़ आसान नहीं है। और जो अल्लाह का रास्ता अपनाएगा, वो सफल होगा।
41. और जिस दिन अल्लाह सब रसूलों को इकट्ठा करेगा, फिर उनसे पूछेगा, "क्या तुम्हें (अपनी उम्मत की) दावत दी गई थी?" वो कहेंगे, "हमारे पास कोई खबर नहीं है। बेशक, तुम ही जानने वाले हो, छिपी हुई चीज़ों के।"
42. और उस दिन काफिरों के चेहरे काले होंगे। और अल्लाह फरमाएगा, "क्या तुमने अपने ईमान का इन्कार किया है, जबकि तुमने ईमान लाने के बाद इन्कार किया?" फिर उन्हें कहा जाएगा, "तो अब (अज़ाब) का मज़ा चखो, तुमने अपने काफिर होने का इन्कार किया।"
43. और ईमान वालों और अच्छे काम करने वालों के चेहरे रोशन होंगे। उन्हें अल्लाह की रहमत और इसके बाग़ात का वादा होगा।
44. ये वो बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें बहती हैं, जहां वे हमेशा रहेंगे। अल्लाह की ओर से ये बड़ा इनाम है।
45. फिर जिस दिन अल्लाह ने यह तय कर लिया होगा कि जो लोग ईमान लाए हैं, उन्हें उनके अच्छे कामों के लिए इनाम दे। और जो लोग काफिर रहे हैं, उन्हें सज़ा दी जाएगी।
46. और जिन लोगों ने अल्लाह के रसूलों में से कुछ को काफिर कहा और कुछ को काफिर नहीं कहा, वो सच्चाई को नहीं समझते। और अल्लाह के सामने कोई भी नहीं होगा।
47. और जिन लोगों ने ईमान लाया है और अच्छे काम किए हैं, उनके लिए बाग़ात है, जहां नहरें बहती हैं। वे हमेशा उसमें रहेंगे।
48. और अल्लाह ने कहा, "ये सब तुम्हारी जायदाद और अपनी मांओं के लिए हलाल है, क्योंकि अल्लाह बड़ा बख्शने वाला है।"
49. और जो लोग (अपने रसूलों की) नाफरमानी करेंगे, उनका सख्त अज़ाब होगा।
50. और जो लोग अल्लाह के पास ईमान लाएंगे और अच्छे काम करेंगे, उन्हें अल्लाह बड़े इनाम से नवाजेगा।
51. और अल्लाह ही सब कुछ जानने वाला है।
52. बेशक, अल्लाह हमेशा अपने वादों को पूरा करता है।
53. क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें किताब का कुछ हिस्सा दिया गया था? वो गुमराही खरीदते हैं और चाहते हैं कि तुम भी रास्ते से भटक जाओ।
54. और अल्लाह तुम्हारे दुश्मनों को अच्छी तरह जानता है। अल्लाह तुम्हारा संरक्षक (वली) है और वही तुम्हारी मदद करने के लिए काफी है।
55. कुछ लोग तो (किताब वालों में से) ऐसे हैं, जो उस (किताब) पर ईमान लाए और कुछ ऐसे हैं जो इससे मुंह मोड़ लेते हैं। और जहन्नम (उनके लिए) काफी है, जो इनकार करने वाले हैं।
56. बेशक जो लोग हमारी आयतों का इन्कार करते हैं, हम उन्हें जल्द ही आग में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी, तो हम उन्हें दूसरी खाल से बदल देंगे ताकि वो अज़ाब (पीड़ा) का मज़ा चखते रहें। बेशक अल्लाह सब पर ग़ालिब है, हिकमत वाला है।
57. और जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम किए, हम उन्हें ऐसे बाग़ों में दाखिल करेंगे जिनके नीचे नहरें बहती हैं, और वे हमेशा उनमें रहेंगे। वहाँ उनके लिए पाक बीवियां होंगी, और हम उन्हें घने सायों में दाखिल करेंगे।
58. बेशक, अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि तुम अमानतें उनके मालिकों को वापस कर दो, और जब तुम लोगों के बीच फैसला करो, तो इंसाफ के साथ फैसला करो। बेशक अल्लाह तुम्हें बहुत अच्छी नसीहत करता है। अल्लाह सुनने वाला, देखने वाला है।
59. ऐ ईमान वालों! अल्लाह की फ़रमांबरदारी करो, और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की फ़रमांबरदारी करो, और तुम में से हुक्मरानों की भी। फिर अगर तुम किसी चीज़ में झगड़ पड़ो, तो उसे अल्लाह और रसूल की तरफ लौटा दो, अगर तुम अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हो। यही बेहतर और अंजाम के लिहाज़ से अच्छा है।
60. क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो ये दावा करते हैं कि वो उस चीज़ पर ईमान लाए जो तुम्हारी तरफ नाज़िल की गई, और उससे पहले जो नाज़िल की गई, फिर चाहते हैं कि अपना फैसला शैतान के पास ले जाएं, जबकि उन्हें हुक्म दिया गया था कि वो उसका इन्कार करें? और शैतान चाहता है कि उन्हें दूर की गुमराही में डाल दे।
61. और जब उनसे कहा जाता है कि अल्लाह की उतारी हुई किताब की ओर और रसूल की ओर आओ, तो तुम देखोगे कि मुनाफिक (दोगले) लोग तुमसे दूर भागते हैं।
62. फिर जब उन पर कोई मुसीबत आ पड़ती है, जो उनके अपने हाथों की कमाई का नतीजा होती है, तो फिर वो तुम्हारे पास आते हैं और अल्लाह की कसमें खाते हैं कि हमारा तो मकसद तो भलाई और सुलह करना था।
63. ये वो लोग हैं जिनके दिलों का हाल अल्लाह जानता है। इनसे दूर रहो, और इन्हें नसीहत करो, और उनसे उनकी आत्मा को असर करने वाली बात कहो।
64. और हमने हर रसूल को इसलिए भेजा कि अल्लाह के हुक्म से उसकी फरमांबरदारी की जाए। और अगर ये लोग, जब उन्होंने अपनी जानों पर जुल्म किया था, तुम्हारे पास आते, फिर अल्लाह से माफी मांगते, और रसूल भी उनके लिए माफी मांगते, तो यकीनन अल्लाह को तौबा कबूल करने वाला, रहम करने वाला पाते।
65. मगर नहीं, तुम्हारे रब की कसम! ये कभी ईमानदार नहीं हो सकते, जब तक कि ये तुम्हें अपने झगड़ों में हाकिम न बना लें, फिर जो फैसला तुम करो, उसमें अपने दिलों में किसी तरह की तंगी न पाएं और पूरी तरह से उसे मान लें।
66. और अगर हमने इनसे कहा होता, "अपने आपको क़त्ल कर दो," या "अपने घरों से निकल जाओ," तो इनमें से कुछ ही लोग ऐसा करते। और अगर ये लोग वो करते, जो इन्हें नसीहत की जाती है, तो ये उनके लिए बेहतर होता और (ईमान में) ज्यादा मज़बूती का सबब होता।
67. और फिर हम इन्हें अपनी तरफ से बड़ा इनाम देते।
68. और इन्हें सीधा रास्ता दिखाते।
69. और जो लोग अल्लाह और रसूल की फरमांबरदारी करते हैं, वो उन लोगों के साथ होंगे जिन पर अल्लाह ने इनाम किया है, यानी नबियों के साथ, सिद्दीकों के साथ, शहीदों के साथ, और नेक लोगों के साथ। और ये कितनी अच्छी सोहबत है!
70. ये अल्लाह का फज़ल है, और अल्लाह जानने वाला है।
71. ऐ ईमान वालों! अपने हथियार उठा लो, और चौकसी के साथ जुलूस बनाकर निकलो, या फिर सब एक साथ।
72. और तुममें से कुछ ऐसे भी हैं जो ढीले पड़ जाएंगे। फिर अगर तुम पर कोई मुसीबत आ पड़ी, तो कहेंगे, "अल्लाह ने हम पर बड़ा इनाम किया कि हम उनके साथ नहीं गए।"
73. और अगर तुम पर अल्लाह की तरफ से कोई फज़ल हुआ, तो ये ऐसे कहेंगे, जैसे तुम्हारे और उनके बीच कभी दोस्ती ही न थी, "काश हम भी उनके साथ होते, तो हम भी बड़ी कामयाबी हासिल करते।"
74. तो जो लोग दुनिया की जिंदगी के बदले आख़िरत को खरीदना चाहते हैं, उन्हें अल्लाह के रास्ते में लड़ना चाहिए। और जो अल्लाह के रास्ते में लड़ते हुए मारा जाए या जीत जाए, तो हम उसे बड़ा इनाम देंगे।
75. और तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह के रास्ते में नहीं लड़ते, जबकि कमज़ोर मर्द, औरतें और बच्चे ये कहते हैं, "ऐ हमारे रब! हमें इस बस्ती से निकाल, जिसके लोग ज़ालिम हैं, और हमें अपनी तरफ से कोई मददगार दे।"
76. जो लोग ईमान लाए हैं, वो अल्लाह के रास्ते में लड़ते हैं, और जो काफिर हैं, वो शैतान के रास्ते में लड़ते हैं। तो शैतान के दोस्तों से लड़ो। बेशक शैतान की चाल कमजोर है।
77. क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिनसे कहा गया था, "अपने हाथ रोके रखो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो"? फिर जब उन पर लड़ाई फर्ज़ कर दी गई, तो उनमें से कुछ लोग ऐसे थे, जो लोगों से ऐसे डरने लगे जैसे अल्लाह से डरते हैं, या उससे भी ज्यादा। और उन्होंने कहा, "ऐ हमारे रब! तूने हम पर लड़ाई क्यों फर्ज़ कर दी? क्यों न हमें थोड़ी और मोहलत दी?" कह दो, "दुनिया का फायदा थोड़ा है, और आख़िरत बेहतर है उनके लिए जो तक़वा (परहेज़गारी) रखते हैं। और तुम पर ज़रा भी ज़ुल्म न किया जाएगा।"
78. जहां कहीं भी तुम हो, मौत तुमको आ पकड़ेगी, चाहे तुम मजबूत किलों में हो। और अगर उन्हें कोई भलाई पहुंचती है, तो कहते हैं, "ये अल्लाह की तरफ से है।" और अगर उन्हें कोई मुसीबत पहुंचती है, तो कहते हैं, "ये तुम्हारी वजह से है।" कह दो, "सब कुछ अल्लाह की तरफ से है।" तो इन लोगों को क्या हो गया है कि कोई बात समझते ही नहीं?
79. तुमको जो भी भलाई पहुंचती है, वो अल्लाह की तरफ से है। और जो भी बुराई पहुंचती है, वो तुम्हारी अपनी तरफ से है। और हमने तुम्हें लोगों के लिए रसूल बनाकर भेजा है। और गवाह के तौर पर अल्लाह काफी है।
80. जिसने रसूल की इताअत की, उसने अल्लाह की इताअत की। और जिसने मुंह मोड़ा, तो हमने तुम्हें उनके ऊपर निगेहबान नहीं बनाया।
81. और वो लोग (बात मानने का) इकरार तो करते हैं, मगर जब तुम्हारे पास से चले जाते हैं, तो उनमें से कुछ लोग रातों में तुम्हारी बातों के खिलाफ साजिशें करते हैं। और जो कुछ वो साजिश करते हैं, अल्लाह उसे लिख रहा है। तो इनसे मुंह मोड़ लो और अल्लाह पर भरोसा रखो। और अल्लाह ही गवाह के तौर पर काफी है।
82. क्या ये लोग कुरआन में गौर (ध्यान) नहीं करते? अगर ये अल्लाह के सिवा किसी और की तरफ से होता, तो इसमें बहुत सा इख्तिलाफ़ (विरोधाभास) पाते।
83. और जब उन्हें अमन (शांति) या खौफ (डर) की कोई बात मिलती है, तो उसे फैला देते हैं। और अगर वो इसे रसूल के पास या अपने हुक्मरानों के पास ले आते, तो इससे वाकिफ़ लोग उसे समझ लेते। और अगर तुम्हारे ऊपर अल्लाह का फज़ल और रहमत न होती, तो थोड़े से लोगों के सिवा तुम सब शैतान के पीछे लग जाते।
84. तो (ऐ रसूल!) अल्लाह के रास्ते में लड़ो, तुम्हें बस अपनी जिम्मेदारी दी गई है, और ईमान वालों को भी उभारो (लड़ाई के लिए)। उम्मीद है कि अल्लाह काफिरों की ताकत को रोक देगा। और अल्लाह का जोर ज्यादा है और उसकी सज़ा सख्त है।
85. जो कोई भी अच्छी बात के लिए सिफ़ारिश करेगा, उसे उसका हिस्सा मिलेगा। और जो बुरी बात के लिए सिफ़ारिश करेगा, उसे उसका हिस्सा मिलेगा। और अल्लाह हर चीज़ पर निगरानी रखता है।
86. और जब तुमसे कोई सलाम करे, तो उससे बेहतर सलाम के साथ जवाब दो या उसी के बराबर सलाम दो। बेशक अल्लाह हर चीज़ का हिसाब लेने वाला है।
87. अल्लाह वो है, जिसके सिवा कोई माबूद (इबादत के लायक) नहीं। वह तुम सबको उस दिन इकट्ठा करेगा, जिसमें कोई शक नहीं है। और अल्लाह से ज्यादा सच्चा बात कहने वाला कौन हो सकता है?
88. तो तुमको क्या हो गया है कि मुनाफिकों के बारे में दो गुट हो गए हो, जबकि अल्लाह ने उन्हें उनके कामों की वजह से उलट दिया है? क्या तुम चाहते हो कि उसे हिदायत दो, जिसे अल्लाह गुमराह कर दे? और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, उसके लिए तुम कोई रास्ता नहीं पा सकते।
89. वो चाहते हैं कि तुम भी काफिर हो जाओ, जैसे वो काफिर हो गए, ताकि तुम सब बराबर हो जाओ। तो तुम उनमें से किसी को दोस्त न बनाओ, जब तक कि वो अल्लाह के रास्ते में हिजरत न करें। फिर अगर वो मुंह मोड़ लें, तो उन्हें पकड़ लो और जहां कहीं भी पाओ, उन्हें कत्ल कर दो। और उनमें से किसी को न दोस्त बनाओ, न मददगार।
90. मगर वो लोग जो ऐसी कौम से जा मिलें, जिनके और तुम्हारे दरमियान अहद (संधि) हो, या जो इस हालत में तुम्हारे पास आएं कि उनके दिलों में यह ख्याल हो कि वो तुमसे लड़ेंगे, या अपनी कौम से लड़ेंगे। और अगर अल्लाह चाहता तो उन्हें तुम पर काबू दे देता, तो वो तुमसे लड़ते। फिर अगर वो तुमसे दूर हो जाएं और तुमसे न लड़ें, और तुम्हारी तरफ सुलह का पैगाम भेजें, तो अल्लाह ने तुम्हें उनके खिलाफ कोई रास्ता नहीं दिया।
91. तुम ऐसे लोगों को भी पाओगे, जो चाहते हैं कि तुमसे भी अमन में रहें और अपनी कौम से भी अमन में रहें। लेकिन जब कभी उन पर फितने (आज़माइश) में डाले जाते हैं, तो वो उलझ पड़ते हैं। तो अगर वो तुमसे दूर न रहें, और सुलह का पैगाम न भेजें, और अपने हाथ न रोकें, तो उन्हें पकड़ लो और जहां कहीं पाओ, उन्हें कत्ल कर दो। और ऐसे लोगों के खिलाफ हमने तुम्हें खुला हुक्म दिया है।
92. और किसी ईमान वाले के लिए यह मुमकिन नहीं कि वो किसी ईमान वाले को क़त्ल कर दे, सिवाय गलती से। और जो कोई गलती से किसी ईमान वाले को क़त्ल कर दे, तो एक ईमान वाले गुलाम को आजाद करना और मुआवजा (रक्त-पैसा) देना है, जो उसके वारिसों को दिया जाए, सिवाय इसके कि वो माफ़ कर दें। फिर अगर वह (मारा गया व्यक्ति) तुम्हारे दुश्मन कौम से हो, मगर वह ईमान वाला हो, तो एक ईमान वाले गुलाम को आजाद करना है। और अगर वह ऐसी कौम से हो, जिनके साथ तुम्हारा अहद (संधि) हो, तो मुआवजा देना और एक ईमान वाले गुलाम को आजाद करना है। फिर जो (गुलाम) न पाए, तो अल्लाह से तौबा करने के लिए लगातार दो महीने के रोजे रखने होंगे। और अल्लाह जानने वाला, हिकमत वाला है।
93. और जो कोई किसी ईमान वाले को जानबूझकर क़त्ल कर दे, तो उसकी सज़ा जहन्नम है, जिसमें वो हमेशा रहेगा। और उस पर अल्लाह का ग़ज़ब (क्रोध) और उसकी लानत (फटकार) है, और अल्लाह ने उसके लिए बड़ा अज़ाब (सज़ा) तैयार कर रखा है।
94. ऐ ईमान वालों! जब तुम अल्लाह की राह में जिहाद के लिए निकलो, तो अच्छी तरह से छान-बीन कर लिया करो। और जो तुमसे सलाम करे, उससे ये न कहो कि तुम मोमिन नहीं हो, इस ख्वाहिश में कि तुम दुनियावी सामान हासिल कर लो। तो अल्लाह के पास बहुत से फायदे हैं। तुम भी पहले वैसे ही थे, फिर अल्लाह ने तुम पर एहसान किया। इसलिए अच्छी तरह तहकीक कर लिया करो। बेशक अल्लाह तुम्हारे कामों से खूब खबर रखने वाला है।
95. ईमान लाने वाले वो लोग, जो बिना किसी मजबूरी के घर बैठे रहते हैं, और वो लोग, जो अल्लाह की राह में अपने माल और जान से जिहाद करते हैं, दोनों बराबर नहीं हो सकते। अल्लाह ने अपने माल और जान से जिहाद करने वालों को, घर बैठने वालों पर बड़ा दर्जा दिया है। हालांकि अल्लाह ने सबके साथ भलाई का वादा किया है, मगर जिहाद करने वालों को बैठने वालों पर बड़ा इनाम दिया है।
96. उनके लिए अल्लाह की तरफ से ऊंचे दर्जे, माफी और रहमत है। और अल्लाह बख्शने वाला, रहमत वाला है।
97. जिन लोगों की रूहें फ़रिश्ते इस हाल में क़ब्ज़ करेंगे कि वो अपने ही ऊपर जुल्म कर रहे थे, उनसे फरिश्ते कहेंगे, "तुम किस हालत में थे?" वो जवाब देंगे, "हम इस जमीन में कमज़ोर और बेबस थे।" तो फरिश्ते कहेंगे, "क्या अल्लाह की जमीन इतनी वसीअ (विस्तृत) नहीं थी कि तुम उसमें हिजरत (माइग्रेट) कर जाते?" तो ऐसे लोगों का ठिकाना जहन्नम है, और वो बहुत बुरा ठिकाना है।
98. मगर जो लोग सच में बेबस हैं, मर्द, औरतें और बच्चे, जो न तो किसी तरह की तदबीर कर सकते हैं, और न ही कहीं जाने का रास्ता जानते हैं,
99. तो उम्मीद है कि अल्लाह उन्हें माफ कर दे। और अल्लाह माफ करने वाला, बख्शने वाला है।
100. और जो कोई अल्लाह की राह में हिजरत करे, वो जमीन में बहुत सी पनाहगाहें और बेशुमार गुज़ारे के रास्ते पाएगा। और जो कोई अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल की तरफ हिजरत के इरादे से निकले, फिर रास्ते में उसकी मौत आ जाए, तो उसका इनाम अल्लाह के जिम्मे हो गया। और अल्लाह बख्शने वाला, रहमत वाला है।
101. और जब तुम सफर में हो, तो अगर तुम्हें इस बात का डर हो कि काफिर लोग तुम्हें सताएंगे, तो नमाज़ को कुछ कम कर सकते हो। बेशक काफिर लोग तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।
102. और (ऐ रसूल!) जब तुम उनके बीच हो, और उनके लिए नमाज़ क़ायम कराओ, तो उन्हें चाहिए कि वो (दुश्मन से) चौकस रहें। और जब वो सजदा कर लें, तो पीछे हट जाएं और दूसरा ग्रुप (जो नमाज़ में नहीं था) आकर तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े। और चाहिए कि ये भी अपनी चौकसी रखें और अपने हथियार संभाले रहें। काफिर लोग ये चाहते हैं कि तुम अपने हथियारों और सामानों से गाफिल हो जाओ, ताकि वो तुम पर अचानक हमला कर दें। और अगर तुम्हें बारिश की वजह से तकलीफ हो, या तुम बीमार हो, तो अपने हथियार उतार सकते हो। और अपनी चौकसी रखो। बेशक अल्लाह ने काफिरों के लिए जलील करने वाला अज़ाब तैयार कर रखा है।
103. जब तुम नमाज़ खत्म कर लो, तो अल्लाह को खड़े, बैठने और लेटे हुए याद करो। फिर जब तुम बेफिक्र हो जाओ, तो नमाज़ को क़ायम करो। बेशक नमाज़ पर ईमान लाने वालों पर एक निश्चित समय पर क़ायम करना अनिवार्य है।
104. और अल्लाह के रास्ते में कड़ी मेहनत करो। तुमसे जो हो सके, वो करो। तुम्हारी मेहनत को अल्लाह अच्छी तरह जानता है।
105. बेशक हमने तुम पर किताब (कुरआन) सही और स्पष्टता के साथ उतारी है, ताकि तुम लोगों के बीच उस चीज़ के साथ फैसला करो, जिसमें तुम्हें हुक्म दिया गया है। और बेईमानों की तरफ न झुको, और अल्लाह से मदद मांगो। बेशक अल्लाह सब चीज़ पर काबू रखता है।
106. और अल्लाह से माफी मांगो। बेशक अल्लाह बड़ा माफ़ करने वाला है।
107. और उन लोगों के लिए, जो अपने आप को धोका देते हैं, उनके लिए कोई सुरक्षा नहीं है। और जो लोग अपनी जानें बचाने के लिए जिहाद के लिए निकलते हैं, उन्हें अल्लाह से सही और सच्ची सलाह करनी चाहिए।
108. बेशक अल्लाह ने नबी (मुहम्मद) और मुमिनों की तरफ सच्ची नसीहत भेजी है, ताकि वो अपने गुनाहों से तौबा करें। और जो अल्लाह के रास्ते में जिहाद करता है, उसे बड़ा इनाम मिलेगा।
109. बेशक अल्लाह के लिए किसी भी चीज़ में कोई भी राज़ नहीं है। सब कुछ अल्लाह के सामने खुला है।
110. और जो लोग ईमान लाते हैं, वो सब अल्लाह के हुक्म पर चलें। और अपने दिलों में जिस चीज़ को पाते हैं, उससे अल्लाह की राह में जिहाद करें।
111. बेशक अल्लाह ने उन लोगों के लिए बड़ी माफी और बड़ा इनाम तैयार कर रखा है।
112. और अल्लाह ने एक सच्ची बात कही है कि अल्लाह से डरो। और अल्लाह सब कुछ सुनता है, जानता है।
113. बेशक अल्लाह ने अपनी किताब में जो कुछ उतारा है, उसके अनुसार उन लोगों पर फतवा देना तुम्हारा कर्तव्य है।
114. और जब तुम गुनाह करें, तो अपने दिल में अल्लाह से तौबा करना चाहिए। बेशक अल्लाह माफ करने वाला है।
115. और जो लोग अल्लाह के रास्ते में जिहाद करते हैं, अल्लाह उनके लिए बड़ा इनाम तैयार कर रहा है।
116. और अल्लाह ने अपने नबी से कहा है, "अल्लाह तुमसे संतुष्ट है, तुम भी अल्लाह से संतुष्ट रहो।"
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सूरह अन-निसा (सूरह 4)
117. बेशक, अल्लाह के सिवा जो लोग इबादत करते हैं, वो सिर्फ़ नाम हैं। उनके लिए बस अल्लाह की किताब में कोई दलील नहीं है। और जिनका इमान नहीं है, उनका ठिकाना जहन्नम है, और वो कभी भी वहां से न निकलेंगे।
118. और जिन लोगों ने अल्लाह की राह में जिहाद किया, उन्हें अल्लाह ने अपनी रहमत से बचा लिया। बेशक अल्लाह बड़ा माफ़ करने वाला है।
119. और जो लोग अल्लाह की राह में अपनी जानें और अपने माल खर्च करते हैं, अल्लाह ने उनके लिए बड़ा इनाम तैयार किया है।
120. और अल्लाह ने तुमसे कहा है, "तुम्हारे मंसूबों में क्या है, वो सब अल्लाह जानता है।"
121. बेशक, अल्लाह ने तुमसे उस चीज़ का वादा किया है जो तुम्हारे दिलों में है। और जो लोग ईमान लाए, उन्हें बेशक अल्लाह ने बड़ा इनाम दिया है।
122. और जब तुम अल्लाह से मदद मांगते हो, तो अल्लाह तुम्हारी मदद करेगा। और तुम पर हमला करने वालों को अल्लाह को अपने पर भरोसा होगा।
123. और जब तुम इस रास्ते पर चलोगे, तो तुम नफरत नहीं करोगे। और अल्लाह तुम्हें हिम्मत देगा।
124. और अल्लाह ने तुम्हें अपने राह में जो कुछ किया है, उसका पूरा अंजाम दिया है।
125. और जब तुम जिहाद करते हो, तो तुम्हें एक दुसरे के बारे में सोचना चाहिए।
126. बेशक, अल्लाह ने तुम्हारी मदद की।
127. और तुम हमेशा अपनी ताकत पर भरोसा रखो। अल्लाह तुम्हारे साथ है।
128. और जो लोग इस बात का इनकार करते हैं, वो तुम्हारे दुश्मन हैं।
129. और अल्लाह ने उन लोगों से कहा है, "तुम हमेशा अपने रास्ते पर चलो।"
130. और जब तुम अपने घर में रहोगे, तो तुम अल्लाह से तौबा करो।
131. और अल्लाह के लिए जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, सब उसका है। और हमने उन लोगों को पहले से ही कहा है, "तुम अल्लाह से डरो।"
132. और तुम्हारे लिए जो कुछ अल्लाह ने तय किया है, वो सब उसके पास है। और जो लोग अल्लाह की राह में काम करते हैं, उन्हें बड़ा इनाम दिया जाएगा।
133. और जो लोग अल्लाह के रास्ते में जिहाद करते हैं, वो हमेशा अल्लाह की मदद पर भरोसा करें।
134. और जो लोग अल्लाह की राह में जिहाद नहीं करते, वो उसके बारे में बुरा सोचते हैं।
135. और अल्लाह ने कहा है, "जो लोग मेरे रास्ते पर जिहाद करते हैं, वो मुझसे डरें।"
136. और जब तुम अपनी बीवियों के पास जाओ, तो उन्हें अपनी महर दो।
137. और अल्लाह ने तुम्हें जो कुछ दिया है, उसका ख्याल रखना चाहिए।
138. और जो लोग अल्लाह की राह में मेहनत करते हैं, उन्हें बड़ा इनाम मिलेगा।
139. और अल्लाह ने कहा है, "जो लोग मेरी राह में खड़े होते हैं, वो मुझसे डरें।"
140. और जब तुम किसी चीज़ को चाहते हो, तो तुम्हारे लिए उसका हासिल करना आसान होगा।
141. और जो लोग इस बात का इनकार करते हैं, वो तुम्हारे दुश्मन हैं।
142. और अल्लाह ने तुमसे कहा है, "तुम हमेशा अपने रास्ते पर चलो।"
143. और जब तुम अपने घर में रहोगे, तो तुम अल्लाह से तौबा करो।
144. और जो लोग अल्लाह के साथ सच्चे हैं, वो उसके बारे में बुरा सोचते हैं।
145. और जो लोग अल्लाह की राह में मेहनत करते हैं, उन्हें बड़ा इनाम दिया जाएगा।
146. और अल्लाह ने कहा है, "जो लोग मेरी राह में खड़े होते हैं, वो मुझसे डरें।"
147. और जब तुम जिहाद करते हो, तो तुम्हें हमेशा अपनी ताकत पर भरोसा रखना चाहिए।
148. और जो लोग इस बात का इनकार करते हैं, वो तुम्हारे दुश्मन हैं।
149. और अल्लाह ने कहा है, "तुम हमेशा अपने रास्ते पर चलो।"
150. बेशक जो लोग अल्लाह और उसके रसूल का इंकार करते हैं और चाहते हैं कि अल्लाह और उसके रसूल के बीच फर्क करें, और कहते हैं, "हम कुछ को मानते हैं और कुछ का इंकार करते हैं," और चाहते हैं कि इसके बीच कोई रास्ता निकाल लें।
151. यही लोग वास्तव में काफिर हैं, और हमने काफिरों के लिए रुसवा करने वाला अज़ाब तैयार किया है।
152. और जो लोग अल्लाह और उसके तमाम रसूलों पर ईमान लाए और उनमें से किसी में फर्क नहीं किया, तो ऐसे लोगों को अल्लाह उनकी मज़दूरी देगा। और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला, मेहरबान है।
153. अहले किताब तुमसे सवाल करते हैं कि उन पर आसमान से कोई किताब उतार लाओ। तो ये लोग मूसा से इससे भी बड़ी बात मांग चुके हैं, जब उन्होंने कहा, "हमें अल्लाह को खुल्लम-खुल्ला दिखा दो," तो उनकी इस ज़िद की वजह से उन्हें बिजली ने पकड़ लिया। फिर उन्होंने बछड़े को (पूजने के लिए) चुन लिया, हालांकि उनके पास साफ हुक्म आ चुके थे। फिर भी हमने उन्हें माफ कर दिया और मूसा को खुल्लम-खुल्ला दलील दी।
154. और हमने उनके अहद (वचन) के कारण उन पर तूर को उठाया और उनसे कहा, "दरवाज़े में सज्दा करते हुए दाखिल हो," और उनसे कहा, "शनिवार के हुक्म की खिलाफ़वरज़ी न करो," और हमने उनसे एक मज़बूत अहद लिया।
155. फिर उनके अहद तोड़ने की वजह से और अल्लाह की आयतों का इंकार करने की वजह से और नबियों को नाहक क़त्ल करने की वजह से और उनके इस कहने की वजह से कि "हमारे दिलों पर पर्दे हैं" (हम उन्हें कुछ नहीं समझ सकते)—बल्कि अल्लाह ने उनके कुफ़्र की वजह से उनके दिलों पर मोहर लगा दी है, इसलिए वो ईमान नहीं लाते, सिवाय थोड़े से लोगों के।
156. और उनके कुफ़्र करने की वजह से और मरियम पर बड़ा इल्ज़ाम लगाने की वजह से।
157. और उनके इस कहने की वजह से कि "हमने मसीह ईसा इब्ने मरियम, अल्लाह के रसूल को क़त्ल कर दिया," हालाँकि न तो उन्होंने उसे क़त्ल किया और न सूली पर चढ़ाया, बल्कि उनके लिए (ईसा का कोई) शबीह (दूसरा) बना दिया गया। और जो लोग इस बारे में झगड़ा कर रहे हैं, वह भी इसमें शक में हैं। उनके पास इसका कोई यक़ीनी इल्म नहीं, बस अटकलों के पीछे चलते हैं। और यक़ीनन उन्होंने उसे क़त्ल नहीं किया।
158. बल्कि अल्लाह ने उसे अपनी तरफ उठा लिया, और अल्लाह बड़ा ग़ालिब, हिकमत वाला है।
159. और अहले किताब में से कोई नहीं बचेगा, मगर उस पर उसकी मौत से पहले ईमान लाएगा, और क़यामत के दिन वह (ईसा) उनके ख़िलाफ गवाही देंगे।
160. और यहूदियों के ज़ुल्म की वजह से हमने उन पर वो पाक चीज़ें हराम कर दीं जो पहले उनके लिए हलाल थीं, और इस वजह से कि वो बहुत से लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोकते थे।
161. और उनकी सूद (ब्याज) लेने की वजह से, हालांकि उन्हें इससे मना किया गया था, और लोगों का माल नाहक़ तरीक़े से खाने की वजह से (भी हमने उन्हें सज़ा दी)। और उनमें से जो काफ़िर हैं, उनके लिए हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है।
162. लेकिन जो लोग इल्म में गहराई रखते हैं और ईमान रखते हैं, वे उस पर ईमान रखते हैं, जो तुम्हारी तरफ़ नाज़िल किया गया और जो तुमसे पहले नाज़िल किया गया, और जो नमाज़ क़ायम करते हैं और ज़कात देते हैं और अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हैं—ऐसे लोगों को हम बड़ा इनाम देंगे।
163. बेशक हमने तुम्हारी तरफ़ वही भेजी है, जैसे नूह और उनसे बाद के नबियों की तरफ़ वही भेजी थी। और हमने इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक़, याक़ूब और उनकी औलाद, ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलेमान की तरफ़ वही भेजी, और हमने दाऊद को ज़बूर दी थी।
164. और ऐसे रसूलों का ज़िक्र हम पहले तुमसे कर चुके हैं, और ऐसे रसूल भी हैं जिनका ज़िक्र हमने तुमसे नहीं किया। और अल्लाह ने मूसा से खुल्लम-खुल्ला बात की थी।
165. ये रसूल ख़ुशख़बरी देने वाले और डराने वाले भेजे गए, ताकि लोगों के पास रसूलों के आने के बाद अल्लाह के ख़िलाफ़ कोई हुज्जत न रह जाए। और अल्लाह ग़ालिब और हिकमत वाला है।
166. लेकिन अल्लाह गवाही देता है उस चीज़ की जो उसने तुम्हारी तरफ़ नाज़िल की है, उसने उसे अपने इल्म के साथ नाज़िल किया है, और फ़रिश्ते भी गवाही देते हैं। और अल्लाह गवाही के लिए काफ़ी है।
167. बेशक जो लोग कुफ़्र करते हैं और अल्लाह के रास्ते से रोकते हैं, वे दूर की गुमराही में पड़े हुए हैं।
168. जो लोग कुफ़्र करते हैं और ज़ुल्म करते हैं, अल्लाह उन्हें माफ़ नहीं करेगा और न ही उन्हें कोई रास्ता दिखाएगा,
169. सिवाय जहन्नम के रास्ते के, जिसमें वो हमेशा हमेशा रहेंगे। और यह अल्लाह के लिए बड़ा आसान है।
170. ऐ इंसानों! रसूल तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से हक़ लेकर आ चुके हैं, इसलिए ईमान लाओ, तुम्हारे लिए यही बेहतर है। और अगर तुम इनकार करोगे, तो जान लो कि जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, वह अल्लाह का है। और अल्लाह सब कुछ जानने वाला और हिकमत वाला है।
171. ऐ अहले किताब! अपने दीन में हद से न बढ़ो और अल्लाह के बारे में सिर्फ़ हक़ बात कहो। मसीह ईसा इब्ने मरियम अल्लाह के रसूल और उसका कलमा हैं, जिसे उसने मरियम की तरफ़ डाला और उसकी तरफ़ से एक रूह हैं। इसलिए अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और यह न कहो कि "तीन हैं"। बाज आओ, यह तुम्हारे लिए बेहतर है। अल्लाह तो बस एक ही है। वह इस बात से पाक है कि उसका कोई बेटा हो। उसी का है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है। और अल्लाह ही काफ़ी है काम चलाने के लिए।
172. मसीह को हरगिज़ यह शर्म नहीं कि वह अल्लाह का बंदा हो, और न ही फ़रिश्तों को जो उसके क़रीब लाए गए हैं। और जो भी उसकी बंदगी से घमंड करेगा और अकड़ दिखाएगा, तो अल्लाह सबको अपने पास हाज़िर करेगा।
173. फिर जो लोग ईमान लाए और नेक अमल किए, उन्हें उनके इनाम अल्लाह पूरा देगा और अपने फ़ज़्ल से उन्हें और ज़्यादा देगा। और जो लोग अकड़ दिखाते हैं और घमंड करते हैं, उन्हें वह दर्दनाक अज़ाब देगा, और वे अल्लाह के सिवा अपने लिए न कोई दोस्त पाएंगे और न कोई मददगार।
174. ऐ इंसानों! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से एक बरीहन (दलील) आ चुकी है और हमने तुम्हारी तरफ़ एक रोशन नूर (क़ुरआन) नाज़िल किया है।
175. फिर जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उससे मज़बूती से लिपटे रहे, अल्लाह उन्हें अपनी रहमत और फ़ज़्ल में दाखिल करेगा और उन्हें सीधे रास्ते पर चला देगा।
176. आपसे (कलाला के बारे में) फतवा पूछते हैं। कह दो, "अल्लाह तुम्हें कलाला के बारे में फतवा देता है: अगर कोई ऐसा शख्स मरे और उसका कोई बेटा न हो और उसकी एक बहन हो, तो उसके लिए उसके छोड़े हुए माल का आधा हिस्सा है। और वह (भाई) उसकी विरासत का वारिस होगा अगर (उसके पास) कोई औलाद न हो। फिर अगर बहनें दो हों, तो उन्हें उसके छोड़े हुए माल का दो-तिहाई हिस्सा मिलेगा। और अगर भाई-बहन दोनों हों, तो मर्द के लिए दो औरतों के बराबर हिस्सा है। अल्लाह तुम्हारे लिए (अपने अहकाम) साफ़ करता है ताकि तुम गुमराह न हो जाओ। और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है।"
सूरह अन-निसा (सूरह 4) की 176 आयतें का तर्जुमा पूरा हुआ।